तलवार, बरछी, भाले के लाइसेंस-फीस पर तकरार, राजपूत समाज ने जताई नाराजगी
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तलवार, बरछी, भाले के लाइसेंस-फीस पर तकरार, राजपूत समाज ने जताई नाराजगी

राजपूताना की शान समझी जाने वाली कटार, बरछी, भाला और तलवारों के लाइसेंस और उस पर लगने वाले शुल्क को लेकर राजपूत समाज (Rajput Society) में गहरी नाराजगी है. 

फाइल फोटो

Jaipur : राजपूताना की शान समझी जाने वाली कटार, बरछी, भाला और तलवारों के लाइसेंस और उस पर लगने वाले शुल्क को लेकर राजपूत समाज (Rajput Society) में गहरी नाराजगी है. समाज का तर्क है कि ये परम्परागत हथियार समाज की धार्मिक रीति-रिवाज और भावना से जुड़े हैं, ऐसे में इनको लाइसेंस मुक्त किया जाए. राजपूत सभा सहित राजपूत संगठनों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) से इन्हें लाइसेंस मुक्त किए जाने की मांग की है.

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राजस्थान (Rajasthan News) एक विशेष ऐतिहासिक विरासत का प्रदेश है, जहां वीर राजपूत योद्धाओं के शौर्य और बलिदान की गौरवशाली गाथाओं के साथ तलवार-कटार-बरछी-भाला आदि शस्त्रों के किस्से सुनाए जाते हैं. युग बदला, लेकिन नहीं बदले तो परम्पराएं और संस्कार....राजपूत समाज सहित कई परिवारों में इन शस्त्रों काे आज भी उतना ही मान-सम्मान दिया जा रहा है.

दशहरा, नवरात्र या अन्य कोई त्यौहार, घर घर में परम्परागत पूजा-पाठ में प्रतीकात्मक शक्ति पूजन में इन शस्त्रों का प्रयोग किया जा रहा है, लेकिन आयुध नियम 2016 में ऐसे हथियारों के लिए लाइसेंस और उनके नवीनीकरण के लिए लगने वाला शुल्क राजपूत समाज की धार्मिक रीति रिवाज, सांस्कृतिक विरासत और परम्पराओं में बाधक नजर आ रहा है. इसको लेकर श्रीराजपूत सभा और अन्य संगठनों के पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर लाइसेंस मुक्त करने की मांग कर रहे हैं.

- दरअसल 10.16 सेमी से अधिक ब्लेड वाले तलवार, गुप्ती, भाला-बरछी, खांखरों, बल्लम, कटार, फरसी, संगीन चाकू, छुरी, गंडारासा को रखने या लेने के लिए लाइसेंस अनिवार्य किया गया है.
- इसके लिए गृह विभाग ने 29 जनवरी 2000 को अधिसूचना जारी कर कानून व्यवस्था बनाए रखने का हवाला दिया था.
- इसके बाद आयुध नियम 2016 में गृहमंत्रालय ने ऐसे शस्त्रों के लिए लाइसेंस नवीनीकरण के लिए एक हजार की फीस तय कर दी.
- इधर प्रदेश में राजपूत सहित कई समाज-संगठन शौर्य, शक्ति के रूप में इन शस्त्रों का पूजन करते हैं.
- राजपूत समाज के कई घराें 40 से ज्यादा कटार, बरछी-भाले और तलवारें.
- ऐसे में हर साल उन्हें लाइसेंस के रूप में 40 हजार रुपए तक भुगतने पड़ेंगे, जबकि कई राजपूत परिवारों की आर्थिक स्थिति कमजोर है.
- साथ ही लाइसेंस नहीं लेते हैं तो पुलिस अवैध हथियार के मामले में कार्रवाई कर परेशान कर सकती है.
- राजपूत समाज में तलवार को प्रत्यक्ष दैव शरीर मानने की आस्था.
- ऐसी भी परम्परा, बेटा सरहद पर सेना में, तो तलवार से फेरे ले लेती है वधू.
- विवाह में धार्मिक एवं सामाजिक रीति रिवाज के अनुसार दूल्हे के हाथ में घोडी पर एवं फेरों में तलवार-कटार आदि का होना अनिवार्य हाेता है.
- आज भी शौर्य एवं सम्मान के रूप में नेताओं को तलवारें भेंट की जाती है.
- राजपूत समाज के पत्रों के बाद 5 अप्रेल को सीएमओ ने मामला परीक्षण के लिए गृह विभाग भेजा और जवाब मांगा.

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