SC ने HIV से ग्रस्त रेप पीड़िता को नहीं दी गर्भपात की इजाजत, पढ़ें पूरी ख़बर
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SC ने HIV से ग्रस्त रेप पीड़िता को नहीं दी गर्भपात की इजाजत, पढ़ें पूरी ख़बर

SC ने HIV से ग्रस्त रेप पीड़िता को नहीं दी गर्भपात की इजाजत (file photo)

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने 35 साल की एक रेप पीड़ित और एचआईवी पॉजिटिव महिला को ऑबॉर्शन कराने की इजाजत नहीं दी. कोर्ट ने ये फैसला एम्स की मेडिकल रिपोर्ट आने के बाद दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 26 हफ्ते की प्रेगनेंसी टर्मिनेट नहीं हो सकती. एम्स की मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया है कि इस स्टेज पर महिला की प्रेगनेंसी टर्मिनेट करने से उसके जीवन को खतरा हो सकता है. महिला रेप पीड़ित है साथ ही एचआईवी पॉजिटिव भी है. 

सुप्रीम कोर्ट ने रेप पीड़ित महिला को 24 हफ्ते का गर्भपात कराने की इजाजत दी

कोर्ट ने बिहार सरकार को रेप विक्टिम फंड से चार हफ्ते के भीतर पीड़िता को तीन लाख रुपये देने के आदेश दिए हैं. कोर्ट ने कहा कि महिला के इलाज का सारा खर्च बिहार सरकार उठाएगी और इलाज पटना के इंदिरा गांधी इंस्टीटयूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में होगा.

गर्भपात कानून के खिलाफ बलात्कार पीड़िता की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को नोटिस

दरअसल पटना की सड़कों पर रहने वाली 35 साल की महिला के साथ रेप हुआ था. रेप की वजह से वह गर्भवती हो गई थी और बाद में उसे पटना के एक NGO के यहां रखा गया. मेडिकल जांच में पता चला कि वह गर्भवती है तो पटना हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई. हाईकोर्ट ने सरकारी डॉक्टरों का मेडिकल बोर्ड बनाया, जिसने रिपोर्ट में कहा कि इसके लिए मेजर सर्जरी करनी पड़ सकती है. हाईकोर्ट ने गर्भपात की इजाजत देने से इंकार कर दिया और महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की.

गर्भपात के बाद ध्यान रखें ये जरूरी बातें

सुप्रीम कोर्ट ने 4 मई को इसके लिए केंद्र की मदद से महिला को हवाई जहाज के जरिए एम्स में लाकर मेडिकल बोर्ड से जांच करा कोर्ट को रिपोर्ट सौंपेने को कहा था. कोर्ट ने कहा था कि यहां एक मामला है जहां एक महिला गंभीर बीमारी से पीड़ित है और असहाय है. ऐसे में उसकी जान को बचाने के लिए हर संभव कोशिश की जानी चाहिए.  सुप्रीम कोर्ट को यह देखना था कि पटना की HIV पीड़ित 35 साल की महिला के 26 हफ्ते के भ्रूण का क्या गर्भपात हो सकता है? इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने एम्स से मेडिकल बोर्ड से रिपोर्ट मांगी. एम्स के मेडिकल बोर्ड ने रिपोर्ट में कहा है कि महिला का गर्भपात करने में खतरा है और अब बच्चे को जन्म दिया जाना चाहिए, हालांकि ये ट्रीटमेंट किया जा सकता है कि बच्चे को एड्स ट्रांसमिट ना हो.

अवैध गर्भपात के आरोप में महिला डॉक्टर्स पर IPC के तहत केस

दिल्ली का एम्स महिला के लिए इलाज का ड्राफ्ट बनाकर देगा ताकि होने वाले बच्चे को HIV से बचाया जा सके. कोर्ट महिला के मामले में हुई देरी पर भी बिहार सरकार द्वारा मुआवजा तय करेगा. महिला की ओर से हलफनामा दाखिल होगा और बिहार सरकार इसका जवाब देगी. इस मामले में अगली सुनवाई 9 अगस्त को होगी. महिला की ओर से कहा गया कि अब महिला का गर्भ 27 हफ्ते का हो गया है.यह सब बिहार सरकार की लापरवाही से हुआ है. महिला को उसके पति ने 12 साल पहले छोड़ दिया था.

क्या है गर्भपात से संबंधित कानून 

भारत में गर्भपात को लेकर 1971 में एक अलग कानून बनाया गया और इसका नाम रखा गया मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी ऐक्ट, जिसके तहत तमाम प्रावधान किए गए हैं. कानूनी जानकार बताते हैं कि अबॉर्शन तभी कराया जा सकता है जब गर्भ के कारण महिला की जिंदगी खतरे में हो. कानून के तहत 20 हफ्ते तक की प्रिगनेंसी को महिला के वेलफेयर को देखते हुए डॉक्टर की सलाह से टर्मिनेट किया जा सकता है. अगर महिला की जान खतरे में हो तो उसके बाद भी कोर्ट की इजाजत से प्रेगनेंसी टर्मिनेट किया जा सकता है. 

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