क्या हो कमाल जब साथ हों वसुंधरा, किरोड़ी और बेनीवाल ?
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क्या हो कमाल जब साथ हों वसुंधरा, किरोड़ी और बेनीवाल ?

अगर वसुंधरा, बेनीवाल और किरोड़ी की तिकड़ी किसी तरह से जम जाये तो आने वाले विधानसभा में बीजेपी का प्रदर्शन धमाकेदार हो सकता है.

फाइल फोटो

Rajasthan Assembly Elections 2023: किरोड़ी और बेनीवाल की दोस्ती पुरानी है, दोनों ने लगभग एक साथ बीजेपी को अलविदा कहा था. किरोड़ी जहां मन कर्म वचन से समर्पित संघी हैं तो, वहीं बेनीवाल जाट नेता के तौर पर खुद को स्थापित कर रहे हैं. ऐसे में अगर वसुंधरा, बेनीवाल और किरोड़ी की तिकड़ी किसी तरह से जम जाये, तो आने वाले विधानसभा में बीजेपी का प्रदर्शन धमाकेदार हो सकता है.

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कुछ दिन पहले नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल और पंजाब के नए मुख्यमंत्री हनुमंत मान की एक तस्वीर ने सियासी गलियारे में गहमागहमी बढ़ा दी थी. जिसके बाद जयपुर में आम आदमी पार्टी ने विधानसभा की तैयारी का आगाज किया और पार्टी के सदस्यता अभियान की शुरुआत की गयी. चर्चा थी कि आप के साथ बेनीवाल नया गुट बना सकते हैं लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं.

आपको बता दें कि राजस्थान के शेखावाटी में पैठ रखने वाले बेनीवाल साल 2018 के विधानसभा चुनाव में नई पार्टी (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी) के जरिए बीजेपी को नुकसान पहुंचा चुके है. जिसके बाद जाट बेल्ट में कमजोर बीजेपी ने 2019 में लोकसभा चुनावों में रालोपा से गठबंधन किया और जाट बाहुल्य चार लोक सभा सीटों को रालोपा को दे दिया. सूत्रों के मुताबिक बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रालोपा का बीजेपी में विलय चाहते थे. लेकिन हनुमान बेनीवाल राजी नहीं हुए.

23 मई 2019 को जब लोकसभा चुनाव के परिणाम आए तो नागौर सीट पर एनडीए प्रत्याशी हनुमान बेनीवाल ने कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति मिर्धा को भारी वोटों से हराया. राजस्थान में लोकसभा की 25 सीट में से 24 सीट पर बीजेपी ने अपने प्रत्याशी उतारे थे, उन सब ने भी जीत हासिल की. नागौर की सीट पर बीजेपी ने हनुमान बेनीवाल की आरएलपी ने गठबंधन कर लिया था. इसका फायदा भी पार्टी को मिला. नागौर ही नहीं जोधपुर, अजमेर, जालोर, जोधपुर और राजसमंद में असर देखा गया जहां बेनीवाल की पार्टी बीजेपी प्रत्याशियों के समर्थन में थी. 2019 में बेनीवाल ने राष्ट्रीय स्तर अपनी पार्टी को जमा लिया.

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इधर गुर्जर आरक्षण आंदोलन के दौरान मीणा समाज के मसीहा के तौर पर उभरे किरोड़ी मीणा का 2008 से 2013 के बीच प्रभाव लगातार कम होता दिखा. मीणा ने 200 में से 150 सीटों पर उम्मीदवार खड़ें किए, लेकिन चार सीटों पर ही जीत पाए. 2013 के विधानसभा चुनाव में किरोड़ी लाल मीणा और पत्नी गोलमा देवी के अलावा कोई और मीणा नेता चुनाव नहीं जीत पाया. 2018 के विधानसभा चुनाव आने से पहले ही संघ और अमित शाह के कहने पर मीणा बीजेपी में चले आए. करीब 10 साल बाद किरोड़ी लाल मीणा बीजेपी में वापस आए और सीधे राज्यसभा का टिकट मिला. फिलहाल राजनीति के खेल में किरोड़ी बड़े खिलाड़ी हैं और आये दिन में कैसे चर्चा में रहना है जानते हैं. अगर किरोड़ी अपने दोस्त,  बेनीवाल को बीजेपी में ले आते है. तो इसमें कोई शक नहीं कि बीजेपी को फायदा होगा,  लेकिन वसुंधरा राजे को मनाना आसान नहीं होगा.

वसुंधरा राजे के खिलाफ,  बेनीवाल हमेशा ही आवाज बुलंद करते रहे हैं. ऐसे में बीजेपी में वसुंधरा राजे की मर्जी के बगैर बेनीवाल की एंट्री होना मुश्किल है. लेकिन अगर राजस्थान में राजे, बेनीवाल और किरोड़ी की तिकड़ी मिल जाती है, तो ये बीजेपी के लिए एतिहासिक दिन होगा और आगामी विधानसभा चुनावों में बीजेपी इतिहास रच सकती है. यहीं नहीं किरोड़ी का पार्टी में कद बढ़ जाएगा. हालांकि ये कर पाना फिलहाल उतना ही मुश्किल है जितना कि सलमान, शाहरुख और अमीर खान को एक साथ लेकर फिल्म बनाना.

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