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नई दिल्ली: राजस्थान के बीकानेर जिले की नोखा तहसील के गांव रासीसर के डेलू परिवार में 3 अप्रेल 1988 को एक मेधावी प्रतिभा का जन्म हुआ. जिनके माता-पिता ने बड़े अरमानों से अपने बेटे का नाम प्रेमसुख डेलू (PremSukh Delu) रखा. तब तो किसी ने भी ये नहीं सोचा था कि छोटे से गांव का ये लड़का कामयाबी की इतनी सीढ़ियां चढ़ेगा कि खुद कामयाबी की मिसाल बन जाएगा.
उनकी सफलता को इस तरह भी समझा जा सकता है कि जिस देश में सरकारी नौकरी पाने के लिए लाखों प्रतिभागी कई साल तक कड़ी मेहनत करते हैं फिर भी उसे हासिल नहीं कर पाते वहीं उन्हीं परिष्थितियों के बीच इनकी 12 बार सरकारी नौकरी लग चुकी है. गुजरात (Gujarat) कैडर के आईपीएस प्रेमसुख डेलू (IPS presukh Delu) वर्तमान में अहमदाबाद में जोन 7 के डीसीपी पद पर तैनात हैं. प्रेमसुख डेलू की पत्नी का नाम (Premsukh Delu wife name) भानूश्री है. प्रेमसुख डेलू ने साल 2021 में बीकानेर की रहने वाली भानूश्री से शादी की.
उनकी सरकारी नौकरी लगने का सिलसिला साल 2010 में शुरू हुआ था. सबसे पहले वो बीकानेर जिले में पटवारी बने. लेकिन वो जिंदगी में कुछ बड़ा मुकाम हासिल करना चाहते थे लिहाजा उन्होंने नौकरी के साथ-साथ पढ़ाई लिखाई जारी रखी.
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प्रेमसुख डेलू ने पटवारी पद पर रहते हुए कई अन्य प्रतियोगी परीक्षाएं दी. ग्राम सेवक परीक्षा में राजस्थान में दूसरी रैंक हासिल की, मगर ग्राम सेवक ज्वाइन नहीं किया. क्योंकि उसी दौरान राजस्थान असिस्टेंट जेल परीक्षा का परिणाम आ गया और इसमें प्रेमसुख डेलू ने पूरे राजस्थान में टॉप किया. असिस्टेंट जेलर के रूप में ज्वाइन करते उससे पहले राजस्थान पुलिस में सब इंस्पेक्टर पद पर चयन हो गया.
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साल 2014 में उनका चयन आरएएस यानी राजस्थान प्रशासनिक सेवा के लिए भी हुआ. उसके बाद उन्होंने रेवेन्यू सर्विस ज्वाइन की लेकिन वहां भी वो एक रैंक से पीछे रह गए. हालांकि उन्होंने हिम्मत नहीं हारी क्योंकि महीने भर बाद ही यूपीएससी (UPSC) की परीक्षा थी. इस तरह सिविल सेवा-2015 में उन्होंने 170वींं रैंक हासिल की और कड़ी मेहनत से साल 2016 में आईपीएस अफसर बनें जिनकी पहली पोस्टिंग साबरकांठा जिले में बतौर एएसपी (ASP) हुई.
प्रेमसुख की छवि बेहद इमानदार और दबंग आईपीएस अफसर के तौर पर बन चुकी है. शहर के अखबारों में इनकी बहादुरी और जाबांजी के किस्से छपते रहते हैं. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाली एक मैगजीन में छपे उनके इंटरव्यू में एक जगह उनकी तेजतर्रार छवि का जिक्र कुछ इस तरह किया गया है कि 'डेलू ने बोला तो फाइनल' आज शहर के पुलिस फोर्स की टैग लाइन बन गई है.
प्रेमसुख का बचपन गरीबी में गुजरा और पढ़ाई सरकारी स्कूलों में हुई. गरीबी का आलम यह था कि आठवीं कक्षा तक प्रेमसुख ने कभी फुल पैंट नहीं पहनी थी. किसान पिता ऊंट गाड़ी चलाते थे. प्रेमसुख कहते हैं कि माता-पिता पढ़े-लिखे नहीं थे, मगर मुझे पढ़ने-लिखने का भरपूत अवसर देकर काबिल बना दिया. चार भाई बहनों में सबसे छोटे हैं.
आईपीएस डेलू का कहना है कि उन्होंने अपनी हर नौकरी से बहुत कुछ सीखा है. ऐसे में वो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों में जुटे छात्रों से कहते हैं कि अपनी कमियों को छुपाएं नहीं बल्कि उनपर चर्चा करें ताकि वो आपकी मजबूती बन सकें. प्रेमसुख डेलू ने आईएएस का साक्षात्मकार दे रखा है. इसमें भी चयन होने की पूरी उम्मीद है. राजस्थान के छोटे गांव रामसीसर से आईपीएस बनने तक का सफर तय करने वाले प्रेम सुख डेलू की सक्सेस स्टोरी युवाओं के लिए प्रेरणादायी है.
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