सोनिया और राहुल की राजनीति के चलते बर्बाद हुई कांग्रेस: जगन्नाथ मिश्र
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सोनिया और राहुल की राजनीति के चलते बर्बाद हुई कांग्रेस: जगन्नाथ मिश्र

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व कांग्रेसी नेता डा. जगन्नाथ मिश्र ने आज यहां आरोप लगाया कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी की राजनीति के चलते ही कांग्रेस बर्बाद हुई है। मिश्र ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने पूरे विश्व में देश का मान बढ़ाया है। चारा घोटाले के एक मामले में सजायाफ्ता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र ने झारखंड उच्च न्यायालय से जमानत पर रिहा होने के बाद आज यहां एक संवाददाता सम्मेलन में यह आरोप लगाये।

सोनिया और राहुल की राजनीति के चलते बर्बाद हुई कांग्रेस: जगन्नाथ मिश्र

रांची : बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व कांग्रेसी नेता डा. जगन्नाथ मिश्र ने आज यहां आरोप लगाया कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी की राजनीति के चलते ही कांग्रेस बर्बाद हुई है। मिश्र ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने पूरे विश्व में देश का मान बढ़ाया है। चारा घोटाले के एक मामले में सजायाफ्ता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र ने झारखंड उच्च न्यायालय से जमानत पर रिहा होने के बाद आज यहां एक संवाददाता सम्मेलन में यह आरोप लगाये।

मिश्र ने कहा, कांग्रेस ओछेपन की राजनीति के चलते अलग-थलग पड़ी। मैंने 1998 में लालू प्रसाद यादव की पार्टी के साथ कांग्रेस के किसी समझौते का विरोध किया तो पार्टी ने मुझे ही पार्टी से निकाल दिया। मिश्र ने कहा कि जिस तरह संप्रग की दस वर्ष की सरकार में देश के प्रधानमंत्री के पद की अवमानना कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने की है उससे न सिर्फ देश का अपमान हुआ है बल्कि देश की प्रतिष्ठा दुनिया में कम हुई है।

राहुल गांधी के राजनीतिक व्यवहार का उदाहरण देते हुए मिश्र ने कहा कि जब प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में भारत सरकार के मंत्रिमंडल ने दागी सांसदों के संबन्ध में अध्यादेश को मंजूरी दी थी तो उस अध्यादेश की प्रति को लोगों के सामने सरेआम फाड़कर राहुल गांधी ने न सिर्फ प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल की तौहीन की बल्कि पूरे देश का अपमान किया था।

मिश्र ने आरोप लगाया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी ने कांग्रेस को अपनी निजी संपत्ति की तरह उपयोग किया है। उन्होंने कहा, पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने रबर की मुहर की तरह इस्तेमाल किया। ठीक वैसे ही जैसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी का इस्तेमाल करना चाहते थे। मिश्र ने कहा, जिस देश में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री पद की गरिमा नहीं रखी जायेगी और उन पदों पर अपने रबर की मोहर की तरह काम कराने की कोशिश की जायेगी वहां के लोकतंत्र का क्या होगा? उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर पार्टी का इस्तेमाल अपने निजी स्वाथरें के लिए करने का आरोप लगाया।

दूसरी तरफ, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नेतृत्व क्षमता की प्रशंसा करते हुए मिश्र ने कहा, देश को लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के बाद पहली बार इस तरह का मजबूत नेतृत्व मिला है। मैं इस बात से बहुत प्रसन्न हूं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समूचे विश्व में भारत की प्रतिष्ठा और प्रभाव बढ़ाने में जुटे हुए हैं। यह पूछे जाने पर कि मोदी की प्रशंसा का अर्थ क्या यह लगाया जाये कि वह भाजपा की ओर जा रहे हैं, मिश्र कहा, नहीं बिलकुल नहीं। राजनीति में मुझे अब कोई पारी नहीं खेलनी है। देशहित में मजबूत सरकार और मजबूत शासन के पक्ष में हूं और इसी कारण नरेन्द्र मोदी की नेतृत्व क्षमता की प्रशंसा कर रहा हूं। उन्होंने राजनीति में परिवारवाद की आलोचना की और कहा कि चाहे लालू हों, मुलायम हों अथवा सोनिया गांधी और राहुल इन लोगों ने अपनी पार्टियों को अपनी निजी संपत्ति समझ लिया है जो लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक है।

जगन्नाथ मिश्र ने संवाददाताओं से बातचीत में देश की न्यायिक प्रणाली पर असंतोष व्यक्त करते हुए इसमें सुधार की आवश्यकता जतायी। उन्होंने कहा कि भारत में विकास से भी कहीं अधिक न्याय प्रणाली में सुधार आवश्यक है क्योंकि न्याय पाने में यहां आम आदमी लुट जाता है, उदाहरण के तौर पर उन्होंने स्वयं बाप-दादा की जमीन बेचकर चारा घोटाले का मुकदमा लड़ा है। उन्होंने कहा, मुझे इस बात की जबर्दस्त पीड़ा है कि तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे मेरे जैसे व्यक्ति को बिना किसी पुष्ट साक्ष्य के चारा घोटाले के एक मामले में फंसाया गया और इस मुकदमे को लड़ने के लिए वकील की फीस और अन्य खचरें का इंतजाम करने के लिए मुझे बाप-दादा की खेती की जमीन बेचकर धन जुटाना पड़ा।

मिश्र ने कहा, चारा घोटाले के जिस मामले में मुझे चार वर्ष कैद की सजा 30 सितंबर, 2013 को सुनाई गयी थी उसमें मेरे खिलाफ कोई पुष्ट साक्ष्य नहीं है और मैंने तो सिर्फ एक अधिकारी की सेवा में बढ़ोत्तरी की अनुशंसा की थी। उसे सेवा में वृद्धि देनी है कि नहीं यह तय करना तो संबद्ध विभाग कर काम था। मिश्र ने दावा किया कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसलों में यह बात तय कर दी है कि किसी के लिए अनुशंसा मात्र से कोई दोषी नहीं होता है। यह तय करना संबद्ध अधिकारी का दायित्व होता है कि अनुशंसा मानने योग्य है कि नहीं है।

 

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