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DNA Analysis: अंग्रेजों से गुलामी की बेड़ियों से आजाद हुए हमारे देश को 75 वर्ष हो चुके हैं. लेकिन विडंबना देखिए कि हमारा देश, अंधविश्वास की बेड़ियों में आज भी जकड़ा हुआ है. हम चांद और मंगल तक तो पहुंच गए लेकिन हमारे समाज की सोच आज भी अंधविश्वास के दलदल में धंसी हुई है. अंधविश्वास का एक ऐसा ही पाताल लोक सामने आया है जहां आज भी महिलाओं को डायन बताकर समाज हैवान बन जाता है.
कहां का है मामला?
झारखंड की राजधानी रांची के पास राणाडीह गांव में डायन बताकर 3 महिलाओं को पीट-पीटकर मार डाला गया है. इस मामले में अबतक गांव के बीस से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है. हैरत की बात ये है कि इस घटना का मास्टरमाइंड, डायन बताकर मार डाली गईं महिलाओं में से एक महिला का सगा बेटा है. दरअसल गांव वालों को शक था कि गांव की रहने वाली तीन महिलाएं इच्छाधारी नागिन हैं. जो दिन के उजाले में तो महिला के भेष में रहती हैं और रात होते ही नागिन बन जाती हैं. ऐसी इच्छाधारी नागिनें आपने कई फिल्मों और टीवी सीरियल्स में देखी होंगी.
लेकिन झारखंड में जो हुआ है, वो कोई रील लाइफ नहीं बल्कि रियल लाइफ की स्टोरी है. लेकिन डायन बताकर तीन महिलाओं को मौत के घाट उतारने की ये घटना, किसी फिल्म की स्क्रिप्ट से कम नहीं है. मारी गईं महिलाओं के खिलाफ पहले ये अफवाह फैलाई गई कि वो नागिन बनकर गांव के युवाओं को डस रही हैं और फिर पूरे गांव ने तीनों महिलाओं को डायन बताकर बेरहमी से मार डाला.
21वीं सदी का काला सच
आप ये कल्पना भी नहीं कर सकते कि 21वीं सदी में ऐसा हो सकता है. लेकिन ये कल्पना नहीं बल्कि हकीकत है. जिसकी ज़ी न्यूज़ ने ग्राउंड जीरो पर जाकर पुष्टि भी की है. बता दें कि 1 सितंबर की रात सांप के डसने से 18 साल के राजकिशोर मुंडा की मौत हो गई थी. अगले ही दिन 19 साल के ललित मुंडा को भी सांप ने काट लिया, लेकिन वो बच गया. सांप काटने की घटनाओं से डरे गांववालों ने तंत्र-मंत्र करने वाले ओझा को बुला लिया. ओझा ने सांप काटे से बच गए ललित मुंडा की मां समेत तीन महिलाओं को इच्छाधारी नागिन बता दिया. गांव वालों ने भी सर्वसम्मति से महिलाओं को डायन मानकर उन्हें जान से मारने का फैसला कर लिया. इसके बाद गांव के पास की इन्हीं पहाड़ियों के पास ले जाकर उनकी पीट-पीटकर हत्या कर दी गई.
ये पूरा गांव डायन बताकर महिलाओं को मार देने का चश्मदीद गवाह भी है और हत्यारा भी और अंधविश्वास में डूबा है. इन हत्यारों को ना तो भगवान का डर है और ना पुलिस का.
एक या दो बार का नहीं है ये केस
कई लोग सोच रहे होंगे कि डायन बताकर महिलाओं को मार देने की घटनाएं तो इक्का-दुक्का होती हैं, इससे पूरे समाज पर सवाल उठाना ठीक नहीं है. कई लोग सवाल उठाएंगे कि किसी एक जगह पर हुई घटना को पूरे देश से जोड़ना सही नहीं है. ऐसा सोचने वालों की गलतफहमी को दूर करना भी जरूरी है. जिसके लिए हमारे पास डायन बताकर मर्डर करने वाली घटनाओं के वेरिफाइड आंकड़े हैं. National Crime Records Bureau यानी NCRB के मुताबिक वर्ष 2001 से लेकर 2020 के दौरान देश में 2885 महिलाओं की डायन बताकर हत्या कर दी गई. यानी हर साल 144 महिलाओं की जान डायन बताकर ले ली गई. ऐसी घटनाओं में पहले नंबर पर झारखंड ही हैं, जहां पिछले 20 वर्षों में 590 महिलाओं को डायन बताकर मार डाला गया. जबकि 506 हत्याओं के साथ दूसरे नंबर पर ओडिशा और 409 हत्याओं के साथ आंध्र प्रदेश तीसरे स्थान पर है.
डायन बताकर जान से मारने के मामले खासतौर से आदिवासी इलाकों में देखने को मिलते हैं. ग्रामीण इलाकों में आज भी ये एक बड़ी समस्या है. डायन बताकर मारने के मामलों में अलग-अलग वजह होती हैं, जिनमें से प्रमुख वजह हैं..
जलन और किसी का कोई निजी स्वार्थ..
संपत्ति विवाद या जमीन हड़पने की साजिश..
या तांत्रिक-ओझा के बहकावे में आ जाना
सरकार लाई थी विधेयक
कई बार ऐसी हत्या के पीछे कोई राजनीतिक उद्देश्य भी साधा जाता है. लेकिन इस कुप्रथा की जड़ है अंधविश्वास. झारखंड समेत कई राज्य सरकारें डायन बताकर हत्याओं की कुप्रथा के खिलाफ जागरुकता अभियान भी चलाती हैं. झारखंड सरकार तो इसके लिए हर साल करोड़ों रुपये का फंड भी जारी करती है. लेकिन ये सिर्फ झारखंड की समस्या नहीं है. बल्कि पूरे देश की समस्या है. जिसके खिलाफ 2016 में केंद्र सरकार, संसद में एक विधेयक भी लेकर आई थी. इस विधेयक में किसी को डायन ठहराया जाना ऐसा जुर्म है जिसमें 3 साल तक की सजा का प्रावधान है. किसी को डायन बताकर बदनाम कर दिए जाने के कारण अगर कोई महिला आत्महत्या कर लेती है तो इस केस में 3 साल से लेकर उम्रकैद की सजा का प्रावधान है. अगर डायन बताकर किसी को प्रताड़ित किया जाए, जैसे कि घर-गांव से निकाल देना या प्रॉपर्टी से बेदखल कर देना, तो दोष साबित होने पर 3 से 5 साल तक की सजा का प्रावधान है. ऐसे तांत्रिक या ओझा, जो किसी महिला के डायन होने की अफवाह फैलाते हैं, उन पर जुर्म साबित होने पर एक से तीन साल की सजा का प्रावधान है.
ये विधेयक 6 साल पहले लाया गया था, लेकिन आजतक ये कानून नहीं बन पाया है. हालांकि झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा समेत 8 राज्यों में Anti Witch Hunt कानून हैं. लेकिन हमारा मानना है कि अंधविश्वास और कुप्रथाओं का अंत सिर्फ कानून बनाने से नहीं होता. ऐसी सामाजिक बुराइयों को मिटाने के लिए समाज की मानसिकता में बदलाव लाना होगा. जो अभी भी अंधविश्वास के अंधेरी दुनिया में भटक रहा है.
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