महुआ शराब की अवैध बिक्री पर लगेगी रोक, आदिवासी महिलाओं की बढ़ेगी आजीविका
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महुआ शराब की अवैध बिक्री पर लगेगी रोक, आदिवासी महिलाओं की बढ़ेगी आजीविका

 आदिवासी महिलाओं की आजीविका बढ़ाने और आर्थिक संबल देने के लिए श्रीगंगानगर (Sri Ganganagar) शुगर मिल्स लिमिटेड महुआ (Mahua) फूल खरीदकर महुआ शराब बनाएगा. 

प्रतीकात्मक तस्वीर

Jaipur: आदिवासी महिलाओं की आजीविका बढ़ाने और आर्थिक संबल देने के लिए श्रीगंगानगर (Sri Ganganagar) शुगर मिल्स लिमिटेड महुआ (Mahua) फूल खरीदकर महुआ शराब बनाएगा. विभाग का मानना है कि अवैध शराब पर काफी हद तक कंट्रोल होगा. फरवरी माह में राजस्थान अनुसूचित जनजाति (scheduled tribe) परामर्शदात्री परिषद की बैठक में इस पर चर्चा हुई, जिसके बाद पारंपरिक रूप से सेवन की जा रही मदिरा की मांग और खपत का परीक्षण करवाया गया. 

जिसमें सामने आया की महुआ की शराब का करोड़ों रुपये का अवैध कारोबार होता है. श्रीगंगानगर शुगर मिल्स (sugar mills) के अधिकारियों का मानना हैं कि महुआ शराब प्रदेश में उदयपुर, चित्तौडगढ, राजसमंद, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ और सिरोही, बारां जिले में सबसे ज्यादा प्रचलित है. दिवासी क्षेत्र में सबसे ज्यादा इसी शराब का सेवन किया जाता है .वैध बनने से यहां का करोड़ों रुपये का कारोबार आबकारी के खाते में जाएगा और अवैध पर लगाम लगेगा.

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इसके साथ ही अवैध हथकढ़ शराब से होने वाली मौतों में भी कमी आएगी. वहीं अब तक स्थानीय आदिवासी लोग महुआ फूलों को कम दामों में बेचते थे उनको विभाग 80 रुपये किलो में खरीदकर उनकी आय बढेगी. RSGSM (राजस्थान श्रीगंगानगर शुगर मिल्स) महुआ की मदिरा के लिए महुवा के फूलों की खरीद वन-धन समितियों से राजीविका उदयपुर के माध्यम से करेगा. फूलों को एकत्रित करने से आदिवासियों को रोजगार मिलेगा, महुआ के पेड़ों की कटाई पर लगाम लगेगी और पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा. 

राजस्थान श्रीगंगानगर शुगर मिल्स के जनरल मैनेजर धर्मपाल सिंह का कहना हैं की इस पहल से जनजातिय क्षेत्र के लोगों को अच्छी क्वालिटी और उचित रेट पर महुआ के फूलों से बनी मदिरा उपलब्ध होगी. हथकढ़ शराब पर रोक लगने से स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रतिकूल प्रभाव को रोका जा सकेगा.

अवैध शराब का गणित
एक लीटर शराब से दो बोतल बनाई जाती है. विभाग यह बात मानता है वह इस कुल अवैध करोबार में से महज 30 प्रतिशत पर ही कार्रवाई कर पाता है. कारोबार का 30 प्रतिशत एक करोड़ बोतल है तो 100 प्रतिशत साढ़े 3 करोड़ बोतल होंगी. ढाई करोड़ बोतल बाजार में सप्लाई होती है, पुलिस कार्रवाई कर सालभर में करीब 50 लाख लीटर अवैध महुआ शराब नष्ट करते हैं .प्रति बोतल 90 रुपये की भी माने तो प्रदेश में करीब 200 करोड़ रुपये का अवैध कारोबार होता है.

आदिवासी क्षेत्रों में बनने वाली महुआ शराब अब आबकारी विभाग बनाएगा. तरीका भी आदिवासी होगा, पहले जमीन में गाड़कर महुए को सड़ाएगा फिर भट्टी लगाकर उबालेगा सिर्फ जगह बदल जाएगी. जंगल की जगह गंगानगर शुगर मिल में यह शराब बनेगी. अभी इसकी रेट तय नहीं हुई है लेकिन संभावना जताई जा रही है कि एक पव्वे की कीमत करीब 30 रुपए और बोतल की 90-100 रुपए होगी. सरकार से अनुमति मिल गई है और अब विभाग महुआ संग्रहण और ड्यूटी कैसे लगाई जाए. इस पर विचार कर रहा है.

यह पूरी कवायद अवैध रूप से बन रही महुआ शराब पर लगाम लगाने और इसे वैध बनाने के लिए की जा रही है. विभाग के अधिकारियों की माने तो महुआ की शराब बनाने का तरीका भी वैसा ही होगा जैसे आदिवासी बनाते हैं. आदिवासी सड़ाने के लिए कुछ मात्रा में गुड़ मिलाते है लेकिन GSM (राजस्थान श्रीगंगानगर शुगर मिल्स) स्प्रिट ही मिलाएगा. फिर उसे 6-7 दिन तक सड़ाने के लिए रख दिया जाएगा. बाद में बड़े बर्तन में उबालेंगे और उसकी भाप से जो शराब बनेगी, उसमें पानी या अन्य वस्तुएं मिलाकर बोतल में पैक कर दिया जाएगा.

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अभी अवैध रूप से बिकने वाली महुआ शराब की कीमत 100 रुपये प्रति बोतल है, ऐसे में विभाग विचार कर रहा है कि अगर मूल्य एक जैसा रहा तो विभाग की शराब कौन खरीदेगा क्योंकि जैसे ही ड्यूटी तय होगी तो लागत बढ़ जाएगी इसलिए विभाग इसे बाजार में 90 से 100 तक में ही बेचने पर विचार कर रहा है.

बहरहाल, आदिवासी इलाकों में अवैध शराब पर नियंत्रण करने, आदिवासियों को रोजगार देने के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसकी शुरुआत की जा रही हैं. जयपुर में जीएसएम की यूनिट पर इसको तैयार किया जाएगा. बाजार में आने के बाद इसका अच्छा रिस्पांस मिलता हैं तो इसे उदयपुर जीएसएम यूनिट में शिफ्ट किया जाएगा.

 

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