सुप्रीम कोर्ट ने 7 जून को अपने आदेश में कहा था कि शरद यादव बतौर सांसद उन्हें मिलने वाले वेतन, भत्ते और दूसरी सुविधायें नहीं ले सकते हैं.
Trending Photos
नई दिल्ली: राज्यसभा की सदस्यता से आयोग्य करार दिए गए शरद यादव के खिलाफ जेडीयू की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सोमवार को अहम सुनवाई करेगा. जस्टिस एके सिकरी और जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ जेडीयू की याचिका पर सुनवाई करेगी. दरअसल, जेडीयू नेता रामचंद्र प्रसाद सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दिल्ली हाईकोर्ट के 11 सितंबर के आदेश को चुनौती दी है.
इससे पहले हाईकोर्ट में शरद यादव की नई पार्टी बनाने को लेकर जेडीयू ने अर्जी दायर कर कहा था कि शरद यादव ने नई पार्टी बना ली है, जो साबित करता है कि उनकी सदस्यता रद्द होने का फैसला सही था. ऐसे में इन तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट मामले की सुनवाई करे, लेकिन हाईकोर्ट ने जेडीयू की इस मांग को ठुकराते हुए कहा था कि वो नए तथ्यों पर नहीं बल्कि पुराने तथ्यों के आधार पर सुनवाई करेगा.
आपको बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 7 जून को अपने आदेश में कहा था कि शरद यादव बतौर सांसद उन्हें मिलने वाले वेतन, भत्ते और दूसरी सुविधायें नहीं ले सकते लेकिन वह सरकारी बंगले में रह सकते हैं. शरद यादव को राज्यसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित किया जा चुका है जिसे उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दे रखी है.
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के पिछले साल 15 दिसंबर के आदेश में संशोधन कर दिया था. इसी आदेश में शरद यादव को उनकी याचिका लंबित रहने के दौरान वेतन, भत्ते और दूसरी सुविधायें प्राप्त करने और सरकारी बंगले में रहने की अनुमति दी थी.सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में शरद यादव को हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश के अनुसार सरकारी बंगले में रहने की अनुमति दे दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सभा में जेडीयू के सांसद रामचन्द्र प्रकाश सिंह की याचिका पर यह आदेश दिया था. सिंह ने हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को चुनौती दी थी.
गौरतलब है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने 15 दिसंबर 2017 के अपने आदेश में शरद यादव को राज्य सभा सांसद के रूप में अयोग्य घोषित किये जाने पर अंतरिम रोक लगाने से इंकार कर दिया था. हाईकोर्ट ने शरद यादव द्वारा अपनी अयोग्यता को विभिन्न आधार पर चुनौती देने वाली याचिका पर यह अंतरिम आदेश दिया था. यादव का कहना था कि राज्य सभा के सभापति ने चार दिसंबर को उन्हें और एक अन्य सासंद अली अनवर को अयोग्य घोषित करने का फैसला सुनाने से पहले अपना पक्ष रखने के लिये कोई अवसर प्रदान नहीं किया.