Nagaur: दधिमती मां का होता है दूध से अभिषेक, नवरात्रि पर होती है विशेष पूजा
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Nagaur: दधिमती मां का होता है दूध से अभिषेक, नवरात्रि पर होती है विशेष पूजा

नागौर की जायल तहसील के गोठ मांगलोद गांव में दधिमति माता का मन्दिर स्थित है. इस मन्दिर की गिनती उत्तरी भारत के प्राचीन मन्दिरों में होती है. दधिमति माता मंदिर 52 शक्तिपीठ में से एक है. 

दधिमती माता मंदिर गोठ मांगलोद

Nagaur: नागौर की जायल तहसील के गोठ मांगलोद स्तिथ दधिमती माता मंदिर में नवरात्रि घट स्थापना की गई. गोठ और मांगलोद गांव के बीच दाधीच ब्राह्मणों की कुलदेवी दधिमती माता का 2000 साल पुराना मंदिर है. इसका निर्माण गुप्त संवत 289 को हुआ था. इसकी विशेषता यह है कि मंदिर के गुंबद पर हाथ से पूरी रामायण उकेरी गई है. इस नवरात्रि महोत्सव में मन्दिर में कलश स्थापना का विशेष महत्व है. मां के भक्त कलश रखकर नवरात्रि की शुरुआत करते हैं और नवरात्रि के दौरान सप्तमी को निकलने वाली रेवाड़ी व अष्टमी के दिन भरने वाले मेले में हजारों की तादाद में देश भर से भक्त पहुंचते हैं.

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गोठ मांगलोद गांव में दधिमति माता का मन्दिर स्थित है. इस मन्दिर की गिनती उत्तरी भारत के प्राचीन मन्दिरों में होती है. दधिमति माता मंदिर 52 शक्तिपीठ में से एक है. चैत्र माह के नवरात्रि में लगने वाले मेले में यहां सम्पूर्ण भारत से श्रद्धालु पहुंचते हैं. भारत का एक मात्र दधिमती माता मंदिर ही है जहां भक्तों द्वारा प्रतिदिन माता का दूध से अभिषेक किया जाता है. दधिमती माता मन्दिर में चैत्र माह के नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि में दो बार विशाल मेला लगता है. माता के विशेष चमत्कार के चलते दधिमति मन्दिर देशभर के लोगों की प्रमुख आस्था का केंद्र है.

संरक्षित स्मारक में शुमार है मंदिर

मंदिर परिसर में खंभे और गुंबद छीतर के पत्थरों से बने हैं, जिनपर बारीक कारीगरी की गई है. मंदिर परिसर के गुंबद की एक और खास बात यह है कि इस पर रामायण से जुड़े प्रसंगों को पत्थर पर बारीक कारीगरी के माध्यम से उकेरा गया है. नवरात्रि मेले में सप्तमी को माता की सवारी निकलती है, जिसमें सम्पूर्ण प्रदेश से लाखों की तादाद में भीड़ जुटती है. मंदिर परिसर के पास बने कपाल कुण्ड की एक अलग ही विशेषता है, जो कभी ना सूखने वाला कपाल कुंड है मंदिर से जुड़े लोगों के अनुसार कपाल कुंड में सात बावड़ियां है, जिनमें भूगर्भ का पानी लगातार चलता रहता है, यही कारण है कि यहां कभी पानी सूखता नहीं है. नवरात्रि में सप्तमी के दिन मंदिर से एक पालकी में देवी के प्रतीक स्वरूप को बिठाकर कपाल कुंड तक लाया जाता है. इस मंदिर के ऐतिहासिक महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसे सरकार के पुरातत्व विभाग ने संरक्षित स्मारक घोषित किया है.

Reporter - Damodar Inaniya

 

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