प्राणायाम हमें मानसिक और आध्यात्निक तौर पर मजबूत बनाता है, प्राणायाम शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है 'प्राण+आयाम'...प्राण का अर्थ होता है जीवनी शक्ति, आयाम के दो अर्थ है, पहला कंट्रोल करना या रोकना और दूसरा लम्बा या विस्तार करना...अपनी देह के जीवन की अवस्था का नाम प्राण है और उस अवस्था के अवरोध को आयाम कहते है...इसका तात्पर्य़ यह है कि जीवन की अवस्था के अवरोध का नाम प्राणायाम हैं...महर्षि पतंजलि ने प्राणायाम योग सूत्र 2/49 में परिभाषित करते हुए कहा:- तस्मित् सति श्वासप्रश्वास योर्गविविच्छेद
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Yoga : अपनी जड़ों की ओर लौटने का वक्त है ये. क्योंकि जिस जीवन शैली के जाल में फंस चुके है उससे निकलने के उपायों पर अगर हमने ध्यान नहीं दिया तो हम इस अनमोल से जीवन को बगैर आनंद लिए खो देंगे. कैसे वक्त आपकी मुट्ठी से निकल जाएगा और कैसे आपकी उम्र आप पर अपना रुआब दिखाने लगेगी पता ही नहीं चलेगा. बेहतर है कि हमें इस वक्त के साथ हमारे जीवन पर मंडराते खतरे से निपटने के लिए अपनी दिशाएं तय करनी होगी.
किन दिशाओं की बात कर रहा हूं मैं, किस जीवनशैली की बात कर रहा हूं मैं, और जीवन शैली की वजह से कौन से खतरे की तरफ इशारा कर रहा हूं मैं, दरअसल मैं बात कर रहा हूं योग की,साधना की,ध्यान की, प्राणायाम की, यहीं तो जड़ें है हमारी भारतीय संस्कृति की, इन्ही जड़ों की तरफ लौटने का इशारा है मेरा, पूरी दुनिया को हमने योग से परिचित कराया लेकिन अभी भी हमारी युवा पीढ़ी योग दिवस के दिन ही योग के साथ जुड़ती है बाकी के 364 दिन हम उसी भागदौड़ का हिस्सा हो जाते है जो हमें वक्त से पहले बूढ़ा करने वाली है.
कितने कमजोर है हम ये हमने पूरी दुनिया समेत भारत में आई कोरोना की लहर के दौरान देख लिया, इस बीमारी ने तमाम उम लोगों को अपना शिकार बनाया जो शरीर से दिखाई तो स्वस्थ्य देते थे लेकिन भीतर से कमजोर थे जिनके अंदर लड़ने की क्षमता नहीं थी क्योंकि हमने कभी अपने शरीर को उस हिसाब से तैयार ही नहीं किया हमने कभी आतंरिक शक्ति पर काम ही नहीं किया, नतीजा ये हुआ कि एक सूक्ष्म से वायरस ने पूरी मानव जाति के लिए मुसीबत खड़ी कर दी,जब आपदा सिर पर खड़ी हो गई तो हम अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए जतन करने लगे लेकिन ये क्षमता बढ़ पाती उससे पहले ही हम उस बीमारी का शिकार हो गए ।
योग शब्द का उद्भव आज से सैकड़ों साल पहले हमारे ऋषि मुनियों ने पूरे विश्व को दिया था, योग शब्द का शाब्दिक अर्थ संस्कृत धातु के 'युज' शब्द से निकला है जिसका मतलब होता स्वयं की चेतना अथवा आत्मा का मिलन या समाधि से भी ले सकते है. योग भारतीय ज्ञान की पांच हजार वर्ष पुरानी शैली है. वर्तमान परिवेश में लोग आज योग को एक शारीरिक व्यायाम के तौर पर देखने लगे है, परंतु इसके उल्ट योग एक विज्ञान है, यह गहन विज्ञान की सबसे सतही पहलू है, योग विज्ञान में जीवनशैली का पूर्ण सार आत्मसात किया गया है, यह वो क्रिया जिसके माध्यम से अध्यात्म को समझा जा सकें,योग के पिता के रूप में महर्षि पतंजलि को जाना जाता है,पतंजलि के योग सूत्र पूरी तरह से योग के ज्ञान को समर्पित है, इन सूत्रों का ध्येय योग सूत्र के अभ्यास को अधिक समझने योग्य और आसान बनाना है, पतंजलि योग दर्शन के अऩुसार ''योगश्चित्तवृत्त निरोध''. आसान शब्दों में कहा जाए तो 'चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है'
योग में प्राणायाम का सबसे ज्यादा महत्व है, क्योंकि प्राणायाम हमारे प्राण से जुड़ा है, प्राणायाम हमें मानसिक और आध्यात्निक तौर पर मजबूत बनाता है, प्राणायाम शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है 'प्राण+आयाम'...प्राण का अर्थ होता है जीवनी शक्ति, आयाम के दो अर्थ है, पहला कंट्रोल करना या रोकना और दूसरा लम्बा या विस्तार करना...अपनी देह के जीवन की अवस्था का नाम प्राण है और उस अवस्था के अवरोध को आयाम कहते है...इसका तात्पर्य़ यह है कि जीवन की अवस्था के अवरोध का नाम प्राणायाम हैं...महर्षि पतंजलि ने प्राणायाम योग सूत्र 2/49 में परिभाषित करते हुए कहा:- तस्मित् सति श्वासप्रश्वास योर्गविविच्छेद
प्राणायाम केवल श्वासों को भीतर-बाहर छोड़ना ही नहीं है क्योंकि जब हम श्वास लेते है तो मात्र ऑक्सीजन हमारे भीतर प्रवेश नहीं करती है बल्कि एक दिव्य शक्ति,एक दिव्य ज्योति भी वायु के भीतर जाती है जो कि हमारे प्राणों की रक्षा करती है, जिसे प्राणवायु, प्राणशक्ति भी कहा जाता है, जो सर्वत्र विद्यामान है, प्राणायाम एक ऐसा माध्यम है जो हमें इस शक्ति का बोध कराता है, व इस दिव्य शक्ति का साक्षात्कार कराता है, प्राणायाम पंचकोष- 1. प्राण 2. अपान 3.उदान 4.समान 5.व्यान और प्राणायाम पांच कोषों को दूर करने का काम करता है, प्राण का मुख्य प्रवेश द्वार नासिका है, नासा छिद्रों द्वारा श्वासों का भीतर व बाहर की दिव्यता का अनुभव करना है, प्राणायाम का उद्देश्य आंतरिक जगत की दिव्यता का अनुभव कराना है
आधुनिक परिवेश में प्रत्येक शख्स परेशान है विचलित है, तनाव से ग्रस्त है, लेकिन योग में प्राणायामों के माध्यम से आप तनावमुक्त जिंदगी जी सकते है, जरूरी है इन प्राणायामों का शुद्ध अंतकरण से और नियमित अभ्यास हो
तनावमुक्त जिंदगी जीने के लिए मुख्यत पांच तरह के प्राणायाम होते है,वो है:- 1.भ्रामरी प्राणायाम 2. नाड़ी शोधन 3. योग निद्रा 4. ध्यान 5. ऊ.जप
देश के बड़े-बड़े ऋषि मुनियों द्वारा आज से सैकड़ों साल पहले योग की जो विद्या पूरी दुनिया को दी गई थी वो फिर से आम जन मानस में प्रांसगिक हो उठी है, योग की महत्ता को सरकारों से लेकर आम आदमी ने स्वीकार किया है, राजधानी दिल्ली से लेकर देश के छोटे से छोटे कोने तक योग का प्रसार-प्रचार तेज होता जा रहा है..लेकिन बावजूद इसके योग को गहराई से समझने की जरुरत है...क्योंकि यही योग है जो आपको जीवन के साथ जीवनंता दे सकता है, जिंदा होने और जिंदा दिखाई देने में फर्क है इस फर्क को हम इसी योग से खत्म कर सकते है।
Writer: लक्ष्मीनारायण (सर्टिफाइड योग प्रशिक्षक)