सैम मानेकशॉ: देश के ताकतवर आर्मी चीफ, इंदिरा गांधी को भी देते थे बेबाकी से जवाब
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सैम मानेकशॉ: देश के ताकतवर आर्मी चीफ, इंदिरा गांधी को भी देते थे बेबाकी से जवाब

बचपन से ही सैम अपनी निडरता और बहादुरी के लिए जाने जाते थे. और यही वजह है कि लोगों ने उन्हें 'सैम बहादुर' नाम भी दिया. वो भारतीय सेना के पहले ऐसे जनरल थे जिनको प्रमोट कर फील्ड मार्शल की रैंक दी गई थी. 

फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) भारतीय सेना (Indian army) के ऐसे जांबाज रहे हैं जिन्हें उनकी बहादुरी और जिंदादिली के लिए याद किया जाता है. उन्हीं के नेतृत्व में भारत ने साल 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध जीता था. उस दौरान सैम भारतीय सेना के चीफ थे. 27 जून 2008 इसलिए खास है क्योंकि सैम मानेकशॉ इसी दिन दुनिया को अलविदा कह गए थे.

  1. सैम मानेकशॉ को 'सैम बहादुर' भी कहा जाता था
  2. सैम भारतीय सेना के पहले ऐसे जनरल थे जिनको प्रमोट कर फील्ड मार्शल की रैंक दी गई थी
  3. सैम को उनकी जिंदादिली और बेबाकी के लिए आज भी याद किया जाता है

3 अप्रैल, 1914 को जन्मे सैम, एक पारसी थे और भारत के पहले फील्ड मार्शल थे. उनका पूरा नाम था होरमुसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ. बचपन से ही सैम अपनी निडरता और बहादुरी के लिए जाने जाते थे. और यही वजह है कि लोगों ने उन्हें 'सैम बहादुर' नाम भी दिया. वो भारतीय सेना के पहले ऐसे जनरल थे जिनको प्रमोट कर फील्ड मार्शल की रैंक दी गई थी. 

उनकी जिंदादिली का एक किस्सा बड़ा मशहूर है. 1942 में बर्मा में जापान से लड़ाई में सैम को 7 गोलियां लगी थीं, और उनका बचना बहुत मश्किल था. गंभीर हालत में सैम को अस्पताल लाया गया. ऑपरेशन टेबल पर डॉक्टर ने उनसे पूछा- आपके साथ क्या हुआ था? तो उन्होंने हंसते हुए कहा- 'मुझे एक खच्चर ने लात मार दी है'. उनके जज्बे के आगे मौत भी हार गई और वो ऑपरेशन सफल रहा.

सैम मानेकशॉ बेहद बेबाक थे और वो कितने बेबाक थे वो इस किस्से से समझा जा सकता है. भारत-पाकिस्तान के बीच जब 1971 का युद्ध शुरू हुआ था, उस समय इंदिरा गांधी चाहती थीं कि वह मार्च के महीने में लड़ा जाए. लेकिन सैम जानते थे कि युद्ध के लिए तैयारी पूरी नहीं है, ऐसे में उन्होंने इंदिरा को लड़ने के लिए मना कर दिया था. उनकी 'ना' सुनने के बाद इंदिरा गांधी नाखुश थीं, लेकिन सैम ने कहा, अभी हमारी सेना की तैयारी नहीं है, यदि अभी युद्ध लड़ा तो हार जाएंगे. क्या आप जीत नहीं देखना चाहती? सैम मानेकशॉ ही थे जो प्रधानमंत्री की बात को इनकार करने की हिम्मत रखते थे. इंदिरा गांधी को मना करने के सात महीने के बाद सैम मानेकशॉ ने युद्ध के लिए हामी भरी थी.

बांग्लादेश युद्ध में भारत को मिली जीत के बाद सैम मानेकशॉ काफी लोकप्रिय हो चुके थे. तब ऐसी अफवाहें उड़ने लगी थीं कि वे तख्तापलट कर सकते हैं. तब इंदिरा गांधी ने उन्हें बुलाकर उनसे पूछा- 'सुना है तुम तख्तापलट करने वाले हो. बोलो क्या ये सच है?' सैम मानेकशॉ ने कहा- 'आपको क्या लगता है? आप मुझे इतना नाकाबिल समझती हैं कि मैं ये काम भी नहीं कर सकता!' फिर रुक कर वे बोले- 'देखिये प्राइम मिनिस्टर, हम दोनों में कुछ तो समानताएं हैं. मसलन, हम दोनों की नाक लंबी है पर मेरी नाक कुछ ज्यादा लंबी है आपसे. ऐसे लोग अपने काम में किसी का टांग अड़ाना पसंद नहीं करते. जब तक आप मुझे मेरा काम आजादी से करने देंगी, मैं आपके काम में अपनी नाक नहीं अड़ाऊंगा.'

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