पीठ ने कहा कि कानून की विफलता की इस संकटपूर्ण स्थिति में उसके पास नियोजन और अविलंब आधार पर कदम की तामील के लिए विश्वसनीय तंत्र बनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.
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नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने राप्ती नदी में प्रदूषकों के प्रवाह को रोकने के लिये पर्याप्त कदम नहीं उठाने पर उत्तर प्रदेश सरकार की खिंचाई की. अधिकरण ने कहा कि प्रशासन की विफलता की वजह से गोरखपुर में 2014 में 500 से अधिक बच्चों की मौत हुई और उसने हालात का समाधान करने के लिए निगरानी समिति के गठन की घोषणा की.
न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति एस पी वांगडी की पीठ ने कहा कि कानून की विफलता की इस संकटपूर्ण स्थिति में उसके पास नियोजन और अविलंब आधार पर कदम की तामील के लिए विश्वसनीय तंत्र बनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.
हरित अधिकरण ने कहा कि अधिकारी पर्यावरण की रक्षा करने का अपना काम करने में विफल रहे हैं. पिछले चार वर्षों में उसके निर्देश के बावजूद अधिकारियों ने बेहद कम और मामूली कदम उठाए हैं.
पीठ ने कहा,‘ऐसी उभरती स्थिति में अधिकारियों का एक विभाग से दूसरे विभाग पर जिम्मेदारी डालना संविधान की भावना के खिलाफ है. उन्हें साथ आना है और क्षति को रोकने के लिये और पहले ही हो चुके नुकसान की भरपाई के लिए तत्काल कदम उठाने हैं. विफलता के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह बनाना है. जो लोग प्रभावित हैं उनके पुनर्वास की आवश्यकता है.’
अधिकरण ने पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वरिष्ठ प्रतिनिधि, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वरिष्ठ प्रतिनिधि, सीपीसीबी के पूर्व सदस्य सचिव ए बी अकोलकर और उत्तर प्रदेश जल निगम के प्रतिनिधि शामिल होंगे.
पीठ ने कहा,‘निगरानी समिति के तकनीकी/वैज्ञानिक सदस्यों को नमूने एकत्र करना चाहिये और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की प्रयोगशाला में ऐसे नमूनों का विश्लेषण करना चाहिए.’