राजस्थान में पांच दिन से नहीं मिल रहे स्टांप पेपर, वेंडर्स को नहीं मिले बिक्री रजिस्टर
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राजस्थान में पांच दिन से नहीं मिल रहे स्टांप पेपर, वेंडर्स को नहीं मिले बिक्री रजिस्टर

Jaipur News: राजस्थान में पिछले पांच दिनों से लोगों को स्टांप पेपर नहीं मिल रहे हैं, जिससे लोग परेशान हैं. वहीं, स्टांप वेंडर्स के सामने उनकी रोजी-रोटी का संकट आ पड़ा है. जानें क्या हैं पूरा मामला. 

राजस्थान में पांच दिन से नहीं मिल रहे स्टांप पेपर, वेंडर्स को नहीं मिले बिक्री रजिस्टर

Jaipur News: राजस्थान के जयपुर सहित प्रदेशभर में चार दिन स्टांप को लेकर मारामारी हो रही हैं. स्टांप विक्रेताओ के पास स्टांप पेपर का स्टॉक तो हैं लेकिन बेच नहीं सकते. इसका कारण मुद्रांक एवं पंजीयन विभाग की लचर व्यवस्था है. स्टांप वेंडर्स को नया वित्तीय वर्ष शुरू होने के पांच दिन बाद भी विक्रय और स्टॉक रजिस्टर नहीं मिलने से सिस्टम गड़बड़ा गया है. इससे ना सिर्फ आमजन को परेशानी है, बल्कि स्टांप वेंडर्स की रोजी-रोटी पर संकट आने के साथ विभाग को भी राजस्व का नुकसान हो रहा है.

न्यू फाइनेंशियल ईयर शुरू हुए पांच दिन का समय हो चुका है, लेकिन पांच दिन से स्टांप पेपर नहीं मिलने से लोग परेशान होने लगे हैं. जयपुर जिला कलेक्ट्रेट, नगर निगम, हाईकोर्ट, जयपुर विकास प्राधिकरण सहित तमाम जगहों पर स्टाम्प वेंडर्स के पास से लोग बिना स्टाम्प पेपर लिए वापस लौट रहे हैं. इसके पीछे कारण स्टाम्प पेपर की कमी नहीं बल्कि मुद्रांक एवं पंजीयन विभाग की लचर व्यवस्था है. 

स्टांप वेंडर्स के मुताबिक, राज्य सरकार ने स्टांप बेचने के लिए नए प्रकार के विक्रय रजिस्टर, स्टॉक रजिस्टर और मोबाइल एप को जरूरी कर दिया है, किन अभी तक 'ई-पंजीयन स्टांप विक्रेता मोबाइल एप' पूरी तरह से तैयार नहीं हुआ है. वहीं, विक्रय रजिस्टर के नए फार्मेट में भी संबंधित व्यक्ति की ज्यादा जानकारी ली जा रही है. 

दरअसल, इस वित्तवर्ष के स्टॉक मेंटेन और बिक्री रजिस्टर अब तक स्टाम्प विक्रेताओं को विभाग की ओर से उपलब्ध नहीं करवाए गए. इन रजिस्टर में एंट्री करने के बाद ही स्टाम्प विक्रेता आमजन को स्टाम्प बेच सकते हैं, लेकिन नया वित्त वर्ष 2023-24 शुरू हुए 4 दिन निकल गए, लेकिन अब तक विभाग ने रजिस्टर उपलब्ध नहीं करवाए हैं. ऐसे में लोग को अभी जो स्टाम्प पेपर मिल रहे हैं, वह पुराने स्टॉक से कुछ चुनिंदा जगहों पर ही मिल रहे हैं. वहीं, ज्यादातर लोग ई-स्टाम्प खरीद रहे हैं, लेकिन इनके सेंटर्स भी चुनिंदा स्थानों पर ही हैं. 

राजस्थान में वर्तमान में स्टाम्प पेपर बेचने वाले 20 हजार से ज्यादा रजिस्टर्ड वेंडर्स हैं. इन वेंडर्स को हर साल स्टांप बेचने के लिए लाइसेंस फीस सरकार को देनी होती है. इसके बाद ही सरकार इनको स्टांप पेपर और उसकी बिक्री का रिकॉर्ड संधारित करने के लिए दो रजिस्टर उपलब्ध करवाती है. इसमें एक रजिस्टर में विक्रेता के नाम, पते की जानकारी होती है, जबकि दूसरे में स्टाम्प पेपर बेचने का डिटेल. रजिस्टर नहीं होने के कारण अधिकांश वेंडर्स स्टाम्प नहीं बेच पा रहे है. इसके कारण पिछले 5 दिनों से लोग परेशान हो रहे हैं, इससे न केवल आमजन को परेशानी हो रही है, बल्कि राज्य सरकार को भी रेवेन्यू का नुकसान उठाना पड़ रहा है.

इधर स्टाम्प वेंडर्स अब नए एप्लीकेशन का भी विरोध कर रहे हैं. सरकार ने स्टाम्प विक्रेता नाम से एक मोबाइल एप बनाया है, जिस पर सभी वेंडर्स को हर रोज अपने यहां बेचे गए स्टाम्प की डिटेल अपलोड करनी होगी. इसके पीछे मुख्य उदेश्य स्टाम्प बेचान में होने वाली गड़बड़ी को रोकना है. राजस्थान लाइसेंस स्टांप वेंडर्स के महासचिव महेश झालानी ने बताया कि राज्य सरकार स्टांप विक्रय के लिए एक मोबाइल एप तैयार किया है. स्टांप वेंडर्स सीनियर सिटीजन भी है. ऐसे में तकनीक की जानकारी के अभाव में स्टांप बेच नहीं पाएंगे. स्टांप पेंडर्स इसका लगातार विरोध कर हैं. अभी तक स्टांप वेंडर्स को विक्रय रजिस्टर जारी नहीं किया गया हैं और मोबाइल एप से बेचने को मजबूर किया जा रहा है.

दरअसल अभी तक स्टांप वेंडर्स विभाग द्वारा उपलब्ध रजिस्टर में स्टांप खरीदार के नाम-पते व उपयोग में लेने का उद्देश्य लिखते हैं. स्टांप वेंडर्स इन रजिस्टर को सरकार के यहां जमा करवाने में देरी करते हैं. रजिस्टर में कई कॉलम की जगह खाली छोड़ देते हैं, जिसमें बाद में पुरानी डेट में स्टांप बिक्री दिखाई जाती है. ऑनलाइन स्टांप एप आने के बाद इस तरह की धोखाधड़ी को रोका जा सकेगा. 

बहरहाल, मुद्रांक एवं पंजीयन विभाग की लेटलतीफी-लचर व्यवस्था और दूसरी तरफ मोबाइल एप का विरोध ने आमजन की समस्याओं को बढ़ा दिया हैं. शपथ पत्र बनवाने से लेकर रजिस्ट्री करवाने के लिए लोगों को दिक्कतों का सामन करना पड़ रहा हैं. स्टांप वेंडर्स को सेल और स्टॉक रजिस्टर का इंतजार हैं. यदि सेल रजिस्टर मिले तो स्टांप खरीदने वालों के लिए राहत की खबर हो सकती है. 

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