मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) ने एक मामले में मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि धर्म को जीवन के ऊपर नहीं रखा जा सकता. कोर्ट ने यह टिप्पणी ने एक मंदिर को खोले जाने की याचिका पर की.
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हरीश भारद्वाज,नई दिल्ली: मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) ने एक याचिका पर फैसला देते हुए कहा कि धर्म का अधिकार जीवन के अधिकार से बड़ा नहीं है. कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को आदेश दिया कि वह कोविड-19 प्रोटोकॉल (Corona Protocol) से समझौता किए बिना श्रीरंगम रंगनाथस्वामी मंदिर (Shriram Ranganathaswamy Temple) में धार्मिक रस्मों के आयोजन की संभावना तलाश करे.
मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी (Sanjeeb Banerjee) ने बुधवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मौखिक रूप से टिप्पणी की, ‘धार्मिक रीति-रिवाज जनहित और जीवन के अधिकार का विषय होने चाहिए.’उन्होंने कहा, ‘धर्म का अधिकार जीवन के अधिकार से बड़ा नहीं है. यदि सरकार को महामारी की स्थिति में कदम उठाने हैं तो हम हस्तक्षेप नहीं चाहेंगे.’
मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति सेंथिलकुमार राममूर्ति की पीठ ने राज्य सरकार को तलब किया. कोर्ट (Madras High Court) ने सरकार कोआदेश जारी किया कि वह कोरोना प्रोटोकॉल से समझौता किए बिना तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगम रंगनाथस्वामी मंदिर (Shriram Ranganathaswamy Temple) में उत्सवों और रस्मों के आयोजन की संभावना तलाश करे.
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अदालत (Madras High Court) ने सरकार को इस संबंध में धार्मिक नेताओं के साथ विमर्श करके एक विस्तृत रिपोर्ट दायर करने का भी निर्देश दिया. कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई छह सप्ताह के लिए स्थगित कर दी.
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