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नई दिल्ली: आज हम एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल के साथ आपके सामने आए हैं. क्या आपको अपने ही देश में कोई अप्रवासी कह सकता है? क्या आप भारत के किसी भी दूसरे राज्य में रोजगार के लिए नहीं जा सकते? और अगर भारत का कोई नागरिक अपने गृह राज्य को छोड़कर रोजगार के लिए किसी दूसरे राज्य में जाता है तो क्या ये कहकर उसकी हत्या कर दी जाएगी कि वो उस राज्य का मूल निवासी नहीं है? अगर ये हत्याएं धर्म के नाम पर हो रही हो हैं, तब आप क्या कहेंगे?
कश्मीर में आजकल यही हो रहा है. वहां रोजगार के लिए गए लोगों का आई कार्ड देखा जाता है, नाम पूछा जाता है और गैर मुस्लिम पाए जाने पर उनकी हत्या कर दी जाती है. आतंकवादियों की इस साजिश में पाकिस्तान की ISI और अफगानिस्तान के तालिबान के फुट प्रिंट साफ दिखाई दे रहे हैं, आज हम आपके सामने ISI की उस टूल किट का खुलासा करेंगे, जिसके तहत आतंकवादी कश्मीर में एक ऐसी स्थिति पैदा करना चाहते हैं कि वहां भारत का एक भी गैर मुस्लिम नागरिक ना बचे और भारत के लोग वहां जाने के ख्याल से भी डरने लगें.
कश्मीर के अलग-अलग जिलों के लोग अपनी जान बचाने के लिए कश्मीर छोड़ने के लिए मजबूर हैं. कश्मीर के कुलगाम, पुलवामा और बडगाम जैसे जिलों में आतंकवादियों के डर से बड़ी संख्या में हिंदू पालयन कर रहे हैं, लेकिन हमारे देश का एक खास वर्ग इन लोगों को नॉन नेटिव यानी भारत के दूसरे राज्यों का नागरिक बता रहा है. आतंकवादी चाहते हैं कि भारत के किसी राज्य का कोई भी नागरिक कश्मीर को अपने देश का हिस्सा मानने की हिम्मत ना करे.
भारत का संविधान देश के नागरिकों को समान अधिकार देता है. ये धर्म, जाति और राज्य की पहचान के आधार पर भेदभाव नहीं करता. लेकिन कश्मीर में भारत के ही दूसरे राज्यों से गए लोगों के साथ ये भेदभाव हो रहा है. सोचिए. जब किसी राज्य में एक कश्मीरी व्यक्ति को मारा जाता है या उसके खिलाफ कोई हिंसा होती है तो हमारे देश के कुछ New Channels की क्या हेडलाइन होती है. वो इसे कश्मीरी व्यक्ति पर हमला बताते हैं.
उदाहरण के लिए ऐसा लिखा जाता है कि लखनऊ में एक कश्मीरी व्यक्ति पर हमला हुआ. लेकिन जब कश्मीर में आतंकवादी किसी दूसरे राज्य के व्यक्ति को निशाना बनाते हैं तो उसके लिए Non Native जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है. आज हम आपसे पूछना चाहते हैं कि क्या कश्मीर में भारत के 100 करोड़ हिंदू अप्रवासी माने जाएंगे? क्या कश्मीर में उनका स्टेटस बदल जाता है?
अकेले इस महीने में कश्मीर में अब तक 11 लोगों की हत्या की जा चुकी है और इनमें से ज्यादातर लोग वो हैं, जो काम की तलाश में दूसरे राज्यों से कश्मीर आए थे. अब तक हुए सभी हमलों में आतंकवादियों ने पहले मारे गए व्यक्ति का आईडी कार्ड चेक किया और फिर उसकी हत्या कर दी. यानी हत्या का पैटर्न बिल्कुल एक जैसा है.
इन मारे गए लोगों में अरविंद कुमार शाह भी हैं, जिनकी श्रीनगर में 16 अक्टूबर को आतंकवादियों ने हत्या कर दी. वो बिहार के बांका जिले के रहने वाले थे और उनकी उम्र सिर्फ 30 साल थी. पिछले कुछ वर्षों से वो श्रीनगर में एक ठेला लगा रहे थे लेकिन आतंकवादियों ने उन्हें इसलिए मार दिया क्योंकि उन्होंने दूसरे राज्य से कश्मीर आकर यहां काम करने की हिम्मत की.
उनकी तरह राजा देव भी बिहार के मजदूर थे और कश्मीर में एक दुकान पर काफी समय से काम कर रहे थे. लेकिन आतंकवादियों ने उन्हें उसी दुकान में मार दिया. मारे गए इन लोगों में जोगिंदर देव भी हैं, जो बिहार के ही रहने वाले थे. उनकी हत्या भी उसी दुकान पर की गई, जहां उनके साथी राजा देव की हत्या हुई थी.
कश्मीर में आतंकवादी हिंदुओं की टारगेट किलिंग (Target Killings) कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद हमारे देश का एक खास वर्ग इस पर चुप है. मान लीजिए आज अगर कश्मीर की जगह गुजरात में इस तरह से बिहार के मजदूरों की हत्याएं की जातीं तो क्या होता? ऐसी स्थिति में मानव अधिकारों को बचाने वाली कई संस्थाएं वहां पहुंच जाती और इसे लोकतंत्र पर हमला बताती. लेकिन कश्मीर में अब तक ऐसा नहीं हुआ है.
सारे विपक्षी नेता और बड़ी बड़ी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इस पर चुप हैं. आज एक बड़ा सवाल ये भी है कि उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में जो हत्याएं हुईं उनसे कश्मीर में होने वाली हत्याएं अलग कैसे हो सकती हैं? लेकिन हमारे देश के तमाम नेता और मीडिया कश्मीर में होने वाली हत्याओं पर चुप बैठा है.
कश्मीर से पलायन करने वाले हिंदुओं का दर्द भी आज आपको सुनना चाहिए, जो ये कह रहे हैं कि उन्होंने तो कश्मीर को अपना लिया लेकिन हमारे देश के कुछ लोग कभी उन्हें कश्मीर में नहीं अपना पाए.
आपको याद होगा जब आतंकवादी संगठन तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया था, तब हमने आपको कहा था कि काबुल के बाद अब कश्मीर की बारी है. अफगानिस्तान में इस समय इस्लामिक कट्टरपंथ के नाम पर उन सभी लोगों की हत्याएं की जा रही हैं, जो कट्टर जेहाद और शरिया को नहीं मानते और इसी तरह के हालात कश्मीर में भी बनाए जा रहे हैं. भारत के जो लोग कश्मीर जाकर रहना चाहते हैं, वहां काम करना चाहते हैं, वहां अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, उन लोगों को निशाना बनाया जा रहा है ताकि वो यहां आने की हिम्मत ही ना करें और जो लोग आ भी गए हैं, वो डर कर वापस लौट जाएं.
कश्मीर में हिंदुओं की हत्या के पीछे तालिबान और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के Footprints साफ दिखते हैं और आज मैं अपने साथ इसकी एक टूल किट भी लाया हूं. इसमें लिखा है कि आतंकवादी किस योजना के तहत कश्मीर को काबुल बनाएंगे.
- ऐसे लोगों को निशाना बनाने की योजना है, जो दूसरे राज्यों से कश्मीर आकर काम कर रहे हैं और रह रहे हैं
- ऐसे कश्मीरी पंडितों की हत्या की जाएगी, जो 1990 के दशक में विस्थापित हो गए थे लेकिन फिर से कश्मीर लौटना चाहते हैं
- जम्मू कश्मीर पुलिस और उनके लिए काम करने वाले लोगों को टारगेट किया जाएगा
- सरकार सम्पत्तियों जैसे स्कूल, कॉलेज, पुल और सड़कों को नुकसान पहुंचाया जाएगा
- जिन खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन सरकार कराती है, उनका बहिष्कार होगा
- जो कश्मीर पंडित सरकार द्वारा शुरू की गई नई योजना के तहत घाटी लौट रहे हैं, उन्हें अलग-थलग रखा जाएगा
- ऐसे Media House जो भारत के हित में खबरें दिखाते हैं, उनका Boycott करने की योजना है
आतंकवादी संगठन अल कायदा ने आज से लगभग एक महीने पहले ये घोषणा की थी कि अब काबुल के बाद वो कश्मीर में इस्लामिक राज स्थापित करेंगे और हमें लगता है कि हिंदुओं की हत्या के साथ इसकी कोशिशें शुरू हो गई हैं.
कश्मीर में तालिबान और ISI के Foot Print ऐसे समय में मिले हैं, जब 20 अक्टूबर को रूस में अफगानिस्तान वार्ता होने वाली है. इस बैठक में रूस, चीन, भारत, ईरान और पाकिस्तान शामिल होने वाले हैं और रूस ने कहा है कि उसने तालिबान को भी इसमें शामिल होने के लिए निमंत्रण दिया है. सोचिए जो तालिबान कश्मीर को काबुल बनाना चाहता है, उसके साथ दुनिया के बड़े-बड़े देश बात करेंगे.
आज कश्मीर के हालात पर गृह मंत्री अमित शाह ने एक बैठक की, जिसमें आतंकवादियों के खिलाफ सेना के एनकाउंटर पर भी बात हुई. कश्मीर में अब तक हुए 9 एनकाउंटर्स में 13 आतंकवादी मारे जा चुके हैं. हमें ये भी पता चला है कि 23 अक्टूबर से गृह मंत्री अमित शाह खुद जम्मू कश्मीर के दौरे पर जा रहे हैं. वैसे तो ये दौरा केन्द्र सरकार के Outreach Program के तहत होगा, लेकिन हमें लगता है कि ऐसे समय में अमित शाह का कश्मीर जाना कई लोगों को हिम्मत देगा और इस दौरान आतंकवादियों के खिलाफ ठोस रणनीति भी बनाई जा सकती है.