दबंग और ओंकारा फिल्म के गानों की धुन देने वाले वीर रस के काव्य 'आल्हा' की कहानी
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दबंग और ओंकारा फिल्म के गानों की धुन देने वाले वीर रस के काव्य 'आल्हा' की कहानी

अब आल्हा पहले जितना सुनने को नहीं मिलता है, लेकिन कुछ साल पहले तक बुंदेलखंड और अवध क्षेत्र में ऐसी कोई गली नहीं होती थी, जहां सावन के महीने में आल्हा सुनाई न दे.

बुंदेलखंड के वीर आल्हा और ऊदल

नई दिल्ली: दबंग फिल्म का गाना 'हुड़ हुड़ दबंग दबंग दबंग' या ओंकारा फिल्म के 'धम धम धड़म धड़ैया रे' की धुन कौन भूल सकता है. ये धुन बुंदेलखंड के वीर रस के काव्य 'आल्हा' पर आधारित हैं. अब आल्हा पहले जितना सुनने को नहीं मिलता है, लेकिन कुछ साल पहले तक बुंदेलखंड और अवध क्षेत्र में ऐसी कोई गली नहीं होती थी, जहां सावन के महीने में आल्हा सुनाई न दे.

आल्हा ऊदल की नगरी महोबा में उनकी याद में हर साल रक्षा बंधन पर कजली महोत्सव का आयोजन किया जाता है. इस साल 27 अगस्त से शुरू होकर एक सप्ताह तक चलने वाले इस महोत्सव में बुंदेलखंड की संस्कृति के हर रंग को देखा जा सकता है. आल्हा काव्य परमाल रासो नाम की किताब का एक हिस्सा है, जो आज उपलब्ध नहीं है. लेकिन आल्हा इतना लोकप्रिय हुआ कि लोगों को जुबानी याद रहा. बाद में अंग्रेज कलेक्टर इलियट ने इसे लिपिबद्ध कराया.

आल्हा की कहानी

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बात 11वीं सदी की है. परमालदेव चंदेल राजवंश के राजा थे और महोबा उनकी राजधानी थी. आल्हा-उदल उनके वीर सिपाही थे. राजा उन पर बहुत विश्वास करते थे और वो जनता में भी लोकप्रिय थे. ये बात आल्हा-उदल के मामा को पसंद नहीं थी, और उसने परमालदेव को भड़का दिया. राजा ने आल्हा-उदल को बुलाया और उनसे उनका घोड़ा मांगा. क्षत्रिय अपना घोड़ा किसी को नहीं देते थे. आल्हा ने मना कर दिया और उन्हें राज्य से निकाल दिया गया. 

कन्नौज के राजा जयचंद्र ने उन्हें शरण दी. इसबीच दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान ने महोबा पर आक्रमण कर दिया. परमाल देव घबड़ा गए. उनकी पत्नी देवल देवी आल्हा-उदल को मनाकर वापस ले आईं. आल्हा को सेनापति बना दिया गया. 18 दिन तक लड़ाई चली. युद्ध बहुत भीषण था चंदेलों और चौहान दोनों को भारी नुकसान हुआ. इस लङाई में चौहान कमजोर हो गए, बाद में गोरी से हार गए. परमाल बचे रहे और कई साल शासन किया.

आज भी जीवत हैं आल्हा! 

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युद्ध के बाद आल्हा जीवित बचे. जनता का विश्वास है कि वो आज भी जीवित है. उनकी वीरता ने उन्हें अमर बना दिया.  मध्य प्रदेश के सतना में मैहर की माता शारदा का प्रसिद्ध मंदिर है. कहा जाता है कि शाम की आरती के बाद जब मंदिर के दरवाजे बंद करके सभी पुजारी नीचे आ जाते हैं तब वहां मंदिर के अंदर से घंटी और पूजा करने की आवाज आती है. कहते हैं कि ये आवाज मां के भक्त आल्हा की पूजा अर्चना के कारण आती है. यही भी कहा जाता है कि मंदिर में सुबह सबसे पहली आरती आल्हा ही करते हैं.

आल्हा गायकी की शैलियां

आल्हा गायकी की कई शैलियां हैं, जिसमें बैसवारी प्रमुख है. ये एकल गायन की शैली है. अन्य साथी केवल वाद्यों पर संगत करते हैं. गायन अत्यधिक ओजपूर्ण होता है और गायक शाही वेशभूषा में और कभी-कभी हाथ में तलवार लेकर किसी बहादुर योद्धा की तरह आल्हा गाते हैं. मशहूर आल्हा गायक लल्लू बाजपेई इस शैली के लोकप्रिय गायक थे. इसके अलावा महोबा, दतिया और भोजपुरी शैली भी बेहद लोकप्रिय हैं.

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अब आल्हा काव्य की कुछ झलक प्रस्तुत है. यहां महोबा वालों की वीरता का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वो अगर एक को मारते थे तो दो लोग मरते थे और तीसरा खौफ खाकर मर जाता था. आल्हा में वीरता का वर्णन करने के लिए जमकर अतिश्योक्ति का इस्तेमाल किया गया है. बात को बढ़ाचढ़ा कर कहना कोई आल्हा से सीखे- 

बड़े लड़य्या महुबे वाले जिनकी मार सही न जाए.
एक के मारे दुई मरि जावैं तीसर खौफ खाय मरि जाए.

आल्हा की वीरता का वर्णन करते हुए कहा गया है कि जिस दिन उनका जन्म हुआ, उस दिन जमीन ढाई हाथ धंस गई थी-

बुंदेलखंड की सुनो कहानी बुंदेलों की बानी में.
पानीदार यहां का घोड़ा, आग यहां के पानी में.
पन-पन, पन-पन तीर बोलत हैं, रन में दपक-दप बोले तलवार
जा दिन जनम लिओ आल्हा ने, धरती धंसी अढ़ाई हाथ.

क्षत्रियों की वीरता का वर्णन करते हुए बलिदान का महिमामंडन किया गया है. आल्हा में कहा गया है कि क्षत्रिय तो सिर्फ 18 साल जीता है, उसके आगे उसके जीवन को धिक्कार है. यानी क्षत्रिय को मरने से नहीं डरना चाहिए -

बारह बरिस लै कूकर जीऐं ,औ तेरह लौ जिऐं सियार,
बरिस अठारह छत्री जिऐं ,आगे जीवन को धिक्कार.

इसी तरह आगे कहा गया है कि अगर किसी का दुश्मन जिंदा है तो उसके जीवन को धिक्कार है. यानी जब तक दुश्मन को मार न दिया जाए, चैन से नहीं बैठना चाहिए. आज को दौर में ये बातें अजीब लग सकती हैं, लेकिन हमारे मध्यकालीन इतिहास का यही सच है - 

जिनके बैरी सम्मुख बैठे उनके जीवन को धिक्कार.
खटिया परिके जौ मरि जैहौ,बुढ़िहै सात साख को नाम
रन मा मरिके जौ मरि जैहौ,होइहै जुगन-जुगन लौं नाम.

आल्हा के भाई उदल की लापरवाही के चलते उनके बेटे इंदल का अपहरण हो जाता है. इस पर आल्हा गुस्से में उदल की पिटाई करते हैं. तब आल्हा की पत्नी ने आल्हा को रोकते हुये कहा- 

हम तुम रहिबे जौ दुनिया में इंदल फेरि मिलैंगे आय
कोख को भाई तुम मारत हौ ऐसी तुम्हहिं मुनासिब नाय.

जब महोबा पर पृथ्वीराज चौहान ने हमला कर दिया, तो परमाल देव ने आल्हा-उदल से लौट आने की प्रार्थना की. उन्होंने कहा कि जब महोबा लुट जाएगा, तब तुम यहां क्या खाक बटोरने आओगे. क्या इसी दिन के लिए हमने तुम्हें पाला था -

घर-घर महोबा पृथ्वी घेरा, फाटक बंद दियो करवाय
तुम बिन विपदा हम पर गिर गई, बेटा हमको होऊ सहाय
नगर महोबा जब लुट जैहें, तब का खाक बटोरबा आय
याही दिन को हम पालो है, को अइसन में अइहे काम

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