Swami Vivekanand Chicago Visit: 11 सितंबर, 1893 को स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में विश्व धर्म महासभा में अपना भाषण दिया था.
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Narendra Modi Himalaya Visit: स्वामी विवेकानंद की विरासत द्वारा शिकागो में दिए गए ऐतिहासिक भाषण की याद में भारत 'दिग्विजय दिवस' का जश्न मना रहा है. इस अवसर पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर 'मोदी आर्काइव' अकाउंट पर बताया गया है, कैसे 131 साल पहले दिया गया यह भाषण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुद की खोज की यात्रा पर हिमालय तक ले गया था. 11 सितंबर, 1893 को स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में विश्व धर्म महासभा में अपना भाषण दिया था. तब उनके शब्दों ने न केवल दुनिया को भारत की समृद्ध आध्यात्मिक धरोहर से परिचित कराया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के कई लोगों को प्रेरित किया.
इनमें एक 17 साल के नरेंद्र मोदी भी शामिल थे. 'मोदी आर्काइव' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीवन यात्रा के बारे में जानकारी साझा करता है. इस अकाउंट ने बुधवार को नरेंद्र मोदी की एक पुरानी तस्वीर शेयर की और बताया कि स्वामी विवेकानंद के भाषण का उनके युवा मन पर क्या प्रभाव पड़ा था. स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं से नरेंद्र मोदी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने वडनगर स्थित अपना घर छोड़कर खुद को समझने के लिए हिमालय की यात्रा शुरू की.
'मोदी आर्काइव' ने नरेंद्र मोदी की एक और तस्वीर शेयर की, जो उनके गांव में एक शादी समारोह की है, यह तस्वीर उनके हिमालय के लिए प्रस्थान से एक दिन पहले की है. जानकारी के अनुसार, नरेंद्र मोदी को स्वामी विवेकानंद के कार्यों और विचारों के बारे में अपने गांव के डॉ. वसंतभाई पारिख से पता चला था.
131 years ago, on September 11th, 1893, #SwamiVivekananda delivered his timeless speech at the Parliament of World’s Religions in Chicago. His words not only introduced the world to India’s rich spiritual heritage but also inspired countless individuals in future generations, one… pic.twitter.com/3XNvOpviwP
— Modi Archive (@modiarchive) September 11, 2024
131 साल पहले, स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म महासभा में अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं के अपने जीवन पर प्रभाव के बारे में बात की है और यह प्रभाव उनके सार्वजनिक जीवन में भी दिखता है. इस वर्ष, 2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के बाद, प्रधानमंत्री मोदी ने कन्याकुमारी में स्वामी विवेकानंद स्मारक पर दो दिन ध्यान करते हुए बिताए थे. यह स्मारक स्वामी विवेकानंद के नाम पर रखा गया था क्योंकि उन्होंने यहां ध्यान किया था, और यहीं कन्याकुमारी में उन्हें आधुनिक भारत की दृष्टि प्राप्त हुई थी.
शिकागो धर्म संसद : 131 साल पहले विवेकानंद का संदेश
स्वामी विवेकानंद ने मात्र 23 साल की उम्र में गेरुआ वस्त्र धारण करके पूरे भारत की पैदल यात्रा की. इसके बाद जो कुछ हुआ, उसकी गवाह संपूर्ण मानव जाति रही. 11 सितंबर 1893 को स्वामी विवेकानंद ने शिकागो धर्म संसद में 'वेदांत दर्शन' पर भाषण दिया था. इस भाषण ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया. आज शिकागो धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद के भाषण की 131वीं वर्षगांठ है. अगर वैश्विक स्तर पर देखें तो युद्ध, उन्माद और गृह युद्ध जैसी स्थितियां कई देशों में देखी जा रही है. एशिया से लेकर यूरोप तक में रूस-यूक्रेन युद्ध की ताप महसूस की जा रही है. इस स्थिति में स्वामी विवेकानंद के शिकागो धर्म संसद में दिए गए भाषण को आत्मसात करके शांति बहाली संभव है.
स्वामी जी को 'विवेकानंद' नाम राजस्थान के झुंझुनूं जिले के खेतड़ी के महाराजा अजीत सिंह ने दिया था. महाराजा अजीत सिंह ने उनके सिर पर ना सिर्फ केसरिया पगड़ी पहनाई थी, उनकी शिकागो यात्रा का भी इंतजाम किया था. उनके प्रयास से ही स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका में हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति का शंखनाद किया, जिसकी गूंज आज भी सभी को सुनाई देती है. स्वामी विवेकानंद ने शिकागो की यात्रा 31 मई 1893 को मुंबई (तब बंबई) से शुरू की. यहां से विवेकानंद जापान पहुंचे. उन्होंने जापान के नागासाकी, क्योटो, टोक्यो, कोबे, योकोहामा, ओसाका जैसे शहरों का दौरा किया. इसके बाद चीन और कनाडा के रास्ते अमेरिका पहुंचे. शिकागो में आयोजित धर्म संसद विवेकानंद के लिए मंजिल नहीं, बल्कि, महज एक शुरुआत भर थी.
स्वामी विवेकानंद ने शिकागो धर्म संसद में जो भाषण दिया था, उसके हर शब्द और वाक्य, देश, राजनीति और विचारधारा की सीमाओं से परे थे. उनके भाषण में विश्व कल्याण का मंत्र छिपा था. उनके भाषण ने भारत के प्रति दुनिया के नजरिए में बदलाव ला दिया था. शिकागो धर्म संसद को स्वामी जी ने महज 30 वर्ष की उम्र में संबोधित किया था. जिसने सभी को प्रभावित किया था.
'सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका'
विवेकानंद ने अपने भाषण की शुरुआत, 'सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका' (अमेरिका के भाइयों एवं बहनों) से की थी. इसके बाद हॉल में देर तक तालियां गूंजती रही. यह अपने आप में खास था कि उनका भाषण सिर्फ 468 शब्दों का था. भाषण की शुरुआत के साथ ही विवेकानंद ने सबसे पहले हिंदुओं की ओर से आभार व्यक्त किया. उन्होंने कहा, "मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों, मैं आपको दुनिया की प्राचीनतम संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं. मैं सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जातियों, संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं. यह जाहिर करने वालों को भी मैं धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने बताया कि दुनिया में सहिष्णुता का विचार पूरब के देशों से फैला है."
विवेकानंद ने आगे कहा, "मुझे इस बात का गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया और हम सभी धर्मों को स्वीकार करते हैं. जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग रास्तों से होकर समुद्र में मिलती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य भी अपनी इच्छा से अलग रास्ते चुनता है. ये रास्ते दिखने में भले अलग-अलग लगते हैं, सभी ईश्वर तक ही जाते हैं."
उन्होंने यह भी कहा था, "सांप्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी वीभत्स वंशधर धर्मांधता इस सुंदर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज कर चुकी हैं. वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं. उसे बारंबार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं, सभ्यताओं को ध्वस्त करती हुई पूरे के पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं. यदि ये वीभत्स दानवी शक्तियां नहीं होती तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता."
'साइक्लॉनिक हिंदू'
खास बात यह रही कि स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण में वेद, अध्यात्म, हिंदू धर्म को आधार बनाकर संपूर्ण विश्व को शांति, सहिष्णुता, प्रेम और सद्भाव का संदेश दिया. कई लोग चाहते थे कि स्वामी विवेकानंद धर्म संसद में भाषण देने में सफल नहीं हों. लेकिन, एक अमेरिकी प्रोफेसर की कोशिश रंग लाई. इस भाषण के बाद अमेरिका में स्वामी विवेकानंद का जोरदार स्वागत हुआ.
अमेरिका के अखबार स्वामी विवेकानंद के भाषण से पटे पड़े थे. अमेरिकी मीडिया ने स्वामी विवेकानंद को 'साइक्लॉनिक हिंदू' का नाम दिया था. भाषण की अगली सुबह प्रकाशित न्यूयार्क हेराल्ड ने लिखा, "विवेकानंद निस्संदेह धर्म संसद में सबसे बड़े व्यक्ति हैं." इस कार्यक्रम के बाद विवेकानंद ने तीन साल तक अमेरिका और इंग्लैंड में वेदांत दर्शन और धर्म का प्रचार किया था.
विवेकानंद भारत लौटे और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की. महज 39 साल में नश्वर शरीर का त्याग करने वाले विवेकानंद ने युवाओं को काफी प्रेरणा दी. उन्होंने हीन भावना छोड़कर लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में कदम बढ़ाने की सीख दी थी. उन्होंने कहा था, "उठो, जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओ. अपने नर-जन्म को सफल करो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए."
(इनपुट: एजेंसी आईएएनएस)