आधार पर सुप्रीम कोर्ट में फैसला टला, सुनवाई के लिहाज से बना 'दूसरा सबसे लंबा' केस
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आधार पर सुप्रीम कोर्ट में फैसला टला, सुनवाई के लिहाज से बना 'दूसरा सबसे लंबा' केस

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने करीब साढ़े चार महीने के दौरान 38 दिन इन याचिकाओं पर सुनवाई की.

उच्चतम न्यायालय

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आधार और इससे संबंधित 2016 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार (10 मई) को फैसला सुरक्षित रखा. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने करीब साढ़े चार महीने के दौरान 38 दिन इन याचिकाओं पर सुनवाई की. पीठ ने उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के एस पुत्तस्वामी की याचिका सहित 31 याचिकाओं पर सुनवाई की थी. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति ए के सिकरी, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण शामिल हैं.

अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ को जानकारी दी कि 1973 के ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामले के बाद निरंतर सुनवाई के संदर्भ में यह ‘‘दूसरा सबसे लंबा’’ मामला बन गया है. वेणुगोपाल ने कहा कि केशवानंद भारती मामले में पांच महीने सुनवाई हुई थी और इस मामले में निरंतर साढ़े चार महीने सुनवाई हुई. यह इतिहास में निरंतर सुनवाई के संदर्भ में दूसरा सबसे लंबा मामला है.

केंद्र ने किया आधार को मोबाइल से जोड़ने का बचाव
इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल और विभिन्न पक्षकारों की ओर से कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम, राकेश द्विवेदी, श्याम दीवान और अरविन्द दातार सरीखे वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने अपनी अपनी दलीलें पेश कीं. सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने आधार नंबरों के साथ मोबाइल फोन जोड़ने के निर्णय का बचाव करते हुये कहा कि यदि मोबाइल उपभोक्ताओं का सत्यापन नहीं किया जाता तो उसे शीर्ष अदालत अवमानना के लिये जिम्मेदार ठहराती.

सरकार पर लगाया आदेश की गलत व्याख्या करने का आरोप
हालांकि, न्यायालय ने कहा था कि सरकार ने उसके आदेश की गलत व्याख्या की और उसने मोबाइल उपभोक्ताओं के लिये आधार को अनिवार्य बनाने के लिये इसे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया. शीर्ष अदालत सरकार की इस दलील से सहमत नहीं थी कि लोक सभा अध्यक्ष ने आधार विधेयक को सही मायने में धन विधेयक बताया था क्योंकि यह समेकित कोष से मिलने वाले कोष से दी जा रही सब्सिडी से संबंधित है.

सबसे पहले कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश ने दायर की थी याचिका
इससे पहले, 14 दिसंबर को अदालत ने एक याचिका पर सुनवाई की थी जिसमें सरकार और उसके विभागों पर विभिन्न सेवाओं और लाभ का फायदा उठाने के लिए आधार को अनिवार्य बनाने के निर्णय से अंतरिम राहत देने की मांग की गई थी. इस संबंध में बाद में सबसे पहले कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के.एस. पुत्तास्वामी ने याचिका दायर की थी. बाद में कई लोगों ने भी आधार की वैधता को चुनौती देने के संबंध में याचिका दाखिल की थी. आधार के खिलाफ पहले दिन से ही वरिष्ठ वकील श्याम दीवान लड़ाई लड़ रहे हैं, जिन्होंने न्यायमूर्ति पुत्तास्वामी और बाद में कई याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया.

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