मरूधरा में मनरेगा योजना में 100 दिन का रोजगार मजाक बनकर रह गया है, क्योंकि केवल कागजों में श्रमिकों का नियोजन किया जा रहा. प्रदेश पंचायतों में श्रमिकों के लिए काम तो बहुत है, लेकिन ग्रामीण विभाग मजदूरों को रोजगार नहीं दे पा रहा.
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Jaipur: मरूधरा में मनरेगा योजना में 100 दिन का रोजगार मजाक बनकर रह गया है, क्योंकि केवल कागजों में श्रमिकों का नियोजन किया जा रहा. प्रदेश पंचायतों में श्रमिकों के लिए काम तो बहुत है, लेकिन ग्रामीण विभाग मजदूरों को रोजगार नहीं दे पा रहा.
मई में 96 हजार से ज्यादा मस्टररोल निकाली गई, लेकिन इन कामों में एक भी श्रमिक को रोजगार नहीं मिल पाया. जबकि ग्राम पंचायत द्वारा 12 हजार मस्टररोल को ग्रामीण विकास विभाग ने डिलिट कर दिया. इन आकंड़ों से ये साबित होता है कि विभाग श्रमिकों को रोजगार देने में फेल साबित हो रहा है. पीक टाइम में मनरेगा में रोजगार ना मिलना बड़ा चिंता का विषय है.
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मस्टररोल क्या होता है
मस्टररोल ग्राम पंचायत द्वारा अपनी पंचायत के लिए मांगा गया काम होता है, जिसे पंचायत समिति द्वारा अप्रूव किया जाता है. राजस्थान में मई के महीने में 96,633 मस्टररोल में एक भी श्रमिकों को रोजगार नहीं मिला, जबकि 12713 मस्टररोल तो डिलीट ही कर दी. इससे ये साफ होता है कि ग्रामीण विकास विभाग रोजगार देने में नाकाम रहा जबकि मई-जून के महीने में ग्रामीण इलाकों में काम की सबसे ज्यादा मांग रहती है. इसके बावजूद रोजगार में गिरावट आई है. यानि सीधे तौर पर पंचायतों में काम है, लेकिन इसके बावजूद श्रमिकों को रोजगार नहीं मिल पा रहा
जानिए किन जिलों में मस्टररोल जारी, पर रोजगार नहीं-
जिला कितनी मस्टररोल डिलिट जीरो अटैडेंस मस्टररोल
डूंगरपुर 437 6870
बांसवाड़ा 988 5825
जयपुर 214 5773
नागौर 1083 4881
झालावाड़ 472 3307
ऐसे में सवाल यही कि आखिरकार मनरेगा संविदाकर्मियों की हड़ताल का असर देखा जा रहा है या फिर श्रमिक मनरेगा के काम में दिलचस्पी नहीं ले रहे या फिर विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण मनरेगा में मजदूरों को काम नहीं मिल रहा. क्योंकि विभाग के अधिकारी तो वैसे भी आकंड़ों की हेराफेरी में व्यस्त है.