जामिया हिंसा मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई हुई, जिसमें दिल्ली पुलिस की ओर से अडिशनल सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने बहस की.
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नई दिल्ली: जामिया हिंसा (Jamia Riots) मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) में आज सुनवाई हुई, जिसमें दिल्ली पुलिस (Delhi Police) की ओर से अडिशनल सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने बहस की. लेखी ने कोर्ट में कहा कि चूंकि ये मामला रूटीन है, इसलिए इस केस का ट्रांसफर नहीं हो सकता.
उन्होंने बताया कि एक-एक मामले पर जांच चल रही है, जहां भी बात हुई है कि पुलिस ने ज्यादा फोर्स लगाई है उस पर जांच हो रही है. एनएचआरसी ने भी उस दिन पुलिस इंटरवेंशन को सपोर्ट किया है. इस पर कोर्ट ने कहा कि आपको हमे संतुष्ट करना पड़ेगा कि पुलिसकर्मियों के खिलाफ अब तक क्या-क्या कार्रवाई हुई है और अब तक क्या कोई एफआईआर भी दर्ज हुई है?
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इस सवाल का जवाब देते हुए लेखी ने सीआरपीसी का हवाला देते हुए कहा कि पुलिस ने जो कुछ भी किया भीड़ को हटाने के लिए किया और कानून के दायरे में रहकर किया. उन्होंने बताया कि पुलिस ने इस दौरान कई वार्निंग भी दी थीं. लेकिन इसके बावजूद भीड़ नहीं हटी थी. और प्रदर्शनकारी उग्र हो गए और उन्होंने पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया. जिसके बाद प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए एंटी रायट इक्विपमेंट को वहां लगाया गया था.
लेखी ने बताया कि प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पत्थरबाजी की और डीटीसी बस को आग लगा दिया. लॉ एंड आर्डर को बनाए रखने के लिए पुलिस जामिया यूनिवर्सिटी में दाखिल हुई. लेखी ने कहा कि सीआरपीसी की सेक्शन 129 के तहत पुलिस की कार्रवाई बिल्कुल सही है. जबकि पुलिस के खिलाफ कार्रवाई या एक्शन लेने के लिए सीआरपीसी की सेक्शन 132 के मुताबिक केंद्र सरकार से इजाजत लेनी पड़ती है.
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1 अक्टूबर को अगली सुनवाई
उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता ने खुद केंद्र सरकार से पुलिस के खिलाफ मामला चलाने के लिए कोई इजाजत नही मांगी. तो किस बात की एफआईआर? मजिस्ट्रेट भी पुलिस अफसर के खिलाफ मामला नहीं चला सकता जब तक केंद्र सरकार की स्वीकृति न हो. कोर्ट अब इस मामले की जांच के लिए किसी और को ट्रांसफर भी नहीं कर सकता, क्योंकि चार्जशीट दायर हो चुकी है. जिन लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर हुई है वो लोग भी अभी तक इस कोर्ट को एप्रोच नहीं कर पाए हैं. NHRC ने भी कोई कंपनसेशन की बात नहीं कही है, बल्कि पुलिस की कार्रवाई को सही बताया है.
इस जवाब पर कोर्ट ने कहा कि मुद्दा ये नहीं है कि दिल्ली पुलिस यूनिवर्सिटी में दाखिल नहीं हो सकती? बल्कि इस बात पर है कि आपने यूनिवर्सिटी प्रशासन से अंदर दाखिल होने की इजाजत क्यों नहीं ली? इस पर लेखी ने कहा कि इस तरह की कोई जरूरत ही नहीं है. जामिया यूनिवर्सिटी भारत में है और भारत का कानून वहां लागू होता है. ऐसे में अनुमति लेने की कोई जरूरत ही नहीं थी. ये कहते हुए लेखी ने अपनी बहस पूरी की. इस मामले में अगली सुनवाई अब 1 अक्टूबर को होगी.
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