Eating food in Bhandara: सनातन धर्म और सिख धर्म में पूजा और भक्ति के बाद भगवान और गुरुओं को भोग लगाने की परंपरा है, जिसके बाद भंडारे या लंगर का आयोजन किया जाता है. यह परंपरा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि इसमें सभी लोगों को समान रूप से भोजन प्रदान किया जाता है, जो समानता और एकता का प्रतीक है. सिख धर्म में तो गुरुद्वारों में 24 घंटे लंगर चलता है, जहां सभी लोगों को निशुल्क भोजन प्रदान किया जाता है. यह परंपरा न केवल सामाजिक समरसता को बढ़ावा देती है, बल्कि यह गरीबों और जरूरतमंदों की मदद भी करती है.
भगवान का प्रसाद होता है भंडार और लंगर
भंडारा या लंगर भगवान का प्रसाद माना जाता है, और इसे खाने को शुभ माना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह प्रसाद हर किसी के लिए उपयुक्त नहीं है? आज हम आपको बताएंगे कि किन लोगों के लिए भंडारा या लंगर खाना शुभ होता है और किन लोगों के लिए यह अशुभ हो सकता है. कुछ विशेष परिस्थितियों में कुछ लोगों को भंडारा खाने से बचना चाहिए, जैसे कि जिन्हें धार्मिक या सpiritual गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति नहीं है, या जिन्हें किसी विशेष धार्मिक अनुष्ठान के दौरान उपवास करना हो.
सनातन धर्म में भंडारे का महत्व
हिंदू धर्म में भंडारे का विशेष महत्व है, जो न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि समाज में गरीबों और जरूरतमंदों की मदद का भी एक तरीका है. भंडारा उन लोगों के लिए होता है जो एक वक्त की रोटी के लिए भी असमर्थ होते हैं. शास्त्रों के अनुसार, भंडारा खाने के लिए कुछ नियम और शर्तें भी हैं, जिनका पालन करना आवश्यक है. यह भंडारा हर किसी के लिए नहीं है, बल्कि विशेष रूप से उन लोगों के लिए है जो वास्तव में इसकी आवश्यकता रखते हैं. आइए विस्तार से जानते हैं कि कौन से लोग भंडारा खा सकते हैं और कौन से नहीं.
जान लें ये बात...
हिंदू शास्त्रों में भंडारे के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है, जिसमें यह बताया गया है कि किन लोगों के लिए भंडारा खाना शुभ होता है और किन लोगों के लिए यह अशुभ माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार, भंडारा उन लोगों के लिए होता है जो गरीब, असहाय और जरूरतमंद होते हैं. इसके अलावा, तीर्थयात्री, साधु-संत और विद्यार्थी भी भंडारा खा सकते हैं. लेकिन जो लोग स्वयं धनवान और संपन्न होते हैं, उन्हें भंडारा खाने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे उनकी आध्यात्मिक उन्नति में बाधा आ सकती है.
शास्त्रों के अनुसार, भंडारा उन लोगों के लिए आयोजित किया जाता है जिन्हें एक वक्त का खाना भी नसीब नहीं होता. यह परंपरा गरीबों और जरूरतमंदों की मदद के लिए है, जो अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होते हैं. शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि अगर कोई संपन्न व्यक्ति भंडारे का खाना खाता है, तो वह उन गरीबों के हक का निवाला छीनता है, जो एक वक्त का निवाला भी नसीब नहीं कर पाते. इससे न केवल गरीबों का हक मारा जाता है, बल्कि यह आध्यात्मिक रूप से भी अनुचित माना जाता है.
डिस्क्लेमर
ये लेख सामान्य जानकारी और लोगों द्वारा बताई गई कहानियों पर आधारित है, इसकी ज़ी मीडिया पुष्टि नहीं करता है.
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