दिल्ली के 'शाहीन बाग' की तर्ज पर अब इस शहर में हुई 'किसान बाग' की शुरुआत
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दिल्ली के 'शाहीन बाग' की तर्ज पर अब इस शहर में हुई 'किसान बाग' की शुरुआत

दिल्ली के शाहीन बाग' की तर्ज पर समूचे भारत में किसानों और श्रमिकों को न्याय दिलाने के लिए पुणे में 'किसान बाग' आंदोलन शुरू किया गया है. यह वयोवृद्ध एवं अनुभवी सामाजिक कार्यकर्ता बाबासाहेब पांडुरंग अधव (90) के दिमाग की उपज है, जिन्हें बाबा अधव के नाम से जाना जाता है. 

फाइल फोटो।

पुणे: नए कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली के बॉर्डर पर किसानों का प्रदर्शन (Farmers Protest) 14वें दिन भी जारी रहा. इस बीच महाराष्ट्र (Maharashtra) के पुणे (Pune) में एक जगह ऐसी है, जहां किसानों की मांगों के समर्थन में दिल्ली के 'शाहीन बाग' की तर्ज पर 'किसान बाग' आंदोलन शुरू किया गया है.

दरअसल, हाल में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में कई महीनों तक लगातार प्रदर्शन किया गया था, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल रही थीं. इस प्रदर्शन की चर्चा पूरे देश में हो रही थी और शाहीन बाग का नाम सबकी जुबान पर आ गया था. 

'शाहीन बाग' की तर्ज पर मुंबई में 'किसान बाग'
अब इसी तर्ज पर समूचे भारत में किसानों और श्रमिकों को न्याय दिलाने के लिए पुणे में 'किसान बाग' आंदोलन शुरू किया गया है. बताया जा रहा है कि यह प्रसिद्ध शाहीन बाग-शैली से प्रेरणा लेते हुए शुरू किया गया है, जिसमें किसान और श्रमिकों के हितों को सुरक्षित करने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया जा रहा है.

'अधव' के दिमाग की उपज है 'किसान बाग'
यह वयोवृद्ध एवं अनुभवी सामाजिक कार्यकर्ता बाबासाहेब पांडुरंग अधव (90) के दिमाग की उपज है, जिन्हें बाबा अधव के नाम से जाना जाता है. उनके साथ कई अन्य लोग इस आंदोलन का हिस्सा बने हैं, जो कि मंगलवार को भारत बंद के अवसर पर शुरू किया गया. बुधवार को किसान बाग आंदोलन के दूसरे दिन पुणे कलेक्ट्रेट के बाहर 50 किसानों को धरने पर बैठे देखा गया.

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'क्योंकि सभी किसान नाराज हैं'
जन आंदोलन संघर्ष समिति के संयोजक विश्वास उटगी ने बताया कि गुरुवार से अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के मौके पर रायगढ़ के कोंकण भवन में आंदोलन होगा और बाद में महाराष्ट्र के सभी क्षेत्रों में 'किसान बाग' आंदोलन शुरू होगा. बाबा अधव को भी लगता है कि यह विचार तेजी पकड़ेगा और इसी तरह के 'किसान बाग' आंदोलन पूरे भारत में देखे जा सकते हैं. उन्होंने इसके पीछे का कारण गिनवाते हुए कहा, 'क्योंकि सभी किसान नाराज हैं.'

पहली बार दिखा ये नजारा
बाबा अधव ने बातीचीत में बताया कि, 'मैंने स्वतंत्रता आंदोलन, संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन, आपातकाल और कई अन्य आंदोलनों में भाग लिया है, लेकिन यह पहली बार है, जब मैंने ग्रामीण किसानों और श्रमिकों के पूर्ण समर्थन में शहरी आबादी देखी है.' उन्होंने कोरोना वायरस के फैलाव से लागू किए गए राष्ट्रव्यापी बंद (लॉकडाउन) के समय पर किसानों की ओर से खेत में पसीने बहाए जाने पर उनकी प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि बंद के दौरान स्वास्थ्य जोखिमों के साथ किसानों ने श्रमिकों की मदद से उपज तैयार की, जो देश के प्रत्येक घर में पहुंची.

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कोरोना वॉरियर्स के तौर पर किसानों को मान्यता
बाबा अधव ने केंद्र सरकार की ओर से किसानों की अनदेखी किए जाने का भी आरोप लगाया. बाबा अधव ने मांग करते हुए कहा कि केंद्र सरकार को किसानों को कोरोना वॉरियर्स के तौर पर मान्यता देते हुए विभिन्न योजनाओं का समान लाभ देना चाहिए. स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के अध्यक्ष राजू शेट्टी ने कहा, 'आठ दिसंबर का 'भारत बंद' अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की एक संयुक्त पहल थी, जिसमें हम सभी सहयोगी थे. गुरुवार से किसान भाइयों को न्याय दिलाने के लिए हम 'किसान बाग' आंदोलन में शामिल होंगे.'

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