धार्मिक संस्थाओं में लागू नहीं होगी विशाखा गाइडलाइंस, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की मांग
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धार्मिक संस्थाओं में लागू नहीं होगी विशाखा गाइडलाइंस, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की मांग

सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में सरकारी महकमों और सार्वजनिक उपक्रमों में महिलाओं के यौन उत्पीड़न की घटनाओं से निबटने के लिए दिशा निर्देश तैयार किए थे.

फाइल फोटो

नई दिल्लीः आश्रम, मदरसा, चर्च जैसी धार्मिक संस्थाओं में यौन उत्पीड़न की शिकायत के लिए कमेटी (विशाखा गाइडलाइंस) बनाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इंकार कर दिया.चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सोमवार को कहा कि विशाखा गाइडलाइन का धार्मिक स्थलों पर कैसे विस्तार हो सकता है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में सभी दफ्तरों में ऐसी कमिटी बनाने का आदेश दिया था1997 से पहले महिलाएं कार्यस्थल पर होने वाले यौन-उत्पीड़न की शिकायत आईपीसी की धारा 354 (महिलाओं के साथ होने वाली छेड़छाड़ या उत्पीड़न के मामले) और धारा 509 (किसी औरत के सम्मान को चोट पहुंचाने वाली बात या हरकत) के तहत दर्ज करवाती थीं.

याचिका में विशाखा गाइडलाइंस के दायरे में धार्मिक संस्थाओं को भी शामिल करने का अनुरोध किया गया था. 

बता दें कि साल 2012 में भी सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में जारी विशाखा गाइडलाइंस द्वारा दी गई व्यवस्था के दायरा बढ़ाते हुए बार काउन्सिल ऑफ इंडिया (BCI) और भारतीय चिकित्सा परिषद (IMC) जैसी सभी नियामक संस्थाओं को निर्देश दिया था कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों से निबटने के लिए वे अपने यहां समितियां गठित करें. 19 अक्टूबर 2012 को तत्कालीन जज जस्टिस आरएम लोढा की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय खंडपीठ ने मेधा कोतवाल लेले की याचिका पर अपने फैसले में नियामक संस्थाओं और उनसे संबद्ध सभी संस्थानों को 1997 में विशाखा प्रकरण मे प्रतिपादित दिशा निर्देश दो महीने के भीतर लागू करने का निर्देश दिया था.

क्या है विशाखा गाइडलाइंस?
सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में सरकारी महकमों और सार्वजनिक उपक्रमों में महिलाओं के यौन उत्पीड़न की घटनाओं से निबटने के लिए दिशा निर्देश तैयार किए थे. इन दिशा निर्देशों के अनुसार कार्यस्थलों और दूसरे संस्थानों पर यौन उत्पीड़न की घटनाओं की रोकथाम करना और ऐसे विवादों के समाधान तथा कानूनी कार्यवाही के लिए सभी उचित कदम उठाना नियोक्ता या अन्य जिम्मेदार व्यक्तियों का कर्तव्य होगा. दिशानिर्देशों में यह भी कहा गया था कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न निषेध करने के नियमों को अधिसूचित करने के साथ ही इनका प्रकाशन और वितरण भी किया जाना चाहिए. इसमें यौन उत्पीड़न करने वालों के खिलाफ दंड का भी प्रावधान होना चाहिए.

इस न्यायिक व्यवस्था के तहत निजी नियोक्ताओं को भी अपने आदेशों में यौन उत्पीड़न निषेध को शामिल करने का निर्देश दिया गया था. दिशा निर्देशों में ऐसे मामलों की जांच के लिए शिकायत समिति गठित करने की सिफारिश की गई थी. ऐसी समितियों का अध्यक्ष किसी महिला को बनाने और समिति में कम से कम आधी संख्या महिला सदस्यों की रखने की भी सिफारिश की गई थी. न्यायिक व्यवस्था में उच्च स्तर से किसी प्रकार के अनावश्यक प्रभाव की संभावना समाप्त करने के इरादे से समिति में तीसरे पक्ष के रूप में किसी गैर सरकारी संगठन या यौन उत्पीड़न के मामलों से परिचित किसी अन्य संस्था को भी इसमें शामिल करने की सिफारिश की गई थी.

सुप्रीम कोर्ट के इन निर्देशों को ही 'विशाखा गाइडलाइन्स' के रूप में जाना जाता है.इसे विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान सरकार और केंद्र सरकार मामले के तौर पर भी जाना जाता है.इस फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यौन-उत्पीड़न, संविधान में निहित मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 14, 15 और 21) का उल्लंघन हैं. इसके साथ ही इसके कुछ मामले स्वतंत्रता के अधिकार (19)(1) (g) के उल्लंघन के तहत भी आते हैं.

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