Jaipur: शहर में पहली बार बने दोनों नगर निगमों का 1 साल का कार्यकाल हुआ पूरा, नहीं लगा बेड़ा पार
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Jaipur: शहर में पहली बार बने दोनों नगर निगमों का 1 साल का कार्यकाल हुआ पूरा, नहीं लगा बेड़ा पार

नगर निगम हैरिटेज मेयर मुनेश गुर्जर भी मानती हैं कि समितियां बनने में देरी हो रही है. यदि समितियों का गठन हो जाता तो काम ओर आसान होता.

आपसी खींचतान और बजट की कमी के चलते विकास की नैया पार नहीं लग सकी.

Jaipur: शहरी विकास के लिए पहली बार नगर निगम को दो भागों में बांटा गया. ठीक एक साल पहले दोनों शहरी सरकारों ने काम करना शुरू किया. यह 12 माह का कार्यकाल कोरोना नियंत्रण (Corona control) और आधारभूत सुविधाएं पूरी करने में ही निकल गया.

जनता ने दोनों निकायों में अलग-अलग पार्टियों के नेतृत्व में हाथ में कमान सौंपी लेकिन आपसी खींचतान और बजट की कमी के चलते विकास की नैया पार नहीं लग सकी.

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जयपुर नगर निगम के टुकड़े कर उसे क्षेत्रों में बांटकर हैरिटेज में अपना बोर्ड और मेयर बनाने में भले ही कांग्रेस (Congress) ने सफलता हासिल कर ली हो लेकिन वह अपने इस पहले प्रयोग में फेल साबित हो गए. नगर निगम के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है, जब बोर्ड बनने के एक साल बाद भी संचालन समितियों का गठन नहीं हो सका. इससे पहले तत्कालीन मेयर ज्योति खण्डेलवाल के समय ऐसा हुआ था, लेकिन उस समय नगर बोर्ड बनने के बाद 11 महीने के अंदर कमेटियां भी बन गई थी हालांकि उस समय परिस्थितिया थोड़ी अलग थी. 

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साल 2009 में जब चुनाव हुए तब नगर निगम जयपुर में बहुमत तो भाजपा पार्टी को मिला लेकिन डायरेक्ट इलेक्शन (प्रत्यक्ष चुनाव) में कांग्रेस की ज्योति खण्डेवाल मेयर का चुनाव जीती थी. यह पहली बार ऐसा हुआ था, जब मेयर कांग्रेस का बना था. इस कारण समितियों के गठन को लेकर उस समय मेयर और भाजपा के बोर्ड में तकरार शुरू हो गया था. 11 महीने में आपसी समझौते के बाद नगर निगम समितियां बनी थी. हालांकि इस दौरान राज्य में कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार (Ashok Gehlot Government) थी.

कमेटियां नहीं बनने के पीछे आपसी खींचतान
नगर निगम हैरिटेज मेयर मुनेश गुर्जर भी मानती हैं कि समितियां बनने में देरी हो रही है. यदि समितियों का गठन हो जाता तो काम ओर आसान होता. नामों पर सहमति बन चुकी है, बस ऐलान होना बाकी है हालांकि जानकारों का मानना है कि कमेटियां नहीं बनने के पीछे आपसी खींचतान है. हैरिटेज क्षेत्र के चारों विधायकों में ही आपस में तालमेल नहीं बैठ रहा. 3 विधायक चाहते हैं कि निर्दलीयों को समितियां देने के बाद जो समितियां बचें, उसे विधानसभावार सदस्यों की संख्या के अनुपात में बांटा जाए जबकि प्रतापसिंह ऐसा नहीं चाहते. वे चाहते हैं कि निर्दलीयों को जोड़ते हुए सभी कमेटियां समान अनुपात में विधानसभावार बांटी जाए. आदर्श नगर विधायक रफीक खान चाहते हैं कि उन्हे सबसे ज्यादा कमेटियां मिले, क्योंकि उनके क्षेत्र से कांग्रेस के सबसे ज्यादा 14 पार्षद जीते है, लेकिन अन्य तीन विधायक ये नहीं चाहते. इसके अलावा तीसरा बड़ा कारण अच्छी कमेटियों को लेकर है. लाइसेंस, बीपीसी, फाइनेंस, उद्यान, लाइट और सफाई समितियों को लेकर विधायकों में काफी खींचतान चल रही है. 

हर विधायक यह चाहता है कि इनमें से ज्यादा से ज्यादा कमेटियों के चैयरमेन उनके विधानसभा क्षेत्र के पार्षद बने. पार्टी के एक विधायक ऐसे हैं, जो नहीं चाहते हैं कि हैरिटेज निगम सरकार के मंत्रिमंडल का विस्तार हो क्योंकि उनको अपने विधानसभा क्षेत्र में बगावत के सुर उठने का डर है. उन्हें लगता है कि निर्दलीयों को साधा तो कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर जीतकर आए पार्षद नाराज हो जाएंगे. ऐसी स्थिति में जब तक समितियों के गठन का टाला जाए तब तक ठीक है हालांकि कुछ निर्दलीय पार्षद इस बात से बेहद नाराज हैं. समय-समय पर नाराजगी भी जताते रहे हैं.

एक साल में अब तक केवल एक बार ही साधारण सभा बुलाई गई
नगर निगम हैरिटेज में वर्तमान में बोर्ड, मेयर दोनों कांग्रेस के हैं और राज्य में सरकार भी कांग्रेस की है. नगर निगम बोर्ड और मेयर के एक साल के कार्यकाल को पूरा होने  में 2 दिन शेष बचे हैं, लेकिन अब तक मेयर और सरकार कमेटियों का गठन नहीं कर सकी. इसके पीछे पार्टी में अंदर आपसी खींचतान जिम्मेदार है. उधर नगर निगम में नियमानुसार हर 2 महीने में एक बार साधारण सभा की बैठक बुलानी होती है लेकिन एक साल में अब तक केवल एक बार ही साधारण सभा बुलाई गई, वो भी मौजूदा वित्त वर्ष का बजट पास करने के लिए. 

इसके बाद कोरोना का हवाला देकर आज दिन तक बोर्ड बैठक ही नहीं बुलाई गई जबकि नगर निगम में बोर्ड का काफी बड़ा महत्व होता है, इसके लिए नगरपालिका अधिनियम 2009 की धारा 51 में स्पष्ट प्रावधान दे रखे हैं. बोर्ड को 60 दिन में तो एक बार बैठक बुलाना आवश्यक होता है. अगर महापौर ऐसा नहीं करते हैं तो उस बोर्ड के एक तिहाई पार्षद साइन करके महापौर और आयुक्त को पत्र लिखकर मांग कर सकते हैं. फिर भी महापौर बैठक नहीं बुलाए तो धारा 51 (3) के तहत आयुक्त का ये कर्तव्य है कि वो 7 दिन में बैठक बुलाए. इस पर भी यदि बोर्ड की बैठक नहीं बुलाई जाती है तो धारा 39 के तहत राज्य सरकार महापौर के खिलाफ महापौर के खिलाफ कार्रवाई कर नोटिस दे सकती है.

बहरहाल, समितियां नहीं बनने से पार्षदों का एक धडा नाराज है हालांकि मेयर का दावा है कि उनकी नाराजगी दूर जल्द होगी लेकिन अच्छी बात यह भी है की एक साल के कार्यकाल में मेयर और आयुक्त के विवाद की खबरे सामने नहीं आई. अक्सर निगमों में मेयर-आयुक्त और पार्षदों में आपसी टकराव के कारण विकास पर ब्रेक लग जाते हैं.

 

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