सियाचिन: बर्फीले तूफान की चपेट में आकर 4 जवान शहीद, 2 पोर्टर की भी मौत
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सियाचिन: बर्फीले तूफान की चपेट में आकर 4 जवान शहीद, 2 पोर्टर की भी मौत

दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर में आए बर्फीले तूफान में फंसकर भारतीय सेना के 4 जवान शहीद हो गए. इसके अलावा 2 पोर्टर (जवानों का सामान उठाने वाले) की भी मौत हो गई है.

सियाचिन में 4 जवान शहीद.

सियाचिन: दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर में आए बर्फीले तूफान में फंसकर भारतीय सेना के 4 जवान शहीद हो गए. इसके अलावा 2 पोर्टर (जवानों का सामान उठाने वाले) की भी मौत हो गई है. भारतीय सेना के कुछ जवान एवलॉन्च यानि बर्फीले तूफान की चपेट में आ गए. ये जवान सेना की पट्रोलिंग टीम का हिस्सा थे. एवलॉन्च में फंसे जवानों को निकालने के लिए सेना युद्ध स्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया, लेकिन केवल चार जवानों को ही बचाया जा सका. लेह पुलिस की टीम को भी मदद के लिए मौके पर मौजूद है. एवलॉन्च दोपहर में करीब 3 बजे आया. ये एवलांच उत्तरी ग्लेशियर में आया था जहां की ऊंचाई लगभग 18,000 फीट से ज्यादा है.

बेरहम मौसम है सियाचिन में भारत के जवानों का सबसे बड़ा दुश्मन
सियाचिन वो इलाका है जहां सिर्फ पक्के दोस्त और कट्टर दुश्मन ही पहुंच सकते हैं. सियाचिन दुनिया का सबसे ऊंचा रणक्षेत्र है अगर इसके नाम के मतलब पर जाएं तो सिया मतलब गुलाब और चिन मतलब जगह यानी गुलाबों की घाटी लेकिन भारत के सैनिकों के लिए इस गुलाब के कांटे काफी चुभने वाले साबित हुए हैं. सियाचिन में हमारे सैनिकों का सबसे बड़ा दुश्मन...कोई घुसपैठिया या आतंकवादी नहीं...बल्कि वो बेरहम मौसम है...जो अलग अलग देशों के इंसानों में कोई फर्क नहीं करता.
-सियाचिन में तापमान माइनस 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है.
-बेस कैंप से भारत की जो चौकी सबसे दूर है उसका नाम इंद्रा कॉलोनी है और सैनिकों को वहां तक पैदल जाने में लगभग 20 से 22 दिन का समय लग जाता है.
-चौकियों पर जाने वाले सैनिक एक के पीछे एक लाइन में चलते हैं और सबकी कमर में एक रस्सी बंधी होती है.
-कमर में रस्सी इसलिए बांधी जाती है क्योंकि बर्फ कहां धंस जाए इसका पता नहीं चलता.
-ऐसे में अगर कोई सैनिक खाई में गिरने लगे तो बाकी लोग रस्सी की मदद से उसकी जान बचा सकते हैं.
-सियाचिन में इतनी बर्फ है कि अगर दिन में सूरज चमके और उसकी चमक बर्फ पर पड़ने के बाद आंखों में जाए तो आंखों की रोशनी जाने का ख़तरा रहता है.
-इतना ही नहीं अगर तेज़ चलती हवाओं के बीच कोई सैनिक रात में बाहर हो तो हवा में उड़ रहे बर्फ के अंश चेहरे पर हज़ारों सुइयों की तरह चुभते हैं.
-वहां नहाने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता और सैनिकों को दाढ़ी बनाने के लिए भी मना किया जाता है क्योंकि वहां त्वचा इतनी नाज़ुक हो जाती है कि उसके कटने का ख़तरा काफी बढ़ जाता है और अगर एक बार त्वचा कट जाए तो घाव भरने में काफी समय लगता है.

-सियाचिन ग्लेशियर दुनिया का सबसे ऊंचा बैटल फील्ड है.
-वर्ष 1984 से लेकर अबतक क़रीब 900 सैनिक सियाचिन में शहीद हो चुके हैं.
-इनमें से ज़्यादार सैनिक हिमस्खलन और ख़राब मौसम के कारण शहीद हुए हैं.
-जवानों के शहीद होने की मुख्य वजह है हिमस्खलन, ज़्यादा ठंड की वजह से होने वाला टिसू ब्रेक, ऊंचाई पर काम करने की वजह से होने वाली बीमारी और पैट्रोलिंग के दौरान ज्यादा ठंड से हार्ट फेल होना.
-लंबे समय तक शून्य से नीचे के तापमान में रहने से दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है यानी दिल पर ज़्यादा बोझ पड़ता है और इससे दिल से जुड़ी बीमारी होने का ख़तरा बढ़ जाता है.
-आज भी ऊंचाई पर ज़्यातादर मौतें हाई एल्टीट्यूड पल्मनरी इडीमा से होती हैं इसमें व्यक्ति के फेफड़ों में पानी भर जाता है.
-कई जवानों में एक्यूट माउंटेन सिकनेस की शिकायत होती है. पहाड़ों पर जाने के कारण कभी-कभी सिर में दर्द होता है और चक्कर आते हैं और इसकी वजह ये है कि ऊंचाई पर ऑक्सीजन कम होने लगती है और ऐसे में अगर तापमान भी बहुत कम हो तो कई बार दिमाग पर दबाव बढ़ जाता है.
-ठंड से एक और ख़तरनाक स्थिति पैदा हो सकती है, बहुत ज़्यादा ठंड में ख़ून जम सकता है, उंगलियां गल जाती हैं, निमोनिया या इन्फ़ेक्शन हो जाता है और शरीर का कोई हिस्सा सड़ भी सकता है.

रणनीतिक तौर पर भारत के लिए बेहद ज़रूरी है सियाचिन
सियाचिन रणनीतिक तौर पर भारत के लिए बेहद ज़रूरी है. इसलिए इसकी सुरक्षा से कोई समझौता भी नहीं किया जा सकता. सियाचिन के बारे में कहा जाता है कि ये इलाका भारतीय सेना की जांबाज़ी की मिसाल है. सियाचिन के बर्फीले रेगिस्तान में जहां कुछ नहीं उगता, वहां सैनिकों की तैनाती का एक दिन का खर्च ही 4 से 8 करोड़ रुपए है फिर भी 30 साल से यहां भारतीय सेना पाकिस्तान के नापाक इरादों को नाकाम कर रही है.

-सियाचिन हिमालय के कराकोरम रेंज में है, जो चीन को भारतीय उपमहाद्वीप से अलग करती है.
-सियाचिन 76 किलोमीटर लंबा दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है.
-सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय फौज की करीब 150 पोस्ट हैं, जिनमें करीब 10 हज़ार फौजी तैनात रहते हैं.
-अनुमान के मुताबिक सियाचिन की रक्षा पर साल में 1500 करोड़ रुपए खर्च होते हैं.
-सियाचिन पर रिसर्च के दौरान हमें जानकारी मिली कि यहां सर्दियों में 1 हज़ार सेंटिमीटर से ज़्यादा की बर्फबारी होती है.
-सियाचिन की रक्षा पर हर रोज़ औसतन क़रीब 6.8 करोड़ रुपये का खर्च आता है यानी यहां की सुरक्षा के लिए भारत को हर सेकेंड 18 हज़ार रुपये खर्च करने पड़ते हैं.
-एक रोटी जिसे बनाने की कीमत सिर्फ 2 रुपये तक होती है उसकी क़ीमत सियाचिन पहुंचते पहुंचते 200 रुपये हो जाती है.

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