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मुंबई: शिवसेना के मुखपत्र सामना में कोरोना और देश में Lockdown को लेकर रात के 8 बजे दिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi Speech) के संबोधन पर निशाना साधा है. सामना में लिखा है- महाराष्ट्र जैसे राज्य में कोरोना की शृंखला तोड़ने के लिए सख्त लॉकडाउन का ही पर्याय बचा है. इसके बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने 'लॉकडाउन टालें' ऐसी सलाह दी है.
सामना में लिखा है, 'राज्य में कोरोना का संक्रमण बढ़ा है. बीते चौबीस घंटों में ही 64 हजार मरीज सिर्फ महाराष्ट्र में मिले. मृत्यु का प्रमाण बढ़ा है इसलिए कम-से-कम 15 दिनों का पूर्ण लॉकडाउन लगाओ, ऐसी मांग राज्य के कई मंत्रियों ने की है. राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस पर योग्य निर्णय लेंगे ही, परंतु ‘लॉकडाउन टालो’ ऐसी सलाह हमारे प्रधानमंत्री किस आधार पर दे रहे हैं?'
इसके अलावा सामना में ये भी लिखा है, 'महाराष्ट्र में दसवीं की परीक्षा रद्द करनी पड़ी है. कोरोना के बढ़ते संक्रमण के कारण प्रधानमंत्री मोदी का पुर्तगाल का दौरा रद्द कर दिया गया, ये सही है. परंतु उन्होंने पश्चिम बंगाल की भीड़ वाली चुनावी सभाओं को समय रहते ही खत्म कर दिया होता तो कोरोना के संक्रमण को रोका जा सकता था. पश्चिम बंगाल में प्रचार के लिए भाजपा ने देशभर से लाखों लोगों को एकत्रित किया. वे कोरोना का संक्रमण लेकर अपने-अपने राज्यों में लौटे. उनमें से कई लोग कोरोना से बेजार हैं. हरिद्वार के कुंभ मेला व प. बंगाल के राजनैतिक मेले से देश को सिर्फ कोरोना ही मिला. शासकों को पहले खुद पर पाबंदी लगानी होती है. अन्य देशों के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति ऐसी पाबंदियां खुद पर लगाते हैं. इससे उन्हें जनता को प्रवचन देने का नैतिक अधिकार मिला है.
प्रधानमंत्री मोदी के भाषण पर सामना में लिखा है, 'प्रधानमंत्री ने भाषण में उससे अलग क्या कहा? संकट बड़ा है, एकजुट होकर उसे नाकाम करना है, ऐसा मोदी ने कहा. अब यह ‘एकजुट’ कौन? इस एकजुट की संकल्पना में विरोधी विचारवाले किसी को भी स्थान नहीं है. प्रधानमंत्री ने छोटे बच्चों की सराहना की. छोटी-मोटी समितियां स्थापित करके युवकों ने लोगों से कोरोना के नियमों का पालन करवाया. परंतु पश्चिम बंगाल में प्रधानमंत्री व गृहमंत्री की राजनैतिक सभाओं को छोड़कर. वहां उन समितियों का प्रयोग काम नहीं आया.'
देश में ऑक्सीजन की कमी पर प्रहार करते हुए सामना में लिखा है, 'देश में ऑक्सीजन की कमी है और इस पर केंद्र सरकार औपचारिक जवाब ही देती है. देश की राजधानी दिल्ली में कोरोना मरीज ऑक्सीजन के अभाव में तड़पकर प्राण त्याग रहे हैं. दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र को इस बारे में फटकार लगाई है. प्रधानमंत्री अथवा उनके सहयोगियों को ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए प्रयास करना चाहिए. आज उसी की सर्वाधिक आवश्यकता है. उसके अलावा सभी लोग हवा में भाषण की कार्बन डाईऑक्साइड छोड़कर जहर फैला रहे हैं. भाषण कम व कार्य पर जोर देने का यह वक्त है.'
सामना में ये भी लिखा है, 'प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार कोरोना संकट बड़ा है. कोरोना मानो तूफान ही है, परंतु तूफान से बचाव कैसे किया जाए इसका उपाय उन्होंने नहीं बताया. लोगों ने अपने रिश्तेदारों को गंवाया है. इस बारे में प्रधानमंत्री मोदी ने दुख व्यक्त किया. परंतु इसके आगे ‘बलि’ बढ़ेगी नहीं, इस बारे में आप क्या कर रहे हो? महाराष्ट्र क्या, पूरा राष्ट्र क्या, कोरोना की स्थिति नाजुक है. प्रधानमंत्री के भाषण से ऊर्जा मिलेगी ऐसा लगा था. परंतु ‘संकट बड़ा है, आप अपना खुद देख लो, सतर्क रहो.’ यही उनके भाषण का सार है. लीपापोती से क्या होगा!