देश में स्वागत पर नाराजगी का भाव क्यों? यूक्रेन से लौटे छात्र क्यों भूल गए अपने संस्कार
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देश में स्वागत पर नाराजगी का भाव क्यों? यूक्रेन से लौटे छात्र क्यों भूल गए अपने संस्कार

यूक्रेन से बचाकर भारत लाए गए छात्रों की एयरपोर्ट पर दिखाई गई अभद्रता के चलते अब उनकी आलोचना हो रही है. साथ ही उनके चरित्र पर भी अनेक सवाल उठ रहे हैं. 

 

 

देश में स्वागत पर नाराजगी का भाव क्यों? यूक्रेन से लौटे छात्र क्यों भूल गए अपने संस्कार

नई दिल्ली: भारत सरकार यूक्रेन के Sumy (सुमी) में फंसे सभी छात्रों को निकालने में कामयाब रही है. इन छात्रों को 12 बसों में Poltava (पोल्तावा) शहर ले जाया गया है, जो मध्य यूक्रेन में है. इन बसों में भारतीय दूतावास के अधिकारी और अंतर्राष्ट्रीय संस्था Red Cross के भी लोग हैं. 

  1. दुनिया में सबसे बड़ा बिजनेस बना युद्ध
  2. ISIS ने पहचान ली थी लोगों की मानसिकता
  3. रूस-यूक्रेन के लोग देश के साथ खड़े

जब भारत सरकार ने जब अपने इन छात्रों को सुरक्षित वहां से निकाला तो वहां पर मौजूद रशिया के सैनिको ने कोई गोलाबारी नहीं की और इन बसों को Safe Passage दिया. ये भारत की एक बहुत बड़ी सफलता है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पुतिन और जेलेंस्की से अपनी हर बातचीत में वहां फंसे हुए भारतीयों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया और उनसे बार बार कहा कि उनकी सेनाएं भारत के नागरिकों को वहां से निकलने में मदद करें, जो कि मंगलवार को हो गया.

भारत सरकार ने मंगलवार को 17 और देशों के नागरिकों को भी सुमी से Evacuate किया है. इनमें नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश और Tunisia जैसे देश शामिल हैं. ये छात्र और इनके परिवार भारत को दुआएं दे रहे होंगे. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि ऑपरेशन गंगा के तहत यूक्रेन से भारत लौटे, हमारे हज़ारों छात्र भी क्या अपनी सरकार को Thank You कह रहे हैं?

दुनिया में सबसे बड़ा बिजनेस बना युद्ध

क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा बिज़नेस क्या है? दुनिया में सबसे बड़ा बिज़नेस है, युद्ध का. दुनिया में जब भी कहीं युद्ध होता है तो हज़ारों और लाखों परिवार बर्बाद होते हैं. लेकिन साथ ही करोड़ों लोग आबाद भी होते हैं. यानी वो युद्ध के व्यापार से पैसा कमाते हैं. जिस भी देश में युद्ध होता है, वो देश दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार बन जाता है. दुनिया की बड़ी बड़ी कम्पनियां, उस देश में हथियार बेचती हैं, तेल बेचती हैं, बिजली और पानी बेचती हैं. युद्धक्षेत्र में पुननिर्माण करने के नाम पर हज़ारों करोड़ों रुपये कमाए जाते हैं. मीडिया के लिए भी युद्ध अपनी टीआरपी बढ़ाने का एक बहुत बड़ा अवसर होता है.

90 के दशक में जब खाड़ी युद्ध हुआ था, तब दुनिया के लोगों ने पहली बार किसी युद्ध का Television पर लाइव प्रसारण देखा था. उस युद्ध के बाज़ार से ना जाने कितने News Channels और बड़े बड़े पत्रकार पैदा हुए, जिन्होंने उस युद्ध को बेच कर पैसा भी कमाया और लोकप्रिया भी हासिल की.

दुनियाभर के लोगों को टीवी पर युद्ध की तस्वीरें देखना बहुत अच्छा लगता है और पूरी दुनिया में हिंसा की तस्वीरें ध्यान आकर्षित करने का सबसे असरदार माध्यम मानी जाती हैं. इसलिए जब भी दुनिया में कहीं कोई आंतकवादी हमला होता है, बॉम्ब ब्लास्ट होता है और जब दो देशों के बीच युद्ध होता है तो मीडिया की Viewership अचानक बढ़ जाती है.

ISIS ने पहचान ली थी लोगों की मानसिकता

ISIS के आतंकवादियों ने इस ट्रेंड को बहुत पहले ही पहचान लिया था और इसीलिए उन्होंने अपने कैदियों के सिर कलम करने के वीडियो जारी करने शुरू कर दिए थे. इसी तरह अमेरिका में हुए 9/11 हमले में जब लोगों ने दो विमानों को World Trade Centre के Towers से टकराते हुए देखा तो वो हैरान रह गए. दुनियाभर की मीडिया कम्पनियों ने इन तस्वीरों को जमकर बेचा. इसलिए इस बार का यूक्रेन- रशिया युद्ध भी मीडिया के बाजार में जबरदस्त तरीके से बिक रहा है. ये बात तो हो गई व्यापार की. लेकिन यही युद्ध किसी भी देश के लोगों के असली चरित्र को भी दुनिया के सामने उजागर करता है.

युद्ध की इन्हीं परिस्थितियों से पता चलता है कि कौन सा देश, कितना बहादुर है या कितना कायर है? क्योंकि मुश्किल घड़ी में ही इंसान के चरित्र की और उसके धैर्य की असली परीक्षा होती है. जैसे इस बार के युद्ध में लोगों को पता चला कि यूक्रेन के नागरिक अपने देश से कितना प्यार करते हैं और वो अपने देश को बचाने के लिए कितनी शिद्दत से लड़ रहे हैं.

रूस-यूक्रेन के लोग देश के साथ खड़े हैं

इसी तरह रशिया के लोग भी इस युद्ध में अपने देश के साथ खड़े हैं और वहां पर भी तमाम प्रतिबंधों के बावजूद किसी ने भी अपने देश की सेना और अपने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ कुछ नहीं बोला है. यानी रशिया के लोग पूरी तरह से अपनी सरकार और अपनी सेना के साथ खड़े हैं.

इसी तरह इस युद्ध में पोलैंड जैसे देशों के लोगों का चरित्र भी पता चला है. जिस तरह से पोलैंड के लोगों ने दिल खोल कर यूक्रेन से आने वाले शरणार्थियों की मदद की, उन्हें अपने घरों में रहने की जगह दी, उससे पता चलता है कि पोलैंड के लोग कितने दयालु हैं और कितने बड़े दिलवाले हैं.

इन देशों के बाद इस युद्ध ने भारत के युवाओं के असली चरित्र के बारे में भी पूरी दुनिया को बता दिया. भारत के 18 हज़ार युवा छात्र यूक्रेन में रहते थे. उनमें से लगभग 96 प्रतिशत छात्रों को भारत सरकार सुरक्षित रूप से देश ले आई है.

भारतीय छात्रों ने दिखाई अभद्रता

इस संकट के दौरान हमारे देश के युवाओं ने पहली चीज ये बताई कि वो जल्द से जल्द वहां से भाग कर भारत आना चाहते थे और दूसरी चीज उन्होंने ये बताई कि उनमें यूक्रेन में रहने वाले बाकी देशों के छात्रों के मुकाबले सबसे कम धैर्य था. लेकिन सबसे ज्यादा शोर भी इन्हीं छात्रों ने मचाया.

पूरी दुनिया में चाहे आप कोई भी भाषा बोलते हो. एक शब्द होता है, जिसे अंग्रेजी में Thank You कहते हैं, हिन्दी में धन्यवाद कहते हैं और उर्दू में शुक्रिया कहते हैं. दुनिया में आप चाहे किसी भी देश के हों, किसी भी धर्म के हों, लोग छोटी छोटी बात पर Thank You कहना नहीं भूलते. यहां तक कि आप किसी से रास्ता भी पूछते हैं तो उसे धन्यवाद ज़रूर बोलते हैं. लेकिन इस बार यूक्रेन से आए बहुत से भातीय छात्रों के अभद्र व्यवहार से पता चला कि वो ना तो अपने देश का सम्मान करते हैं, ना ही उन्हें पूरी दुनिया में अपने देश की छवि से कोई मतलब है और ना ही उन्हें किसी को दिल से धन्यवाद देना आता है. 

वो अपने देश के लोगों से मिल रही मदद को अपना हक समझ बैठे हैं. कोई भी मदद जब आप हक की तरह स्वीकार करते हैं तो उसमें से खुशी और कृतज्ञता चली जाती है, सिर्फ शिकायत बचती है. और हमारे देश के बहुत सारे छात्र जब अपनी मातृभूमि पर सुरक्षित लौटे तो उनके चेहरे पर कृतज्ञता का भाव नहीं था. उनके चेहरे पर नाराज़गी थी, उनके चेहरे पर गुस्सा था. उनके चेहरे पर रोष था. अपने देश के प्रति एक हीन भावना थी. हम ऐसा नहीं कह रहे है कि सभी छात्रों ने ऐसा किया. ऐसे भी छात्र हैं, जो खुद को भारतीय होने पर गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. हालांकि बहुत से छात्र ऐसे भी हैं, जिनमें अपने देश के खिलाफ बहुत गुस्सा है.

अपने संस्कार भूल गए छात्र

भारत सरकार ने इन छात्रों की वापसी के लिए अपने चार सीनियर मंत्रियों को यूक्रेन के पड़ोसी देशों में भेजकर सबसे बड़ा ऑपरेशन चलाया. इसके तहत विशेष विमानों को इन देशों में भेजा गया. जब ये छात्र हवाई अड्डे पर उतरे और वहां भारत सरकार के अलग अलग मंत्री हाथों में गुलाब का फूल लेकर, सिर झुका कर और हाथ जोड़ कर इनका स्वागत कर रहे थे, इन्हें Welcome Back कह रहे थे तो इन छात्रों ने उनकी तरफ़ देखा तक नहीं. उनके नमस्ते का जवाब तक नहीं दिया. इस युवा पीढ़ी को देख कर आज मन में ये विचार ज़रूर आता है कि अगर कभी भारत पर यूक्रेन जैसी आफत आ गई तो हमारे देश के युवा और हमारे देश के लोग कैसा व्यवहार करेंगे.

इन तस्वीरों को देख कर आज आपको ऐसा लग रहा होगा कि इन छात्रों को इस बात की बिल्कुल भी ख़ुशी नहीं है कि भारत सरकार उन्हें यूक्रेन के युद्ध क्षेत्र से सुरक्षित निकाल लाई. बल्कि इन छात्रों के व्यवहार को देख कर ऐसा लगता है कि जैसे ये देश के लिए कुछ करने के लिए यूक्रेन गए थे. ऐसा करके इन छात्रों ने बहुत बड़ा त्याग किया था. इन छात्रों में नाराज़गी इस बात की है कि वो तो यूक्रेन में भारत का नाम रोशन करने के लिए गए थे, लेकिन जब संकट की घड़ी आई तो सरकार ने उनके लिए उतना नहीं किया, जितना वो चाहते थे.

अपने फायदे के लिए विदेश गए थे छात्र

लेकिन सच ये है कि ये छात्र बेहतर अवसर और अच्छे जीवन के लिए अपने देश को छोड़ कर विदेश गए थे. अपने परिवार का पैसा लगा कर ये वहां पहुंचे थे. इसमें कोई बुराई नहीं है. अगर इन्हें लगता है कि इन्हें अपने देश से अच्छी Opportunity इन देशों में मिल सकती है तो इन छात्रों को वहां जाना चाहिए. लेकिन एक बार सोच कर देखिए, जो लोग अपने संसाधन से, अपनी मर्जी से अपना जीवन अच्छा बनाने के लिए देश छोड़ कर गए है. अगर वो युद्ध होने पर ऐसा सोचते हैं कि उन्हें देश वापस लाना सरकार की जिम्मेदारी है और ये उनका हक है, तो ये सही नहीं हो सकता.

मानवीय आधार पर इन छात्रों की वापसी के लिए भारत सरकार जो कर सकती थी, उसने किया, लेकिन इन छात्रों द्वारा इस मदद को हक मान लेना और सरकार के प्रति और अपने देश के प्रति हीन भावना रखना, क्या सही हो सकता है. आज आपको ये फैसला करना है.

इन छात्रों के पास दो रास्ते थे. या तो ये जैसे अपने खर्च पर इन देशों में गए थे, वैसे ही अपने खर्च पर वापस भी आ जाते. दूसरा रास्ता ये था कि अगर इन्हें ऐसा लगता है कि भारत से ज्यादा इन देशों में उनके लिए अच्छे अवसर हैं तो उन्हें वहीं रुक कर यूक्रेन के नागरिकों की मदद करनी चाहिए थी. आज यूक्रेन के पुरुष नागरिक युद्ध क्षेत्र को छोड़ नहीं भाग रहे हैं बल्कि वो दुनिया को ये बता रहे हैं कि एक सच्चा नागरिक अपने देश की रक्षा के लिए टैक्स और जान दोनों खुशी खुशी दे सकता है. सोचिए, यूक्रेन के इन नागरिकों ने एक बार भी अपनी सरकार को ये शिकायत नहीं की कि उन्हें इस युद्ध की आग में झोंक दिया गया है. बल्कि वो अपनी स्वेच्छा से इस लड़ाई में भाग ले रहे हैं. लेकिन भारत में उल्टा हो रहा है. भारत सरकार मुश्किल परिस्थितियों में भी अपने छात्रों को यूक्रेन से सुरक्षित देश लेकर आई, लेकिन इनमें से बहुत से छात्रों को शिकायत है कि उन्हें खाना और पानी समय पर नहीं मिला.

अभद्र व्यवहार से दिखा दिया असली चरित्र

आज शिकायत करने वाले इन छात्रों को ये समझना होगा कि वो युद्ध क्षेत्र में फंसे हुए थे. वो किसी दुर्घटना का शिकार नहीं हुए थे कि भारत सरकार आसानी से उन्हें रेस्क्यू करके देश ले आती. अमेरिका और चीन जैसे बड़े बड़े देशों ने तो अपने नागरिकों को सीधे मदद पहुंचाने से भी इनकार कर दिया था. लेकिन भारत सरकार ने इस चुनौती को स्वीकार किया और वो अपने छात्रों को देश लेकर आई. लेकिन इन छात्रों ने अभद्र व्यवहार करके अपना असली चरित्र पूरी दुनिया को बता दिया.

हमारे देश का एक खास वर्ग, Liberals और कुछ डिज़ायनर पत्रकार ये कह रहे हैं कि भारत सरकार ये सब पब्लिसिटी के लिए कर रही है. जबकि ऐसा नहीं है. ये सब ये बताने के लिए है कि जब दुनिया की बड़ी बड़ी महाशक्तियों ने अपने नागरिकों को संकट के बीच यूक्रेन में बिना मदद के छोड़ दिया, तब भारत सरकार अपने नागरिकों को सुरक्षित देश लेकर आई. ये कोशिश देश के 140 करोड़ लोगों में आत्मविश्वास भरने के लिए है. ये पूरी दुनिया को भारत की नई ताक़त के बारे में बताने के लिए है कि अब हमारा देश मुश्किल की घड़ी में दूसरे देशों की मदद का इंतज़ार नहीं करता. इन छात्रों को ये भी समझना चाहिए कि भारत सरकार के ये मंत्री उनके सेवक हैं, नौकर नहीं है. सेवक और नौकर में एक बड़ा अंतर होता है, जिसे शायद इन्होंने अब तक नहीं समझा है. सच हमेशा कड़वा होता है इसलिए हो सकता है कि आपको हमारी बातें आज अच्छी ना लगें. लेकिन हम इस सच को बिना संकोच के आपके सामने रखना चाहते हैं.

अपने देश के प्रति दिखाई हीनभावना

यूक्रेन से लौटे लोगों में ऐसे छात्रों की संख्या भी काफ़ी ज़्यादा है, जो अपने Pet Dogs और Cats के साथ भारत आए हैं. पहले इन छात्रों को Evacuation में अपने साथ Pet Dogs को लाने की इजाज़त नहीं थी. लेकिन भारत सरकार ने विचार विमर्श करने के बाद इसकी भी अनुमति दे दी और इन सभी छात्रों और उनके Pets को भारतीय वायु सेना के विमानों में देश लाया गया. लेकिन इनमें में कई छात्रों की सोच देखिए कि इसके बावजूद ये अपने देश को हीन भावना से देखते हैं और सरकार के प्रति धन्यवाद का भाव भी इनमें नहीं है.

आज यूक्रेन के आए इन युवा छात्रों में और वर्ष 1999 के कंधार हाई जैक में बन्धक बनाए गए लोगों के परिवारों में कोई फर्क नहीं है. जिस तरह इन छात्रों ने अपना असली चरित्र दुनिया को बताया है, ठीक वैसा ही वर्ष 1999 में भी हुआ था.

उस समय आतंकवादियों ने Indian Airlines की Flight IC-814 को काठमांडू और दिल्ली के बीच Hijack कर लिया था और 189 यात्रियों और Crew Members की रिहाई के बदले, तत्कालीन भारत सरकार को मसूद अज़हर समेत तीन आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा था. उस समय जनता के दबाव, उनके गुस्से और आक्रोश के सामने भारत की तत्कालीन सरकार को झुकना पड़ा था.

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कंधार विमान अपहरण में भी दिखा था ऐसा दबाव

यानी उस समय किसी को राष्ट्र की परवाह नहीं थी. सबको IC-814 में फंसे अपने लोगों की फ़िक्र थी. विमान में फंसे लोगों की जान बचाने के लिए सरकार हर संभव कोशिश कर रही थी. हर रणनीति पर विचार किया जा रहा था. लेकिन लोगों का दबाव इतना ज़्यादा था और देश में माहौल ऐसा बना दिया गया था कि राष्ट्र कमज़ोर पड़ गया. उस समय बंधकों के परिवार बेचैन हो गए थे और वो सरकार पर तरह-तरह के आरोप लगा रहे थे. कुछ बंधकों के रिश्तेदारों ने तो प्रधानमंत्री आवास के बाहर भी प्रदर्शन किये थे. सबकी एक ही शिकायत थी कि सरकार बंधकों पर फैसला नहीं ले रही है.

उस समय भारत के मीडिया ने भी इन परिवारों के आंसुओं का लाइव टेलीकास्ट करके ऐसा माहौल बना दिया, जिससे ये छवि बनी कि भारत के लोग आतंकवादियों के सामने सरेंडर करना चाहते हैं और भारत का कोई भी परिवार कुर्बानी देने के लिए तैयार नहीं है. इस माहौल को बनाने में मीडिया का बड़ा रोल था और हमें खेद है कि उस समय ऐसी खबरों का प्रसारण जी न्यूज़ पर भी हुआ था. लेकिन हम आपसे कहना चाहते हैं कि उस समय हमसे त्रुटि हुई थी. हम भी इन परिवारों के आंसुओं के सामने बड़े मुद्दे को नहीं समझ पाए. आज हम सस्ती लोकप्रियता और टीआरपी के लिए ऐसा कुछ नहीं करेंगे.

आज आपको दो बातें समझनी है. पहली बात, इन छात्रों की नाराज़गी, इनके अपने फायदे के लिए है, राष्ट्रहित के लिए नहीं है. दूसरी बात, ये छात्र ऐसा करके भारत की छवि को नुकसान पहुंचा रहे हैं.

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