राजस्थान में 4 नवम्बर 1992 में कला शिक्षकों के पद को समाप्त करने का फैसला लिया था. जैसे जैसे कला शिक्षक सेवानिवृत्त होते गए इन पदों को समाप्त कर दिया गया और 1992 में कला शिक्षकों को पदों को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया लेकिन कला शिक्षा के नाम पर केंद्र से मिलने वाली राशि लगातार जारी है.
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Jaipur: प्रदेश में कला शिक्षा के नाम पर केन्द्र से करोड़ों रुपए का बजट तो आ रहा है,लेकिन कला शिक्षकों के बिना सरकारी स्कूलों में इस बजट का दुरुपयोग होता हुआ नजर आ रहा है. पिछले 12 सालों की अगर बात की जाए तो राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत अब तक करीब 377 करोड़ रुपए की लागत से स्कूलों में 5 हजार आर्ट, क्राफ्ट और कल्चर रूम बनाए गए हैं, लेकिन इस राशि से कला कक्षों का निर्माण सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गया है.
1992 में कला शिक्षकों को पदों को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया
गौरतलब है कि राजस्थान में 4 नवम्बर 1992 में कला शिक्षकों के पद को समाप्त करने का फैसला लिया था. इससे पहले 1985 तक ही कला शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पूरी की गई थी, लेकिन जैसे जैसे कला शिक्षक सेवानिवृत्त होते गए इन पदों को समाप्त कर दिया गया और 1992 में कला शिक्षकों को पदों को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया लेकिन कला शिक्षा के नाम पर केंद्र से मिलने वाली राशि लगातार जारी है.
दूसरी ओर वहीं, दूसरे राज्यों में स्थिति विपरीत हैं. दिल्ली, यूपी सहित कई राज्यों के स्कूलों में केंद्र के बजट से कला कक्ष बनाए गए हैं. उनमें विद्यार्थियों से कला शिक्षा की पढ़ाई कराई जा रही है. ऐसे में राजस्थान के कला शिक्षकों के सामने मजबूरी यह है कि दूसरे राज्यों में जाकर इनको शिक्षक बनने का सपना पूरा करना पड़ रहा है.
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वर्तमान की बात की जाए को प्रदेश में वर्तमान में संगीत, मूर्ति और चित्रकला के करीब 20 हजार से ज्यादा बेरोजगार कला शिक्षक भर्ती का इंतजार कर रहे हैं. कला बेरोजगार कुसुम देवी का कहना है कि "प्रदेश में कला शिक्षकों के साथ एक बड़ा छलावा प्रदेश सरकार द्वारा किया जा रहा है. हम लोग कला शिक्षा की पढ़ाई तो कर रहे हैं, लेकिन हमारे सामने समस्या यह है की राजस्थान में कला शिक्षकों के पद नहीं होने के चलते हमारा भविष्य अंधकार में नजर आ रहा है तो वहीं केन्द्र से जो राशि मिल रही है उसका जमकर दुरुपयोग किया जा रहा है."
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