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Jaipur News : राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रदेश के 508 पूर्व विधायकों को मासिक पेंशन देने के मामले में दायर याचिका में से महाधिवक्ता और स्पीकर का नाम बतौर पक्षकार हटा दिया है. अदालत ने महाधिवक्ता का नाम हटाने के लिए याचिकाकर्ता को प्रार्थना पत्र पेश करने के लिए कहा था. वहीं स्पीकर का नाम अदालत ने अपने स्तर पर ही हटा दिया है. इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार को जवाब पेश करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है. जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस अनिल उपमन की खंडपीठ ने यह आदेश मिलाप चंद डांडिया की जनहित याचिका पर दिए.
सुनवाई के दौरान अदालती आदेश की पालना में याचिकाकर्ता की ओर से महाधिवक्ता का नाम पक्षकार से हटाने के लिए प्रार्थना पत्र पेश किया. जिसे अदालत ने स्वीकार करते हुए कहा कि याचिका में स्पीकर को भी बेवजह पक्षकार बनाया गया है. ऐसे में स्पीकर का नाम भी हटाया जा रहा हैं.
वहीं याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विमल चौधरी और अधिवक्ता योगेश टेलर ने कहा कि पंजाब में पूर्व विधायकों को एक ही पेंशन दी जाती है. जबकि राजस्थान में व्यक्ति जितनी बार विधायक रहा, उस अवधि के आधार पर पेंशन दी जा रही है. इस पर महाधिवक्ता ने कहा कि पंजाब के अलावा सभी राज्यों में अवधि के हिसाब से ही पेंशन दी जा रही है. इसके अलावा वे सरकार को इस तथ्य से अवगत करा देंगे. वहीं महाधिवक्ता ने याचिका का जवाब पेश करने के लिए समय मांगा. इस पर अदालत ने चार सप्ताह का समय दे दिया है.
याचिका में कहा गया है कि आरटीआई में मिली सूचना के तहत प्रदेश में 508 पूर्व विधायकों को करीब 26 करोड़ रुपए सालाना पेंशन के तौर पर दिए जा रहे हैं. इनमें से कई विधायक वर्तमान में भी एमएलए हैं. वहीं करीब आधा दर्जन से अधिक पूर्व विधायकों को एक लाख रुपए मासिक से ज्यादा पेंशन राशि दी जा रही है. इसमें करीब सौ से अधिक पूर्व विधायक ऐसे हैं, जिन्हें मासिक पचास हजार रुपए से अधिक की पेंशन दी जाती है.
याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार राजस्थान विधानसभा अधिकारियों और सदस्यों की परिलब्धियां एवं पेंशन अधिनियम 1956 व राजस्थान विधानसभा सदस्य पेंशन नियम, 1977 बनाकर पूर्व विधायकों को पेंशन का लाभ दे रही है. जबकि संविधान के अनुच्छेद 195 और राज्य सूची की 38वीं एन्ट्री में पूर्व विधायकों को पेंशन देने का प्रावधान नहीं है.
याचिका में कहा गया कि पेंशन उस व्यक्ति को दी जाती है, जो एक तय आयु के बाद सेवानिवृत्त होता है. जबकि विधायक सेवानिवृत्त नहीं होते हैं, बल्कि ये जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत चुने जाते हैं और उनका तय पांच साल का कार्यकाल होता है. इसके अलावा जनप्रतिनिधि को राज्य का सेवक भी नहीं माना जा सकता. पूर्व विधायकों की पेंशन आम जन पर भार है और ऐसे में इन पूर्व विधायकों पर पैसा नहीं लुटाया जा सकता. इसलिए वर्ष 1956 के अधिनियम और वर्ष 1977 के नियम को अवैध घोषित कर रद्द किया जाए तथा पूर्व विधायकों से दी गई राशि की रिकवरी की जाए.