Mumbai: केरल के मरीन इंजीनियर सारंग मेनन और अदिति नायर का बेटा निर्वाण स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी टाइप-2 से पीड़ित है. यह एक बड़ी ही दुर्लभ बीमारी होती है. इसके एक बार के इलाज की कीमत लगभग 17.3 करोड़ रुपये आती है.
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Financial help: मुंबई की एक दंपत्ति का डेढ़ साल का बेटा दुर्लभ बीमारी 'स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी' से गुजर रहा है. इसके इलाज के लिए डॉक्टरों ने करीब 17.3 करोड़ रुपये का खर्च बताया था. परिजनों ने हार नहीं मानी और वह सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों से मदद की गुहार लगाने लगे. ऐसे में फरिश्ता बनके आए एक अनजान व्यक्ति ने परिजनों के खाते में 15.31 करोड़ रुपये दान कर दिए, जिसे पाकर परिजन खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं. उन्होंने उस अनजान व्यक्ति को धन्यवाद देते हुए कहा कि वह कोई फरिश्ता ही है, जिसने बच्चे के लिए इतनी बड़ी मदद की है. अब हमारा बच्चा जरूर बच जाएगा.
केरल के है दंपत्ति
केरल के मरीन इंजीनियर सारंग मेनन और अदिति नायर का बेटा निर्वाण स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी टाइप-2 से पीड़ित है. यह एक बड़ी ही दुर्लभ बीमारी होती है. इसके एक बार के इलाज की कीमत लगभग 17.3 करोड़ रुपये आती है. माता पिता ने सोचा कि इतना पैसा तो उनके पास नहीं है, लेकिन फिर भी सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों से अपील करके देखते हैं. जब उन्होंने सोशल मीडिया का सहारा लिया तो किसी फरिश्ते ने उनकी इतनी बड़ी मदद कर दी.
नायर ने बताया कि ऐप पर ऑनलाइन निधि एकत्र करने के लिए पेज शुरू किया था. पेज शुरू होने के बाद धनराशि भी आनी शुरू हो गई थी लेकिन 15.31 करोड़ रुपये देने वाले व्यक्ति की पहचान गुप्त है. हालांकि दंपत्ति अभी मुंबई से केरल चला गया है.
नायर ने कहा कि हम बहुत खुश हैं कि इस योगदान से हम अपने लक्ष्य के करीब पहुंच चुके हैं. मुझे उम्मीद है कि बाकी की धनराशि भी मुझे जल्द मिल जाएगी. उन्होंने बताया कि कुछ जांच होनी है, जिसके लिए वह 2 से 3 हफ्ते के अंदर ही वापस बेटे को लेकर मुंबई आ रहे हैं. निर्वाण के इलाज में जो दवाइयां लगनी है वह सभी अमेरिका से आएंगी. परिवार ने दवाई मांगने के लिए पहले ही केंद्रीय वित्त मंत्रालय और आयात निर्यात विभाग से संपर्क करना शुरू कर दिया है.
डॉ. नीलू देसाई कर रहे हैं इलाज
हिंदूजा हॉस्पिटल के बाल न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. नीलू देसाई निर्वाण का इलाज कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि 'स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी' बीमारियों का एक समूह है, जिसमें मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी, हाथ-पैर, चेहरा, गला और जीभ की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाली तंत्रिका कोशिकाएं मर जाती हैं.
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