Maha Shivratri 2023: महाशिवरात्रि पर होती है शिव शक्ति की पूजा, जानें मुहूर्त और पूजा की विधि
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Maha Shivratri 2023: महाशिवरात्रि पर होती है शिव शक्ति की पूजा, जानें मुहूर्त और पूजा की विधि

 Mahashivratri 2023: भोलेनाथ और देवी पार्वती के विवाह उत्सव के रूप में मनाया जाता है. महाशिवरात्रि के धार्मिक महत्व की बात की जाए तो महाशिवरात्रि (Mahashivratri) शिव और माता पार्वती के विवाह की रात्रि मानी गई है. कहा जाता है कि अगर एक लाख की संख्या में इन पुष्पों को शिव जी को अर्पित किया जाए तो सभी पापों का नाश होता है.

Maha Shivratri 2023: महाशिवरात्रि पर होती है शिव शक्ति की पूजा, जानें मुहूर्त और पूजा की विधि

Mahashivratri 2023: हर साल महाशिवरात्रि का व्रत हिंदू पंचांग के मुताबिक, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है. इस दिन को भोलेनाथ और देवी पार्वती के विवाह उत्सव के रूप में मनाया जाता है. महाशिवरात्रि के धार्मिक महत्व की बात की जाए तो महाशिवरात्रि (Mahashivratri) शिव और माता पार्वती के विवाह की रात्रि मानी जाती है. भगवान शंकर ने वैराग्य जीवन त्याग कर माता पार्वती के साथ गृहस्थ जीवन अपनाया था. आज भी जब कभी सुखी दांपत्य जीवन की बात होती है, तो माता पार्वती और भोले शंकर को सर्वोच्च उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है. माता पार्वती और महादेव प्रेम और समर्पण से पूरा संसार जानता है. कुंवारी लड़कियां भी सोमवार का व्रत और भोलेनाथ की पूजा इसलिए करती हैं ताकि उन्हें शिवजी की तरह पति मिले. महाशिवरात्रि की रात्रि को भक्त जागरण करके माता पार्वती और भगवान शिव की आराधना करते हैं.

इस महाशिवरात्रि भक्तों को देंगे मनचाहा वरदान

मान्यता है जो भक्त ऐसा करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. महाशिवरात्रि के दिन शिव लिंग पर कमल, शंखपुष्प और बेलपत्र अर्पित करने से आर्थिक तंगी दूर होती है. इसके अलावा कहा जाता है कि अगर एक लाख की संख्या में इन पुष्पों को शिव जी को अर्पित किया जाए तो सभी पापों का नाश होता है. कहते हैं कि शिवलिंग पर हमेशा उल्टा बेलपत्र अर्पित करना चाहिए. बेलपत्र का चिकना भाग अंदर की तरफ यानी शिव लिंग की तरफ होना चाहिए.

महाशिवरात्रि पर निशिता काल में पूजन का विशेष महत्व

हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. इस बार महा शिवरात्रि 18 फरवरी 2023, शनिवार को मनाई जाएगी. निशिता काल का समय - 18 फरवरी, रात 11 बजकर 52 मिनट से 12 बजकर 42 मिनट तक रहेगा. निशिता काल में भगवान शिव की पूजा करने से पुण्य प्राप्त होता है और भोलेनाथ जल्द प्रसन्न होते हैं. 

ज्योतिषाचार्य मनोज झा बताते हैं कि महाशिवरात्रि की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 18 फरवरी 2023 को रात 08 बजकर 02 मिनट पर होगी और इसका समापन 19 फरवरी 2023 को शाम 04 बजकर 18 मिनट पर होगा. महाशिवरात्रि की पूजा निशिता काल में की जाती है.

चार पहर की पूजा का समय

महाशिवरात्रि प्रथम प्रहर पूजा मुहूर्त- सुबह 06:14 बजे से सुबह 09:25 बजे तक
महाशिवरात्रि द्वितीय प्रहर पूजा का समय - सुबह 09:25 बजे से दोपहर 12:36 बजे तक
महाशिवरात्रि तृतीय प्रहर पूजा मुहूर्त - दोपहर 12:36 बजे से 03:46 बजे तक
महाशिवरात्रि चौथा प्रहर पूजा मुहूर्त - दोपहर 03:46 बजे से शाम 06:57 बजे तक 

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भगवान शिव स्वयंभू हैं

भगवान शिव का जन्म नहीं हुआ है वे स्वयंभू हैं. लेकिन पुराणों में उनकी उत्पत्ति का विवरण मिलता है. विष्णु पुराण के अनुसार माथे के तेज से उत्पन्न होने के कारण ही शिव हमेशा योगमुद्रा में रहते हैं. 
शिव का ना तो जन्म हुआ ना ही वो कभी मृत्यु को प्राप्त होंगे, ना उनका आदी है और ना अंत. वे स्वयंभू हैं. विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्मा भगवान विष्णु की नाभि कमल से पैदा हुए जबकि शिव भगवान विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए बताए गए हैं. उत्पत्ति के बाद जब विष्णु और ब्रह्मा आपस में लडने लगे कि कौन बड़ा है तभी वहां शिव ज्योतिर्मय लिंग रूप में प्रकट हुए और दोनों से इस लिंग के आदी और अंत का पता करने को कहा. ब्रह्मा हंस पर सवार हो ऊपर की ओर गए और वाराह रूप धर विष्णु पाताल लोक की ओर. लंबे समय, अथक परिश्रम के बाद भी दोनों को लिंग का आदी और अंत नहीं मिला. ब्रह्मा थक गए तो वहां केतकी के फूल से कहा कि लिंग का यही सिरा है तुम साक्षी बन मेरे साथ चलो. ब्रह्मा जब लिंग का सिरा ढूंढ लाने और साक्षी रूप में केतकी को साथ लाते हैं तो उनके असत्य से शिव नाराज हो जाते हैं. शिव केतकी को श्राप देते हैं कि तुम्हें मेरी पूजा में कभी नहीं चढ़ाया जाएगा. विष्णु खाली हाथ लौटे थे. 

शिव सभी देवों के देव हैं, मृत्यु के अधिष्ठाता हैं

घर में शिवलिंग होना चाहिए और नित्य ही शिवलिंग का अभिषेक और पूजा-अर्चना की जानी चाहिए. कुछ लोग कहते है कि चूंकि शिव जी श्मशान वासी हैं, इसलिए घर में शिवलिंग नहीं रखना चाहिए. इसका उत्तर ये है कि, श्मशान तो वो पवित्र स्थान है, जहां जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी को एक दिन जाना है. श्मशान वासी होने के साथ शिव सभी देवों के देव हैं, मृत्यु के अधिष्ठाता हैं. भोलेनाथ की भक्ति की तो महिमा ही निराली है. भोलेनाथ ही एकमात्र ऐसे देव है जिनकी कृपा से सभी नौ ग्रहों, सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, शुक्र, शनि व राहु-केतु के दुष्प्रभावों, अनिष्ट कारक दशा, शनि की वक्र दृष्टि हो तो संकटों से सुरक्षा मिलती है.

अकाल मृत्यु से भी रक्षा होती है

“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”

महादेव ही हैं जिनके समक्ष यमराज भी नत मस्तक होते हैं. सर्वेश्वर महादेव की कृपा हो तो अकाल मृत्यु से भी रक्षा होती है. मार्कण्डेय ऋषि ने अपनी अल्पायु को महा मृत्युंजय मंत्र का जप कर दीर्घायु में बदला था. कुछ लोग ये भी कहते है कि घर में एक से अधिक शिवलिंग नहीं होने चाहिए. तो इसका जवाब है कि, ये गलत धारणा है जगत के पिता और इस सृष्टि के रचियता के लिए तो पूरा विश्व ही उनका घर है. घर में एक से अधिक शिवलिंग हो सकते हैं. संकटमोचक महामृत्युंजय महामंत्र ( Maha Mrityunjaya Mantra ) का जाप करने से साधक के कष्ट तुरंत समाप्त हो जाते हैं. 

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