बिना अंग्रेजी, जोधपुर की अनोखी लव स्टोरी: 'बीवी चाहिए थी, बिजनेस पार्टनर मिल गई'
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बिना अंग्रेजी, जोधपुर की अनोखी लव स्टोरी: 'बीवी चाहिए थी, बिजनेस पार्टनर मिल गई'

होठों पर प्यारी सी हंसी और आंखों में हल्की सी शर्म लेकर अपनी कहानी सुनाते हुए जोधपुर के यह व्यक्ति बताते हैं कि ममता जी और मैं एक ही स्कूल में पढ़ते थे. हमारे परिवार एक-दूसरे के अच्छे जानकार थे. हम दोनों को परिवार वाले जब भी देखते थे तो हमेशा यही कहते थे कि 'इस दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल लेना चाहिए'. 

कहानी पढ़कर आप भी यह कहेंगे कि 'पत्नी हो तो ऐसी. साथी हो तो ऐसा'.

Jodhpur: जिन सजदों में सिर झुक जाए, वही खुदा का घर है,
जिस जगह हर नदी मिल जाए, वही तो समुंदर है, 
दर्द तो हर कोई दे देता है इस जिंदगी में,
दर्द समझकर जो चेहरे पर मुस्कान ले आए, वही सच्चा हमसफर है....

ये चंद लाइनें महज लाइनें नहीं, किसी की सीधी-साधी हकीकत का खूबसूरत किस्सा हैं. जिंदगी में सफर करने के लिए हर किसी को एक हमसफर की जरूरत होती है. मिलते भी हैं लोगों को पसंदीदा हमसफर पर कई बार कांटों भरी जिंदगी की डगर उतनी खूबसूरत नहीं होती, जितनी वो उम्मीद कर बैठते हैं. 

खैर...यह बात तो हर कोई मानता है कि इंसान की जिंदगी में शादी वह जुआ है, जिसका रिजल्ट हर किसी के लिए एक सा नहीं होता है. अगर साथी सच्चा और साथ देने वाला हो तो हमसफर निखर जाता है लेकिन वहीं, अगर झूठा या गलत हो तो हमसफर बिखर जाता है. कुछ ऐसे ही सच्चे प्यार और जिंदगी को छोटी-छोटी खुशियों के रंग से रंगने वाले जोधपुर के एक पति-पत्नी की दिलकश कहानी आपके लिए लाए हैं, जिसे पढ़कर आप भी यह कहेंगे कि 'पत्नी हो तो ऐसी. साथी हो तो ऐसा'. 

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एक इंस्टाग्राम पेज ऑफिशियल ह्यूमंस ऑफ बॉम्बे में छपी कहानी के अनुसार, दास्तां शुरू होती है जोधपुर से करीब 22 किलोमीटर दूर बसे सालावास गांव से. जी हां, यह वही गांव है, जहां का क्राफ्ट का काम देश ही नहीं, विदेशों में भी काफी पॉपुलर है. यह गांव स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाए गए आसनों के लिए प्रसिद्ध है. हां...हां... कहानी को आगे बढ़ाते हैं. 

होठों पर प्यारी सी हंसी और आंखों में हल्की सी शर्म लेकर अपनी कहानी सुनाते हुए जोधपुर के यह व्यक्ति बताते हैं कि ममता जी और मैं एक ही स्कूल में पढ़ते थे. हमारे परिवार एक-दूसरे के अच्छे जानकार थे. हम दोनों को परिवार वाले जब भी देखते थे तो हमेशा यही कहते थे कि 'इस दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल लेना चाहिए'. बस फिर क्या था, जब हम बड़े हुए तो तुरंत ही हमारी शादी कर दी गई. कल तक जिसके साथ मैं स्कूल में पढ़ाई करता था, वह ममता आज मेरी पत्नी बन चुकी थी. जिंदगी के पन्नों को पलटते हुए बताते हैं कि शादी के बाद ममता जी ने हमारे खानदानी कारपेट बनाने के बिजनेस को ज्वाइन कर लिया. 

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इसे प्यार कहें या चमत्कार, ममता जी के फैमिली बिजनेस ज्वाइन करते ही बिजनेस तेजी से फलने-फूलने लगा. उनकी डिजाइन सेंस काफी अच्छी है. ग्राहकों से बात करना उन्हें बखूबी आता था. वह अंग्रेजी नहीं जानती थी लेकिन फिर भी फैमिली बिजनेस को अच्छे तरीके से हैंडल करना शुरू किया. हंसते हुए बताते हैं कि ममता जी क्या, हममें से किसी को भी अंग्रेजी बोलनी नहीं आती थी. 

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एक बार हमारे जोधपुर विदेशी मेहमान निक और उनकी पत्नी आए. वह दोनों यूएस से थे. निक और उनकी पत्नी यह देखने आए थे कि जोधपुर के बुनकर कैसे कारपेट बुनते हैं? ममता जी ने उनसे बात की और उन्होंने हमसे थोक में कालीन खरीदे. इसके बाद उन्होंने हमसे पूछा कि क्या वे कुछ दिनों के लिए हमारे साथ रह सकते हैं?

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उनकी यह बात सुनते ही हमें हमारे 'अतिथि देवो भव' सिंद्धांत की याद आ गई और हमने बेहद गर्मजोशी से उस विदेशी जोड़े का स्वागत किया. अब हमने उन्हें रहने को कह तो दिया लेकिन यह बात भी परेशान कर रही थी कि हमारे कच्चे-पक्के घर में पहले से ही 17 लोग रहते थे. अब दो और हो गए, कैसे मैनेज करेंगे? फिर सब आराम से हो गया. हमारे विदेशी मेहमान हमारे साथ करीब एक महीने रुके. हमारी तरह उन्हें भी खुले आसमान के नीचे सितारों के साथ सोना पसंद था. ममता जी रोज उनके लिए देसी स्टाइल में चूल्हे पर खाना बनाती थी. जब उनके जाने का समय आया तो दोनों ने आतिथ्य के लिए पैसे देने चाहे लेकिन हमने मना कर दिया. फिर भी उन्होंने एक लिफाफा छोड़ दिया. जब वे चले गए तो हमने उन्हें याद किया, लेकिन हमें नहीं पता था कि यह सिर्फ शुरुआत थी.

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आने लगे थे कई मेहमान
निक और उनकी पत्नी के वापस जाने के बाद मैं और ममता अपनी जिंदगी में फिर से व्यस्त हो गए. उस विदेशी जोड़े ने वापसी के बाद अपनी धरती पर हमारी इतनी तारीफ की कि एक महीने के अंदर हमारे घर में नए-नए विदेशी मेहमानों का आना शुरू हो गया. उन सभी को लोकल गांव का अनुभव बेहद पसंद आ रहा था. और अब हमारी कच्ची-पक्की झोपड़ी 'होमस्टे' बन गई थी. इस छोटी सी झोपड़ी को ऑफशियल करने से पहले मैं काफी नर्वस महसूस कर रहा था लेकिन ममता जी ने प्यार से मुझे समझाया 'जो होगा, अच्छा होगा'. इसके बाद मानों मुझमें अलग सी हिम्मत आ गई थी और पहले से ज्यादा कॉन्फिडेंट महसूस कर रहा था. 

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नहीं आती थी अंग्रेजी
जिंदगी किस तरह से आगे बढ़ रही थी, इसका जिक्र करते हुए वह बताते हैं कि अब बिजनेस तो शुरू कर लिया था लेकिन अंग्रेजी फिर भी नहीं आती थी. एक बार मुझसे एक मेहमान ने पूछा कि 'लंच'? यकीन मानिए उस वक्त मुझे लंच तक का मतलब नहीं पता था. मैंने उसे सीधे शब्दों में मना कर दिया था. कुछ देर बाद मैंने उन्हीं मेहमानों को दाल-बाटी खाने के लिए बुलाया तो उनकी हंसी छूट गई. हम सब पेट पकड़कर खूब हंसे. बस इसी तरह की टूटी-फूटी अंग्रेजी के साथ हमारी जिंदगी और बिजनेस दोनों की ही गाड़ी आगे चल पड़ी. मैंने धीरे-धीरे अंग्रेजी सीख ली. अब मैं काफी अच्छी अंग्रेजी बोल सकता हूं. 

मेहमानों के लिए अब बना ली 8 झोपड़ियां 
जैसे-जैसे समय गुजरता गया, हमने 8 झोपड़ियां विदेशी मेहमानों के लिए तैयार कर लीं. हमने विदेशी मेहमानों के ठहराव व्यवस्था की जानकारी के लिए एक वेबसाइट भी बनाई और मिट्टी के बर्तन जैसे अनुभव जोड़े. अब हमारे पास दूर-दूर से विदेशी मेहमान होम स्टे के लिए आते हैं. मुझे यह बताने में बेहद खुशी होती है कि यह सब ममता जी का दिमाग है. 

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बीवी चाहिए थी, बिजनेस पार्टनर मिल गई
आंखों में अलग सी खुशी और चमक के साथ अपने खूबसूरत हमसफर ममता जी की तारीफों के पुल बांधते हुए वह कहते हैं कि मैं प्यार से कई बीर ममता जी को छेड़ता भी हूं कि मुझे तो 'बीवी चाहिए थी, बिजनेस पार्टनर मिल गई'. पर सच कहूं तो मुझे ममता जी से बेहतर न तो हमसफर मिल सकती थी और न ही बिजनेस पार्टनर. 

इतनी सपोर्टिव और समझने वाली हमसफर ममता जी को पाकर शायद उनका दिल यही कहता होगा - 

मेरी डूबती हुई क़श्ती यूं संभल गई,
तुम मिली तो लगा जिंदगी मुकम्मल हो गई....

 

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