भारत रत्न से नहीं किया जा सकता सावरकर के व्यक्तित्व का आकलन : उदय माहुरकर
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भारत रत्न से नहीं किया जा सकता सावरकर के व्यक्तित्व का आकलन : उदय माहुरकर

वीर सावरकर और उनकी विचारधारा को लेकर इन दिनों देश में एक अलग बहस छिड़ी हुई है.

वीर सावरकर पर लिखी किताब पर परिचर्चा

Jaipur: वीर सावरकर और उनकी विचारधारा को लेकर इन दिनों देश में एक अलग बहस छिड़ी हुई है. सावरकर को हिंदूवादी विचारक बताने के साथ ही उनकी विचारधारा पर सवाल उठाए जाते हैं. इन सबके बीच वीर सावरकर पर किताब लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार उदय माहुरकर और जनसंघ में काम कर चुके शेषाद्री चारी का कहना है कि जो लोग सावरकर की विचारधारा पर उंगली उठाते हैं, उन्हें महात्मा गांधी से लेकर अंबेडकर के विचारों पर भी एतराज रखना चाहिए. इसके साथ ही सावरकर को भारत रत्न दिए जाने के सवाल पर उदय माहुरकर (Uday Mahurkar) ने कहा कि सावरकर को भारत रत्न मिले या नहीं, उससे उनके व्यक्तित्व की समीक्षा पर कोई फर्क नहीं पड़ता.

वीर सावरकर का स्वन्त्रता संग्राम में कोई योगदान रहा या नहीं? उन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगी या नहीं? अगर माफीनामा लिखा, तो वह किस सोच के साथ था? अगर सावरकर हिंदूवादी सोच के साथ काम करते थे, तो क्या वह हिंदू राष्ट्र बनाने में कामयाब होते? सावरकर का हिंदुत्व कैसा था? इन सब बातों को लेकर मौजूदा दौर में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. इन सवालों के बीच सावरकर के प्रयासों और उनकी सोच को लेकर लिखी गई किताब की भी चर्चा हो रही है. वरिष्ठ पत्रकार उदय माहुरकर ने सावरकर पर किताब लिखी और उसी किताब के साथ सावरकर के व्यक्तित्व के अलग-अलग पहलुओं पर जयपुर में चर्चा हुई. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने उदय माहुरकर के साथ शेषाद्री चारी से भी सावरकर से जुड़े अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा की.

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इस चर्चा के दौरान शेषाद्री चारी ने कहा कि वीर सावरकर हिंदुत्व की सोच रखते थे और उन्होंने हिंदू राष्ट्र की बात भी की. चारी ने कहा कि सावरकर का हिंदुत्व हिंदुओं की रक्षा करने के साथ ही सभी धर्मों को समान मौका और संरक्षण देने वाला था, लेकिन फिर भी सावरकर और उनके विचारों को आज तक निशाने पर लिया जाता है. शेषाद्री चारी ने कहा कि कांग्रेस के थिंक टैंक की सोच तब सवालों में घिरती है, जब वह देश के चुनिंदा महापुरुषों से ही अपना नाता बताते रहे हैं, जबकि देश में अब तक कई महापुरुषों का योगदान रहा है. शेषाद्री चारी ने यह भी कहा कि महात्मा गांधी भी हिंदुत्व की बात करते थे और वे कहते थे कि हिंदुत्व सबसे अग्रणी रहेगा. इसी तरह उन्होंने भीमराव अंबेडकर का जिक्र करते हुए कहा कि सावरकर राष्ट्रीय ध्वज के रूप में तिरंगे को स्वीकार करते थे, लेकिन राष्ट्रीय ध्वज तय करने के लिए जो कमेटी बनी उसके अध्यक्ष भीमराव अंबेडकर का सुझाव था कि भगवा झंडे को ही भारत का राष्ट्रीय ध्वज बनाया जाना चाहिए. हालांकि कांग्रेस ने बाद में इसे अस्वीकार कर दिया. शेषाद्री चारी ने कहा कि अगर देश में कोई भी सावरकर और उनकी विचारधारा पर सवाल खड़े करता है, तो इस तरह के सवाल महात्मा गांधी से लेकर अंबेडकर तक के विचारों पर भी खड़े होने चाहिए.

उदय माहुरकर ने सावरकर (Veer Savarkar) के संघर्ष और उनकी विचारधारा के विभिन्न पहलुओं को इस किताब में शामिल किया. उन्हें तार्किक रूप से मंच पर भी रखा। माहुरकर ने कहा कि सावरकर ही वह व्यक्ति थे जो देश के विभाजन को रोक सकते थे. उन्होंने एक जगह सावरकर का जिक्र करते हुए बताया कि वीर सावरकर कहा करते थे कि 1920 का सावरकर लोगों को 30 साल बाद समझ में आया, तो 1950 का सावरकर लोगों को 50 साल बाद में समझ आएगा. उन्होंने असम में वर्तमान समस्याओं का पहले ही संकेत दिया था तो देश के विभाजन का विरोध करने के साथ ही इसे लेकर आशंका भी जता दी थी. उन्होंने कहा कि सावरकर देश में विभाजनकारी ताकतों के विरोधी थे और यह पुस्तक भी देश का दूसरा विभाजन रोकने के नजरिए से ही लिखी गई है.

दर्शक दीर्घा में से माहूरकर से सवाल पूछा गया कि क्या वीर सावरकर को भारत रत्न दिया जाना चाहिए? इस पर उन्होंने कहा कि सावरकर को भारत रत्न मिले तो भी ठीक है और अगर नहीं मिलता तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता. माहुरकर ने कहा कि सावरकर का व्यक्ति किसी भी पुरस्कार या सम्मान से अलग था. उन्होंने कहा कि सावरकर के व्यक्तित्व का आकलन केवल भारत रत्न के नजरिए से नहीं किया जा सकता

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