जवाहर कला केंद्र की पाक्षिक नाट्य योजना के तहत ‘भंवरिया कालेट’ नाटक का मंचन
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जवाहर कला केंद्र की पाक्षिक नाट्य योजना के तहत ‘भंवरिया कालेट’ नाटक का मंचन

 नाट्य निर्देशक सिकंदर खान के निर्देशन में युवा रंगकर्मियों ने मिरासी समुदाय की व्यथा जाहिर की. 

जवाहर कला केंद्र की पाक्षिक नाट्य योजना के तहत ‘भंवरिया कालेट’ नाटक का मंचन

Jaipur: जवाहर कला केंद्र की पाक्षिक नाट्य योजना के तहत ‘भंवरिया कालेट’ नाटक का मंचन हुआ. नाट्य निर्देशक सिकंदर खान के निर्देशन में युवा रंगकर्मियों ने मिरासी समुदाय की व्यथा जाहिर की. मंच पर लोक संगीत ने रिसाइकिल आर्ट फॉर्म पर आधारित नाटक को खास बनाया. 

ये है नाटक की कहानी

सिर से मां का साया उठ चुका है, पिता का जीवन समाज के प्रभावशाली लोगों के अहम की भेंट चढ़ चुका है. जो रियासतकाल में नाच-गाना कर गुजर बसर करते थे उनके सामने अस्तित्व का संकट खड़ा है. यह कहानी है भंवरिया कालेट और उसके छोटे भाई जफरिया की.

अपनी गिरवी जमीन को छुड़ाने और दो वक्त की रोटी की जुगत में दोनों भाई कबाड़ बीनने लगे. कबाड़ से हाथ आई कमाई से जब काम न चलता तो भंवरिया इधर-उधर से जरूरी सामान भी उठा लाता. इसी कशमकश में भंवरिया किसी तस्कर की अटैची ले आता है. इकबाल जो तस्कर के लिए काम करता है. जफरिया का एक्सिडेंट कर उसे घर लाता है. इस सांत्वना के सहारे वह अटैची पाना चाहता है. धीरे-धीरे जफरिया और इकबाल मानवता की डोर से बंध जाते हैं. 

मूक-बधिर जफरिया को तांबा-पीतल सोने सा प्यारा लगता है, वह अटैची में पड़ी वस्तु जो विस्फोटक है, पर हथौड़ा मार बैठता है. धमाके की चपेट में आने से उसकी मौत हो जाती है. जफरिया का बदला लेने के लिए इकबाल तस्कर को भी मौत के घाट उतार देता है. अंत में बचता है भंवरिया, जो जन्म से संघर्ष की राह पर है और अभी भी कुछ मार्मिक सवाल लिए समाज की ओर मुंह कर खड़ा है.

Reporter- Anup Sharma

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