एक दिन में 23 और एक साल में 8 हजार 400 लोगों को डॉग बाइट की घटना के बाद भी जयपुर नगर निगम प्रशासन मूकदर्शक बनकर बैठा हुआ है.
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जयपुर: शहर में कुत्तों का आतंक कम नहीं हो रहा है. हालात ये हैं की लोग घरों से निकलने से भी कतरा रहे है. बच्चों ने पार्क में खेलना जाना बंद कर दिया हैं. लेकिन जयपुर नगर निगम हाथ पर हाथ रखे बैठी है. जिला प्रभारी सचिव की बैठक में भी डॉग बाइट का मुद्दा छाया रहा. पिछले एक साल में करीब 8 हजार से ज्यादा लोगों को शहर में कुत्तों ने काटा है. उसके बावजूद नगर निगम प्रशासन मूकदर्शक बनकर बैठा हुआ है.
बता दें कि एक दिन में 23 और एक साल में 8 हजार 400 लोगों को डॉग बाइट की घटना के बाद भी जयपुर नगर निगम प्रशासन मूकदर्शक बनकर बैठा हुआ है. वहीं, जयपुर जिला प्रभारी सचिव की जिला स्तरीय अधिकारियों की बैठक में सरकार की योजनाओं से ज्यादा कुत्तों के बढ़ रहे आतंक पर चर्चा हुई. पिछले एक साल में 9 हजार कुत्तों की नसबंदी, फिर भी डाग बाइट के मामले घटे नहीं हैं. जिन कुत्तों को पकड़ा गया है उनमें रेबीज नहीं है.
वहीं, बैठक में चर्चा हुई की आखिर आवारा कुत्तों से शहरवासियों से कैसे निजात दिलाई जाए. जिला प्रभारी सचिव सुबोध अग्रवाल ने सुझाव दिया की बेंगुलूरू में 100 फीसदी कुत्तों की नसबंदी कर दी गई है. अब वहां कुत्तों की बर्थ कंट्रोल पर अंकुश लगा है. पशुपालन विभाग के चिकित्सक बेंगुलूरू सहित अन्य राज्यों का अध्ययन करें, प्लान बनाकर अधिकारियों को दें. जिसमें देखा जाए की कानून का उल्लंघन भी नहीं हो और बर्थ कंट्रोल भी हो सके. जब तक बर्थ कंट्रोल नहीं होगा आवारा कुत्तों से निजात नहीं मिल सकती है.
हालांकि. जयपुर नगर निगम ने दो फर्मों को चार-चार जोन में कुत्ते पकडने का काम दे रखा है. वहीं, हैल्प इन सफरिंग में हर साल मार्च अप्रैल में सर्वे करते है जिसके अनुसार शहर में 60 से 70 प्रतिशत कुत्तों की नसबंदी हो चुकी है. कुत्तों को रखने की जगह व संसाधनों की कमी के कारण महीने में एक हजार से ज्यादा कुत्तों का बधियाकरण नहीं कर सकते. अगर प्रशासन का पॉजिटिव रवैया हो तो 2 साल में 100 प्रतिशत कुत्तों की नसबंदी हो सकती है. शहर से कुत्तों को पकड़ने का एक एजेंसी को टेंडर न देकर चार एंजेसियों को देना चाहिए.