कानपुर मुठभेड़: उस रात को असल में क्या हुआ था? घायल SO ने बताई पूरी कहानी
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कानपुर मुठभेड़: उस रात को असल में क्या हुआ था? घायल SO ने बताई पूरी कहानी

एसओ कौशलेंद्र प्रताप इस वक्त अस्पताल में इलाज करा रहे हैं. इनकी जान तो बच गई लेकिन उस रात इन्होंने जो देखा वो बेहद खौफनाक था.

कानपुर मुठभेड़: उस रात को असल में क्या हुआ था? घायल SO ने बताई पूरी कहानी

लखनऊ: तीन दिन से ज्यादा गुजर चुके हैं. लेकिन अब तक कानपुर हमले का मास्टर माइंड गैंगस्टर विकास दुबे पुलिस की पकड़ से दूर है. अब तक आपने इस हमले से जुड़ी कई खबरें सुनी होंगी. ये हमला कैसे हुआ. किसने किया. क्यों किया. लेकिन आज हम आपको इस हमले से जुड़ी सबसे बड़ी गवाही सुनाने जा रहे हैं. इस गवाह को सुनने के बाद आपको पता चलेगा कि दरअसल उस रात आखिर हुआ क्या था? और क्यों इतने पुलिसकर्मी शहीद हो गए.

उस पुलिस टीम में शामिल बिठूर थाने के एसओ कौशलेंद्र प्रताप इस वक्त अस्पताल में इलाज करा रहे हैं. इनकी जान तो बच गई लेकिन उस रात इन्होंने जो देखा वो बेहद खौफनाक था.

कौशलेंद्र सिंह बिठूर थाने के एसओ हैं लेकिन वो चौबेपुर थाना क्षेत्र में मौजूद बिकरू गांव विकास दुबे को पकड़ने गए थे. कौशलेंद्र प्रताप ने बताया कि जिस दिन घटना हुई थी, उस दिन मुझे एसओ चौबेपुर द्वारा फोन पर सूचना दी गई थी कि एक दबिश में चलना है. हम लोग थाने से रात करीब 12:30 बजे निकल गए थे. वहां रात करीब 1 बजे पहुंचे हैं. 

छतों से गोलियों की बौछार
कौशलेंद्र प्रताप पुलिस टीम के बाकी साथियों के साथ विकास दुबे के घर से करीब 200 मीटर पहले ही गाड़ी छोड़कर पैदल जाने लगे. किसी को नहीं पता था कि हिस्ट्रीशीटर और शातिर गैंगस्टर विकास दुबे को पुलिस के आने की सूचना पहले ही मिल गई थी. उसने मौत के खेल का पूरा मैदान तैयार कर रखा था. घर के पास ही जेसीबी मशीन खड़ी की गई थी. ताकि पुलिस की टीम एक ही जगह इकट्ठी मिल जाए. जैसे ही पुलिसवाले जेसीबी मशीन को एक-एक करके पार करने लगे. छतों से गोलियों की बौछार शुरू हो गई. 

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कौशलेंद्र प्रताप, एसओ, बिठूर ने आगे बताया, "जैसे ही पहुंचे हैं तो सबसे पहले हमने अपनी गाड़ियों को वहीं करीब 150-200 मीटर पहले पार्क कर दिया था. पार्क करने के बाद हम लोग वहां पैदल गए हैं. जैसे ही हम लोग पैदल पहुंचे हैं रास्ते में पहले से ही एक जेसीबी लगाकर रखी थी. हम लोग जैसे ही एक-एक करके घर के नजदीक पहुंचे तभी हमारे ऊपर चारों तरफ से ताबड़तोड़ फायरिंग होने लगी. अचानक हुई फायरिंग से अपने आप को बचाने के लिए हम लोग जगह-जगह आड़ लेने लगे और छिपने लगे. जैसे ही हम लोगों ने अपने आपको सुरक्षित किया और फायर किया. लेकिन टारगेट हमें नजर नहीं आ रहे थे क्योंकि हम लोग नीच थे और वो लोग ऊपर की तरफ थे. पहले ही राउंड की फायरिंग में हमारे ज्यादातर लोग घायल हो चुके थे." 

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'टारगेट को बिल्कुल देख नहीं पा रहे थे'
छत पर अंधेरा होने की वजह से पुलिस को टारेगट यानि विकास दुबे और उसके गुर्गे नजर नहीं आ रहे थे लेकिन गोली चला रहे बदमाश पुलिस को आसानी से देख पा रहे थे क्योंकि, जहां पुलिस की टीम मौजूद थी वहां रोशनी थी. यही वजह है कि पुलिस कुछ नहीं कर पाई और विकास दुबे के गैंग ने 8 पुलिसकर्मियों को शहीद कर दिया. 

कौशलेंद्र प्रताप ने बताया, "क्योंकि हमारी और टीम शांत बैठ गई थी शायद इसी वजह से इतनी ज्यादा मौत हो गई. दूसरी बड़ी वजह ये भी रहा कि वहां पर हम टारगेट को बिल्कुल देख नहीं पा रहे थे लेकिन टारगेट हम लोगों को ऊपर से ठीक से देख पा रहा था. हमारे जरा से मूवमेंट से वो फायर कर दे रहा था जिससे हमें गोली लग जा रही थी."

कौशलेंद्र प्रताप के बयान से साफ है कि विकास दुबे ने पुलिस से बचने नहीं पुलिस को मारने के मकसद से पूरी प्लानिंग की थी. विकास दुबे को यूपी के सभी 75 जिलों की पुलिस तलाश रही है. एक रात में ही विकास दुबे यूपी का मोस्ट वॉन्टेड अपराधी बन गया है. लेकिन सवाल ये है कि 3 दिन गुजर जाने के बाद भी विकास दुबे गिरफ्तार क्यों नहीं हो पाया है. क्या कोई विकास दुबे को बचाना चाहता है? 

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15-20 लोगों ने किया हमला
कानपुर के एक निजी अस्पताल में इलाज करा रहे सिंह ने कहा, पुलिस दल को तनिक भी अंदाजा नहीं था कि उस पर ऐसा जघन्य हमला होने जा  रहा है. पुलिस के पास उस हमले का जवाब देने के लायक हथियार भी नहीं थे. दूसरी ओर हमलावर पूरी तरह से तैयार थे उस सब के पास सेमी ऑटोमेटिक हथियार थे. 

सिंह ने कहा कि पुलिसकर्मियों को अंधेरे का सामना करना पड़ा जबकि हमलावरों के पास टॉर्च थी जिनकी रोशनी सिर्फ पुलिसकर्मियों पर पड़ रही थी. पुलिस बदमाशों को नहीं देख पा रही थी.

बिल्हौर के पुलिस उपाधीक्षक देवेंद्र मिश्रा को गोलियां कैसे लगीं, इस बारे में सिंह ने कहा कि इस मामले में कुछ भी कहना मुश्किल है कि उन्हें  किसकी गोली लगी, क्योंकि बेतरतीब फायरिंग हो रही थी. वह जिस जगह छुपे थे वहां पर ठीक ऊपर से गोलियां चलाई जा रही थी. वह 15-20 लोग  थे जिन्होंने पुलिस पर हमला किया.

हमले की इस मामले में निलंबित किए गए चौबेपुर के थाना अध्यक्ष विनय तिवारी के बारे में पूछे गए इस सवाल पर कि क्या वे पुलिस दल में सबसे पीछे चल रहे थे, सिंह ने कहा ऐसा कहना सही नहीं है क्योंकि हम सभी लोग कंधे से कंधा मिलाकर एक पंक्ति में आगे बढ़ रहे थे.

गौरतलब है कि दो/तीन जुलाई की दरमियानी रात चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरु गांव में माफिया सरगना विकास दुबे को पकड़ने गई पुलिस टीम पर छत पर खड़े बदमाशों ने ताबड़तोड़ गोलियां चलाई थी. इस वारदात में एक पुलिस उपाधीक्षक और तीन दरोगा समेत आठ पुलिसकर्मी मारे गए थे, जबकि सात अन्य जख्मी हो गए थे.

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