हिंदू बहुल इलाके में उर्दू प्रेम और हिंदुओं को कौन उर्दू पढ़ाना चाहता है. हैरानी की बात है कि इस गांव में बच्चों को संस्कृत से ज्यादा उर्दू पढ़ाने पर ध्यान दिया जाता है. परिवार के लोग भी उर्दू पढ़ने और पढ़ाने पर जोर डाल रहे है.
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Tonk News: राजस्थान के टोंक जिले में एक अनुमान के अनुसार हिंदुओं की आबादी करीब 14 लाख है. वहीं मुसलमानों की आबादी करीब 1 लाख 77 है. जयपुर से लगभग 85 किलोमीटर दूर है सीदड़ा. बात करें सीदड़ा कस्बे की तो ये पूरा इलाका हिंदू बहुल है यहां मुस्लिम आबादी नगण्य है. फिर यहां के लोगों में उर्दू प्रेम क्यों है. यहां के स्कूलों में हर कोई उर्दू पढ़ना चाहता है. वहीं इस गांव के करीब 1 हजार युवा उर्दू की पढ़ाई कर फर्राटेदार उर्दू बोल रहे भी रहे है और तालीम भी दे रहे है.
टोंक को छोटी काशी के रूप में भी जाना जाता है. इसके अलावा, टोंक के इतिहास में बहुत सारे विद्वान थे जिन्होंने कई कविताएं और किताबें लिखीं, उन्हें संस्कृत का गहरा ज्ञान था. ऐसे में हिंदू बहुल इलाके में उर्दू प्रेम और हिंदुओं को कौन उर्दू पढ़ाना चाहता है. हैरानी की बात है कि इस गांव में बच्चों को संस्कृत से ज्यादा उर्दू पढ़ाने पर ध्यान दिया जाता है. परिवार के लोग भी उर्दू पढ़ने और पढ़ाने पर जोर डाल रहे है.
सीदड़ा गांव में दावा किया जाता है कि पूरे टोंक जिले से बने उर्दू भाषा के सरकारी शिक्षकों की संख्या सिर्फ सीदड़ा गांव से है.सीदड़ा गांव के रहने वाले लोगों का मानना है कि उर्दू ने ही गांव के युवाओं का सरकारी नौकरी का सपना पूरा किया है तो क्या नौकरी के चक्कर में इस गांव के युवा उर्दू की तालीम ले रहे है या इसके पीछे और भी है कोई वजह.
सीदड़ा में उर्दू पढ़ने के बाद यहां के युवा बीएड कर चुके हैं, जिन्हें अब टीचर भर्ती का इंतजार है. इन युवाओं का मानना है कि बार भर्ती आने पर ज्यादा से ज्यादा टीचर बनकर नौकरी हासिल करेंगे.
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राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल सीदड़ा के प्रिंसिपल बीरबल मीणा ने बताया कि आज से करीब 24 साल पहले यहां के कुछ बच्चे तहसील मुख्यालय निवाई में पढ़ने जाते थे. तब यहां का स्कूल अपर प्राइमरी होता था. यहां पढ़ने वाले लड़कों ने उर्दू सब्जेक्ट लेकर पढ़ना शुरु किया. इसके बाद इन लड़को ने बीएड कर लिया. बीएड करने के बाद आसानी से उनका शिक्षक भर्ती में चयन हो गया. तब से यहां के युवा और बच्चे उर्दू के सहारे अपना भविष्य बना रहे है. इसके बाद यहां के बच्चों में उर्दू पढ़ने का जूनून सवार हो गया. अब तो यहां लगभग सभी बच्चे संस्कृत की जगह उर्दू को ही वैकल्पिक विषय में पढ़ना पसंद करते हैं.