Supreme Court On Hospital Charges: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह अस्पतालों में वसूले जाने वाले चार्जेज के मानक तय करे. SC ने केंद्र को महीने भर की मोहलत दी है.
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b मोतियाबिंद की सर्जरी सरकारी अस्पताल में 10 हजार रुपये के भीतर हो जाती है. जबकि प्राइवेट अस्पतालों में उसी सर्जरी के लिए 30 हजार से लेकर 1.40 लाख रुपये तक वसूले जाते हैं. सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों के चार्जेज में इतना अंतर क्यों है? सुप्रीम कोर्ट ने इसका संज्ञान लिया है. केंद्र सरकार से कहा गया है कि वह राज्यों के साथ मिलकर एक स्टैंडर्ड रेट तय करे. सुप्रीम कोर्ट ने महीने भर के भीतर इस बारे में नोटिफिकेशन जारी करने का निर्देश दिया है. अदालत ने सख्त लहजे में कहा कि 'अगर केंद्र सरकार समाधान खोजने में नाकाम होती है तो हम CGHS के हिसाब से स्टैंडर्ड रेट तय करने की याचिकाकर्ता की गुहार पर विचार करेंगे.' SC ने 14 साल पुराने कानून - क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट (केंद्र सरकार) रूल्स - को लागू करने को कहा है. इसके तहत, राज्यों से बातचीत कर महानगरों, शहरों और कस्बों में इलाज और विभिन्न तरह के ऑपरेशनों की स्टैंडर्ड रेट तय करना अनिवार्य है.
सरकार ने मंगलवार को SC से कहा कि उसने इस बारे में राज्यों को बार-बार लिखा लेकिन कोई जवाब नहीं आया. अदालत ने कहा कि स्वास्थ्य सेवा नागरिकों का मूल अधिकार है, केंद्र इस आधार पर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता. मामले को जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने सुना. अदालत ने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव को निर्देश दिया कि महीने भर के भीतर स्टैंडर्डाइजेशन पूरा किया जाए.
अस्पतालों के रेट : क्या कहते हैं निय
सुप्रीम कोर्ट में यह PIL 'वेटरंस फोरम फॉर ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक लाइफ' नाम के NGO ने दायर की है. उनके एडवोकेट दानिश जुबैर ने अदालत को बताया कि केंद्र ने कोविड के समय इलाज का स्टैंडर्ड रेट तय करने में फुर्ती दिखाई थी. अब अगर राज्य सहयोग नहीं कर रहे तो उन्हीं केंद्रीय कानूनों का इस्तेमाल करते हुए फीस तय की जा सकती है.
क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट (केंद्र सरकार) रूल्स के तहत, सभी अस्पतालों और क्लिनिकल संस्थाओं को अपना रजिस्ट्रेशन बचाए रखने के लिए 'मरीजों की हर सेवा और सुविधा के लिए चार्ज किया जाने वाली दरों को स्थानीय भाषा के साथ-साथ अंग्रेजी में एक खास जगह पर प्रदर्शित किया जाना चाहिए, और राज्य सरकारों की सलाह से समय-समय पर केंद्र द्वारा निर्धारित और जारी की गई दरों की सीमा के भीतर ही हर तरह की प्रक्रियाओं और सेवाओं के लिए शुल्क वसूला जाना चाहिए.'