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नई दिल्ली: कोरोना (Coronavirus) कब खत्म होगा ये तो पता नहीं लेकिन ये जाते-जाते भी हमारे शरीर को खोखला कर रहा है. खासकर जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) कमजोर है या जो लोग पहले से ही किसी गंभीर रोग से ग्रसित हैं, उनके लिए खतरा ज्यादा है. कोरोना संक्रमित होने पर सेप्सिस (Sepsis) का खतरा बढ़ रहा है. सेप्सिस कैंसर और हार्ट अटैक से भी ज्यादा खतरनाक होने जा रहा है इसको लेकर WHO ने भी आगाह किया है.
डॉक्टरों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक 2050 तक कैंसर और दिल के दौरे से भी ज्यादा सेप्सिस से लोगों की मौत होने की आशंका है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, सेप्सिस (Sepsis) इंफेक्शन के लिए एक सिंड्रोमिक रिएक्शन है और दुनियाभर में संक्रामक रोग मौत की बड़ी वजह हैं. लैंसेट जर्नल में पब्लिश एक स्टडी से पता चला है कि 2017 में दुनियाभर में 4.89 करोड़ मामले सामने आए और 1.1 करोड़ सेप्सिस से संबंधित मौतें हुईं, जो ग्लोबल डेथ नंबर्स का लगभग 20 प्रतिशत है.
स्टडी से यह भी पता चला कि अफगानिस्तान (Afghanistan) को छोड़कर अन्य दक्षिण एशियाई देशों की तुलना में भारत में सेप्सिस से मृत्यु दर ज्यादा है. गुरुग्राम के इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिटिकल केयर एंड एनेस्थिसियोलॉजी, मेदांता - द मेडिसिटी के चेयरमैन, यतिन मेहता ने कहा, 'सेप्सिस 2050 तक कैंसर या दिल के दौरे की तुलना में अधिक लोगों की जान ले लेगा. यह सबसे बड़ा हत्यारा होने जा रहा है. भारत जैसे विकासशील देशों में, एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक उपयोग के कारण शायद हाई डेथ रेट का कारण बन रहा है.'
असल में डेंगू, मलेरिया, यूटीआई या यहां तक कि दस्त जैसी कई सामान्य बीमारियों के कारण भी सेप्सिस हो सकता है. डॉ मेहता स्वास्थ्य जागरूकता संस्थान - इंटीग्रेटेड हेल्थ एंड वेलबीइंग काउंसिल द्वारा हाल ही में आयोजित सेप्सिस समिट इंडिया 2021 में बोल रहे थे. इस दौरान उन्होंने कहा, एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग के अलावा, जागरूकता की कमी और तुरंत इलाज का अभाव भी खतरे की बड़ी वजह है. डॉ मेहता ने जमीनी स्तर पर सेप्सिस के बारे में जागरूकता और शिक्षा बढ़ाने का आह्वान किया. विशेषज्ञों का कहना है कि मेडिकल में प्रगति के बावजूद, कई अस्पतालों में 50-60 प्रतिशत रोगियों को सेप्सिस और सेप्टिक शॉक होता है. इसके लिए सबसे पहले अनावश्यक एंटीबायोटिक से बचना चाहिए.
भारत सरकार के पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव लव वर्मा ने कहा, 'सेप्सिस को वह मान्यता नहीं दी गई है जिसकी वह हकदार है और मौजूदा पॉलिसी जरूरत के हिसाब से काफी पीछे है. हमें ICMR, CME द्वारा रिसर्च में सेप्सिस के मामलों को चिन्हित करने की जरूरत है और इसे नीति निमार्ताओं द्वारा प्राथमिकता पर लिया जाना चाहिए.' सेप्सिस नवजात शिशुओं और गर्भवती महिलाओं में मृत्यु का प्रमुख कारण है. सेप्सिस बुजुर्गों, आईसीयू में रोगियों, एचआईवी/एड्स, लिवर सिरोसिस, कैंसर, किडनी की बीमारी और ऑटोइम्यून बीमारियों से पीड़ित लोगों को काफी प्रभावित करता है. विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 महामारी के दौरान डिजीज इम्यून के कारण होने वाली ज्यादातर मौतों में सेप्सिस की प्रमुख भूमिका रही.
(INPUT: IANS)
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