'मुट्ठी भर बाजरे के लिए खो दी दिल्ली की बादशाहत', दिव्या मदेरणा ने अशोक गहलोत के लिए कही लोगों को शेरशाह सूरी की आई याद
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'मुट्ठी भर बाजरे के लिए खो दी दिल्ली की बादशाहत', दिव्या मदेरणा ने अशोक गहलोत के लिए कही लोगों को शेरशाह सूरी की आई याद

Ashok Gehlot | Divya Maderna : दिव्या मदेरणा ने अशोक गहलोत के लिए कहा कि 'मुट्ठी भर बाजरे के लिए खो दी दिल्ली की बादशाहत' लेकिन लोगों को बादशाह शेरशाह सूरी की याद आ रही है.  

'मुट्ठी भर बाजरे के लिए खो दी दिल्ली की बादशाहत', दिव्या मदेरणा ने अशोक गहलोत के लिए कही लोगों को शेरशाह सूरी की आई याद

Ashok Gehlot | Divya Maderna : राजस्थान की सियासत में इन दिनों रह-रह कर बड़े सियासी तूफान आ रहे हैं. जिससे जयपुर से लेकर दिल्ली तक की सियासत में अफरातफरी मच जाती है. हालात यह हो चले हैं कि रह-रह कर आने वाले इन तूफानों ने सूबे की सियासत की आबोहवा बदल दी है. इसी बीच इन मारवाड़ में प्रचलित एक कहावत जमकर सुर्खियों में है. दरअसल मारवाड़ से ही आने वाली ओसियां विधायक दिव्या मदेरणा ने इशारों ही इशारों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर तंज कसते हुए कहा है कि मुट्‌ठीभर बाजरे के लिए दिल्ली की बादशाहत खो दी.

दरअसल पिछले कुछ सालों से राजस्थान की सियासत में जमकर कहावत और लोकोक्तियों का इस्तेमाल किया जा रहा है. कभी ''नाथी का बाड़ा'' का जिक्र होता है तो कभी ''ठठेरे की बिल्ली खुड़के से कोणी डरे'' कहा जाता है. इसी बीच सूबे में आई सियासी संकट के पार्ट -2 के दौरान दिव्या मदेरणा ने राजस्थान के स्वर्णिम इतिहास से उठा कर एक कहावत का जिक्र किया है.

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क्या कहा दिव्या ने

दिव्या ने कहा कि मुट्ठी भर बाजरे के लिए किसने दिल्ली की बादशाहत खो दी क्योंकि सिर्फ तीन व्यक्तियों की भारी गलती की वजह से आज जोधपुर व समस्त राजस्थान गर्व होने वाले उस पल से महरूम रह गया, जोधपुर से निकल कर एक व्यक्ति कांग्रेस पार्टी के सबसे सिरमौर पद पर आसीन होते तो हमारे लिए गर्व की बात होती. दिल्ली के सुल्तान शेरशाह सूरी (17 मई 1540 – 15 मई 1545) का कथन है, शेरशाह ने बाबर के उत्तराधिकारी हुमायूं को हराकर दिल्ली पर अधिकार किया एवं लगभग 5 वर्ष तक शासन किया.

इस कथन के पीछे ये है इतिहास
दरअसल इतिहासकारों के मुताबिक 17 मई 1540 को बाबर के उत्तराधिकारी हुमायूं को हराकर दिल्ली की गद्दी शेरशाह सूरी ने हांसिल कर ली थी. दूसरी ओरमारवाड़ के शासक मालदेव तेजी से अपनी सीमा बढ़ाते हुए दिल्ली से सिर्फ 30 मील दूर आ पहुंचे थे. लिहाजा ऐसे में 4 जनवरी 1544 को पाली के जैतारण में दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया. मालदेव के 20 हजार सैनिकों के सामने शेर शाह सूरी के 80 हजार सैनिक थे.

जैतारण के युद्ध में मालदेव के सेनापति जेता और कूंपा ने दिल्ली के बादशाह शेरशाह सूरी की सेना के दांत खट्टे कर दिए, शेर शाह सूरी ने मैदान छोड़ने की तैयारी में था लेकिन देर रात पासा पलट गया.  सूरी की सेना ने जेता और कूंपा को मार कर युद्ध की तस्वीर बदल दी. जंग में दिल्ली सल्तनत को इतना नुक्सान हुआ कि शेर शाह सूरी को कहना पड़ा कि ''खैर करो, वरना मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैं अपनी दिल्ली की सल्तनत खो देता''. हालांकि 22 मई, 1545 को कालिंजर के युद्ध में घायल हुए बादशाह शेरशाह सूरी की मृत्यु हो गई. लेकिन मुट्ठी भर बाजरे के लिए दिल्ली की सल्तनत खो देने की कहावत प्रसिद्ध हो गई.

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