इस साल नहीं होगी अमरनाथ यात्रा, कोरोना संक्रमण के चलते लिया गया फैसला
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इस साल नहीं होगी अमरनाथ यात्रा, कोरोना संक्रमण के चलते लिया गया फैसला

जम्मू-कश्मीर में कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के चलते अमरनाथ यात्रा रद्द कर दी गई है.

यात्रा को 21 जुलाई को प्रारंभ किया जाना तय किया गया था लेकिन कोरोना के बढ़ते मामलों के चलते इसे रद्द कर दिया गया.

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर में कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के चलते अमरनाथ यात्रा रद्द कर दी गई है. श्रीअमरनाथ श्राइन बोर्ड ने यात्रा रद्द करने का फैसला लिया है. अमरनाथ यात्रा 21 जुलाई से शुरू होने वाली थी. हालांकि, दशनामी अखाड़ा के महंत दीपेंद्र गिरि की अगुवाई में तीन अगस्त को छड़ी मुबारक निकाली जाएगी. जम्मू-कश्मीर में हाल ही में कोरोना वायरस के संक्रमित मामले बढ़ने से लखनपुर से लेकर बालटाल तक कई क्षेत्र रेड जोन घोषित हैं. 

इस साल यह तीर्थयात्रा 23 जून को शुरू होने वाली थी, लेकिन लॉकडाउन के चलते इसे स्थगित कर दिया गया था. बाद में, यात्रा को 21 जुलाई को प्रारंभ किया जाना तय किया गया था लेकिन पिछले कुछ दिनों से जम्मू-कश्मीर में कोरोना के संक्रमण के मामलों में फिर से बढ़ोतरी हुई है. इसलिए प्रशासन ने यात्रा को रद्द करने का फैसला लिया है. 

बाबा बर्फानी की छड़ी मुबारक इस साल पारंपरिक पहलगाम मार्ग से नहीं जाएगी क्योंकि उस मार्ग को अभी तक बर्फ की वजह से साफ नहीं किया जा सका है. इसलिए छड़ी मुबारक को महंत दशनामी अखाड़ा के नेतृत्व में कुछ साधु-संतों के साथ हेलीकॉप्टर से गुफा तक ले जाया जाएगा ताकि यात्रा को पूर्ण किया जा सके और पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ बाबा की पूजन प्रक्रिया पूरी हो सके. रक्षा बंधन के दिन छड़ी पूजन के साथ अंतिम दर्शन किए जाएंगे. जब से श्री अमरनाथ यात्रा चली आ रही है, तभी से पवित्र छड़ी मुबारक भगवान अमरनाथ की पवित्र गुफा की तरफ प्रस्थान करने से पहले शंकराचार्य मंदिर में पूजन के लिए जाती है.  

बाबा बर्फानी की गुफा तक छड़ी पहुंचाना क्यों जरूरी:
मान्यताओं के अनुसार छड़ी मुबारक दो अलग-अलग छाड़ियां हैं जिसमे से एक बड़ी छड़ी है और दूसरी छोटी छड़ी है. दोनों अलग-अलग धातुओं से और चांदी के मिश्रण से बनी हैं. इन छड़ियों को भगवान शंकर और माता पारवती के प्रतीक के रूप में श्रावण पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन के दिन गुफा में स्थापित कर पूजा जाता है. दोनों ही छड़ियां यात्रा पूरी होने के बाद पुनः दशनामी अखाड़ा के आश्रम में वापस आ जाती हैं. 

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(इनपुट: राजू केरनी)

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