Samna Editorial: अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले शिवसेना के मुखपत्र सामना में एक लेख छपा है, जिसमें उद्धव ठाकरे की पार्टी ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार पर निशाना साधा है.
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Samna Editorial: अगले साल लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होंगे. लेकिन, चुनाव को लेकर अभी से बयानबाजी शुरू हो गई है. इस बीच शिवसेना के मुखपत्र सामना में एक लेख छपा है, जिसमें उद्धव ठाकरे की पार्टी ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार पर निशाना साधा है. सामना में लिखे संपादकीय में शिवसेना ने कहा है, 'अजित पवार ने कहा है कि हमने अपना धर्मनिरपेक्ष रुख नहीं छोड़ा है. शाहू, फुले, आंबेडकर के प्रगतिशील विचारों का समर्थन करना और धर्मनिरपेक्षता हमारी पार्टी की आत्मा है. अजित पवार ने यह भी घोषणा की है कि राष्ट्रवादी (अजित) कमल पर नहीं, बल्कि घड़ी पर चुनाव लड़ेगी. पवार ने यह भी शिगूफा छोड़ा है कि धर्मनिरपेक्षता के लिए चाहे जो भी कीमत चुकानी पड़े, वे तैयार हैं. महाराष्ट्र की सरकार में वैचारिक असमंजस की तस्वीर सामने आई है. अजित पवार का धर्मनिरपेक्ष गुट, भारतीय जनता पार्टी, जो हिंदुत्ववादी है और उनके साथ शिंदे गुट, जो फर्जी हिंदुत्ववादी है, के बीच फंस गया है.'
किस चुनाव चिह्न पर लड़ेंगे शिंदे और अजित गुट?
सामना में सवाल करते हुए लिखा गया, 'शिंदे गुट और अजित गुट किस चुनाव चिह्न पर लड़ेंगे, इसका फैसला दिल्ली में भाजपा आलाकमान करेगा. मूलत: यदि यह फरमान जारी हो गया कि दागदार चेहरों और ‘मिरची’ छाप व्यापारियों को उम्मीदवारी नहीं दी जाएगी तो शिंदे और अजित गुट के 90 फीसद लोग आउट हो जाएंगे. अजित पवार खुद किसी चिह्न पर चुनाव नहीं लड़ सकेंगे. भाजपा और उसके सहयोगी दोनों गुटों में अभी से ही खींचतान शुरू हो गई है. संघ परिवार ने खुद ही यह खबर छेड़ी है कि भाजपा के प्रमुख टीम का रुख यह है कि दागी लोगों को उम्मीदवारी नहीं मिलनी चाहिए और अगर मिलेगी तो वे उनके लिए प्रचार नहीं करेंगे.'
शिवसेना (यूबीटी) ने आगे लिखा, 'सवाल रहा चिह्न का, तो पवित्र चुनाव चिह्न ‘धनुष्यबाण’ चुनाव आयोग ने गद्दार गुट को दे दिया, जिसका मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. राष्ट्रवादी पार्टी के चुनाव चिह्न को लेकर नतीजा आना अभी बाकी है, लेकिन पार्टी को तोड़ते वक्त वर्तमान दिल्लीश्वर गद्दार नेताओं के हाथ में मूल पार्टी का चुनाव चिह्न पारिश्रमिक के तौर पर रखते हैं. इसलिए ये लोग कहते हैं कि हम घड़ी पर लड़ेंगे या धनुष्यबाण पर लड़ेंगे. चाहे घड़ी पर लड़ो या फिर धनुष्यबाण पर, जनता गद्दारों को समर्थन नहीं देगी यह महाराष्ट्र का जनमानस है. अजित पवार, घाती गुट आदि किस चिह्न पर चुनाव लड़ेंगे और हारेंगे यह उनका मामला है; लेकिन जनता मोदी को ही चुनेगी इस भ्रम का भी गुब्बारा फूट जाएगा.'
उद्धव की पार्टी ने सामना में घोटालों का किया जिक्र
सवाल उठाते हुए शिवसेना (यूबीटी) ने लिखा, 'अजित पवार चुनाव में खड़े होंगे और प्रधानमंत्री मोदी उनके प्रचार के लिए आएंगे, महाराष्ट्र को यह तस्वीर आंखें भरकर देखनी है. जब गृहमंत्री अमित शाह प्रफुल्ल पटेल और हसन मुश्रीफ जैसे लोगों के प्रचार अभियान का नारियल तोड़ेंगे, मराठी लोग ईमानदार भाजपा सदस्यों की उस वक्त की मनोदशा को समझना चाहते हैं. कांग्रेस नेता सुनील केदार पर नागपुर डिस्ट्रिक्ट बैंक में 152 करोड़ के गबन का आरोप लगा और कोर्ट ने उन्हें दोषी पाते हुए पांच साल की सजा सुनाई. तो फिर कमलाबाई से ‘निकाह’ कर चुकी मंडली के सिंचाई घोटाला, शिखर बैंक घोटाला, मिर्च घोटाला, कोल्हापुर बैंक घोटाला, भीमा पाटस सहकारी कारखाना घोटाला, गिरणा मोसम सहकारी चीनी कारखाना घोटाला, स्वास्थ्य सेवा घोटाला आदि के मुख्य आरोपियों को सजा कब मिलेगी? जो न्याय केदार को वही न्याय इन घोटालेबाजों को क्यों नहीं?'
सामना में आगे लिखा गया, 'बेशक, अगर वे आज बच भी गए तो उनका न्याय 2024 में होगा. मिंधे और फजीत गुट के ज्यादातर लोगों पर घोटालों का आरोप हैं. गिरफ्तारी के डर से वे कमलाबाई की शरण में गए. धर्मनिरपेक्षता, प्रगतिशीलता, समाज सुधारकों की विरासत आदि के उनके सभी दावे झूठे हैं. अजित पवार कहते हैं, जनता मोदी को ही चुनेगी. मोदी व्यक्तिगत रूप से चुने जाएंगे, लेकिन उनकी पार्टी हार जाएगी. एक बार मोदी जीत जाएंगे, लेकिन महाराष्ट्र में दोनों गुटों के बेईमान लोग साफ तौर पर हार जाएंगे. इसलिए किसी और को मोदी की जीत का बैंड-बाजा बजाने की जरूरत नहीं है और इन मंडलियों को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि महाराष्ट्र में गद्दार गुटों के चलते भाजपा के शरीर में तोलाभर मांस बढ़ गया है.
मंबाजी, तुंबाजी को याद रखना चाहिए: शिवसेना (यूबीटी)
शिवसेना (यूबीटी) ने आगे लिखा, 'वर्तमान दिल्लीश्वरों को महाराष्ट्र का महत्व खत्म करना है. स्वाभिमान को पैरों तले कुचलना है. मुंबई का सौदा करना है. इसलिए वे क्षेत्रीय अस्मिता को बरकरार रखने वाली पार्टियों शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस को खत्म करना चाहते हैं. पवार के कुटुंब में क्या चल रहा है, कौन साथ आ रहा है, कौन अलग पाट पर बैठ रहा है, यह उनका अपना मामला है. उनका परिवार उनकी जिम्मेदारी है, लेकिन लोगों के मन में लेशमात्र भी भ्रम नहीं है. लोग पाखंडियों और कायरों को हमेशा के लिए राज्य से उखाड़ फेंकना चाहते हैं. महाराष्ट्र ‘धर्म’ मर्दों का और स्वाभिमानियों का है. वह तुंबाजी, मंबाजी जैसों का नहीं, जिन्होंने लड़ने से पहले ही अपने हथियार डाल दिए. जिसने संघर्ष नहीं किया, उसे जीत का हो-हल्ला नहीं करना चाहिए. महाराष्ट्र ने लड़ाई हारनेवालों को भी अपने सिर-माथे बिठाया है. महाराष्ट्र ने कभी उन लोगों की सराहना नहीं की, जिन्होंने अपनी बेटी और बहुएं मुगलों को देकर अपना सिर और पद बचाया. घातियों ने उसी मुगल नीति का उपयोग किया, लेकिन इन मंबाजी, तुंबाजी को याद रखना चाहिए कि यह शिवराया का महाराष्ट्र है.'