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रियाद: सऊदी अरब (Saudi Arabia) ने रमजान का महीना शुरू होने से पहले मस्जिदों (Mosque) पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज को कम रखने के आदेश दिए हैं. इस आदेश में दो बातें कही गई हैं.
पहली बात ये कि आवाज लाउडस्पीकर (Loudspeaker) की अधिकतम आवाज के एक तिहाई से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. दूसरी बात ये कि मस्जिदों (Mosque) पर लगे लाउडस्पीकर का प्रयोग सिर्फ अजान और इकामत के लिए ही हो सकता है. इकामत का अर्थ होता है, नमाज़ के लिए लोगों को दूसरी बार पुकारना.
सऊदी अरब (Saudi Arabia) की कुल आबादी लगभग साढ़े तीन करोड़ हैं. जिनमें से 94 प्रतिशत मुस्लिम हैं और 3 प्रतिशत ईसाई हैं. वहां लगभग 94 हजार मस्जिदें हैं. महत्वपूर्ण बात ये है कि सऊदी अरब एक इस्लामिक देश है. यानी आज सऊदी अरब एक इस्लामिक देश होते हुए मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज को कम रखने के आदेश दे सकता है. लेकिन भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश होते हुए भी ऐसा नहीं कर सकता.
सोचिए ये कितना बड़ा विरोधाभास है कि जिस देश में 94 प्रतिशत मुस्लिम आबादी रहती है. वहां तो लाउडस्पीकर के शोर से होने वाले नुकसान को समझा जा रहा है. वहां के मुसलमान इसे समझ रहे हैं. लेकिन भारत में जहां लगभग 14 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, वहां अगर कोई इसकी शिकायत भी करता है तो उसे साम्प्रदायिक बताया जाने लगता है.
हमारे देश में मस्जिदों की संख्या को लेकर कोई स्पष्ट आंकड़ा मौजूद नहीं है. लेकिन कुछ रिपोर्ट दावा करती हैं कि भारत में 3 लाख मस्जिदें हैं. हालांकि भारत में लाउडस्पीकर (Loudspeaker) पर इस तरह का कोई निर्णय या प्रतिबंध आज तक नहीं लगाया गया है.
#DNA : सऊदी में अज़ान की आवाज़ कम, भारत में क्यों नहीं?@sudhirchaudhary
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— Zee News (@ZeeNews) March 28, 2022
ऐसा नहीं है कि भारत में सिर्फ मस्जिदों (Mosque) पर लाउडस्पीकर (Loudspeaker) का इस्तेमाल होता है. दूसरे धार्मिक स्थलों और धार्मिक अनुष्ठानों में भी लाउडस्पीकर का प्रयोग किया जाता है. लोग इसकी शिकायत भी करते हैं लेकिन अक्सर शिकायत करने वाले लोगों की इस पर आलोचना की जाती है. हमारे देश में इस तरह के विषय को धर्म पर हमले से जोड़ कर देखा जाता है. सोमवार को जो फैसला सऊदी अरब ने लिया है, अगर वो फैसला हमारे देश में लिया जाता तो शायद इसका बड़े पैमाने पर विरोध शुरू हो जाता. एक खास विचारधारा के लोग भारत के संविधान को खतरे में बताने लगते.
लेकिन सऊदी अरब (Saudi Arabia) में ऐसा कुछ नहीं हुआ. इससे पता चलता है कि सऊदी अरब जैसे देश तो अपनी सोच बदल रहे हैं. लेकिन भारत के बहुत सारे लोगों की सोच पिछड़ती जा रही है. सऊदी अरब में जो 94 हज़ार मस्जिदें हैं, उनमें से अधिकतर रिहायशी इलाकों या रिहायशी इमारतों के पास हैं. सऊदी अरब का कहना है कि पिछले काफी समय से इन इलाकों के लोग लाउडस्पीकर को लेकर शिकायत कर रहे थे. इनमें कई शिकायतें ऐसी थीं, जिनमें ये कहा गया कि मस्जिदों (Mosque) पर लाउडस्पीकर (Loudspeaker) के इस्तेमाल से बच्चों की नींद खराब होती है और इसका उनके स्वास्थ्य पर असर पड़ता है. यानी इन लोगों की शिकायत थी कि मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर से ध्वनि प्रदूषण फैल रहा है. सोचिए, क्या भारत में लोग इस तरह की शिकायतें कर सकते हैं.
इस्लामिक देश ईरान में की गई एक Study कहती है कि मस्जिदों पर लगे लाउड-स्पीकर की आवाज 85 Decibels से 95 Decibels तक होती है. इसके अलावा कुछ अध्ययन कहते हैं कि भारत में धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकर (Loudspeaker) की आवाज 110 Decibels या उससे ज़्यादा होती है. ये शोर कितना ख़तरनाक है, इसे आप इसी बात से समझ सकते हैं कि 70 Decibels से ऊंची आवाज़ इंसानों के अन्दर मानसिक बदलाव ला सकती है. ये हमारे शरीर की धमनियों में खून के प्रवाह को भी बढ़ा सकती है. कई मामलों में इससे आपका Blood Pressure भी High हो सकता है.
ऐसा भी नहीं है कि मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर पर पहली बार किसी देश में पाबंदियां लगी हैं. दुबई में मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर का प्रयोग सिर्फ़ खास मौकों पर होता है. जैसे शुक्रवार की नमाज के लिए या त्योहार के मौके पर. इसी तरह इंडोनेशिया में भी कुछ पाबंदियां हैं. 2015 में इंडोनेशिया में एक सर्कुलर जारी हुआ था, जिसके तहत मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर (Loudspeaker) की आवाज कम रखने और इसका प्रयोग सिर्फ अजान के लिए सीमित कर दिया था. इंडोनेशिया की 99 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है.
Nigeria में तो वर्ष 2019 में ही मस्जिदों और Churches पर लाउडस्पीकर के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लग चुका है. इस सूची में पाकिस्तान भी है. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की सरकार ने वर्ष 2015 में एक अध्यादेश जारी किया था, जिसके तहत मस्जिदों (Mosque) पर लगे लाउडस्पीकर (Loudspeaker) की आवाज को कम रखने और इसका इस्तेमाल सिर्फ अजान के लिए करने को कहा था. फ्रांस ने भी ध्वनि प्रदूषण की वजह से मस्जिदों पर लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को सीमित कर दिया गया है. भारत में भी इसे लेकर कई शिकायत हो चुकी हैं. लेकिन हमारे देश में इस पर कोई नियम नहीं बने हैं.
जबकि अदालतों के इस पर कई फैसले हैं, जिन्हें आधार बना कर निर्णायक कदम उठाए जा सकते हैं. उदाहरण के लिए 6 मई 2020 को अपने एक फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा था कि मस्जिदों में लाउडस्पीकर के बिना भी अजान दी जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने भी वर्ष 2000 के एक मामले में इसी तरह की टिप्पणी की थी. इसके बावजूद भारत में अब तक इस तरह का कोई क़दम नहीं उठाया गया है. भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां इस पर बोलना विवाद को जन्म देने के जैसा होता है. जबकि इस्लामिक देशों में ऐसा नहीं है.
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सच ये है कि बांग्लादेश, मलेशिया, Algeria, Jordan, इराक़, UAE, इंडोनेशिया, कुवैत, Morocco, पाकिस्तान, Turkey, Tunisia, Egypt, Libya और Lebanon जैसे देश तीन तलाक पर बैन लगा सकते हैं. लेकिन भारत में इस तरह के बैन के लिए 70 वर्षों का इंतज़ार करना पड़ा. भारत में तीन तलाक के खिलाफ वर्ष 2019 में ही कानून बना था.
भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत लोगों को एक से ज्यादा शादी की छूट है जबकि कई इस्लामिक देशों में इस पर रोक लग चुकी है. Turkey में वर्ष 1926 से इस पर प्रतिबंध है. Tunisia में ऐसा करने पर एक साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान है.
कहने का मतलब ये है कि इस्लामिक देशों में ये सब करना आसान है. लेकिन धर्मनिरपेक्ष देश भारत में ऐसा करना धर्म पर हमला माना जाता है. यही बात आपको समझनी है. हमें लगता है कि अब सही समय आ गया है कि जब भारत को धर्मनिरपेक्षता की असली परिभाषा समझनी होगी.