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नई दिल्ली: एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब इंसान हजारों वर्षों से ढूंढ रहे हैं. ये सवाल है, 'मैं कौन हूं'. प्राचीन काल में कई लोगों ने इसका उत्तर तलाशने के लिए आध्यात्म की मदद ली. कई राजाओं ने अपना राज-पाट छोड़कर हिमालय जाकर तपस्या भी की और आपने भी कभी न कभी ये सवाल खुद से जरूर पूछा होगा. इसका जवाब खोजने की कोशिश की होगी. लेकिन आज के युग में आपकी 5 चीजें ही आपकी पहचान बताती हैं-
-सबसे पहला है, आपका नाम
-आपका परिवार
-आपका पेशा
-आपका घर
-और सबसे महत्वपूर्ण है आपका सोशल मीडिया प्रोफाइल.
लेकिन आपका असली एड्रेस अब आपके घर का पता और पिन कोड नहीं, बल्कि आपका ई-मेल एड्रेस, आपका फेसबुक अकाउंट और आपका ट्विटर अकाउंट है.
सोशल मीडिया (Social Media) पर आप अपने दोस्तों और परिवार को फॉलो करते हैं. किसी खबर को लेकर अपनी पसंद और नापसंद के बारे में बताते हैं और शेयर भी करते हैं. आजकल नौकरी, बिजनेस और यहां तक कि शादी के लिए भी दोनों पक्ष एक दूसरे के बारे में सोशल मीडिया से जानकारी इकट्ठा करते हैं. इसका मतलब है कि सोशल मीडिया पर ही आपकी असली पहचान मौजूद है.
-आपकी ये पहचान अब ज्यादा मजबूत और सटीक हो गई है क्योंकि, वर्ष 2020 में लोगों ने अपने स्मार्टफोन पर हर दिन साढ़े चार घंटे से ज्यादा समय बिताया, जबकि वर्ष 2019 में ये सिर्फ 3 घंटे था.
- इसका मतलब है पिछले एक वर्ष में आपने 68 दिन अपने स्मार्टफोन को दिए . अब ये फैसला आपको करना है कि आप ये बहुमूल्य समय अपने परिवार को देंगे या फिर इन टेक कंपनियों को अमीर बनाने में नष्ट करेंगे.
- भारत में ऐप डाउनलोड भी पिछले वर्ष के मुकाबले 30 प्रतिशत ज्यादा किए गए. ऐप डाउनलोड के मामले में पूरी दुनिया में भारत दूसरे स्थान पर है और चीन पहले नंबर पर है.
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...तो लोकतांत्रिक सरकार से भी ज्यादा शक्तिशाली बन जाएंगी टेक कंपनियां
WhatsApp और Facebook भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले एप्स में पहले और दूसरे नंबर पर हैं. इसका मतलब है कि भारत अब इन कंपनियों के लिए सबसे बड़ा डिजिटल बाजार बन गया है. देश में किसी टेक कंपनी को इतनी छूट नहीं होनी चाहिए कि वो आपको मुफ्त सर्विस देकर आपकी ही जानकारी इकट्ठा करे और उसे लाखों-करोड़ों रुपए के मुनाफे में बदल दे. इस तरह से कुछ समय के बाद वो एक बहुत बड़ी कंपनी बन जाएगी और ऐसी कंपनियां किसी लोकतांत्रिक सरकार से भी ज्यादा शक्तिशाली बन सकती हैं.
हमारी पौराणिक कथाओं में भस्मासुर नाम के राक्षस का जिक्र है. उसने भगवान शिव से वरदान मांगा, कि वो जिसके सिर पर हाथ रखे वो भस्म हो जाए. वरदान मिलने के बाद उसने भगवान को ही भस्म करने की कोशिश की. ये बड़ी टेक कंपनियां भी आधुनिक युग की भस्मासुर हैं. इनके पास आपके डेटा का वरदान है और अब इसका इस्तेमाल आपके खिलाफ ही किया जा रहा है.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इन टेक कंपनियों की मनमानी का सबसे बड़ा उदाहरण हैं. सोशल मीडिया की मदद से वर्ष 2017 में ट्रंप को सत्ता मिली और वहां की जिन कंपनियों ने ट्रंप की राजनीतिक ताकत बढ़ाई और अमेरिका के समाज में भेदभाव फैलाया. अब उन्हीं कंपनियों ने ट्रंप पर प्रतिबंध लगा दिया है. दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति के साथ ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि, अब ये टेक कंपनियां कई देशों से भी बड़ी आर्थिक ताकत बन चुकी हैं.
-इस समय दुनिया की 5 बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां हैं, Facebook, Amazon, Apple, Microsoft और Google.
-इन पांच कंपनियों का नेट वर्थ 460 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा है.
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-दुनिया में 194 देश हैं, उनमें से 143 देशों की कुल GDP भी इन 5 कंपनियों से कम है.
-जापान जैसे समृद्ध देश की GDP सिर्फ 371 लाख करोड़ रुपए है और भारत की GDP इन कंपनियों के नेट वर्थ के मुकाबले 50 प्रतिशत से भी कम है. ये सिर्फ 210 लाख करोड़ रुपए है.
अब समझिए कि कुछ टेक कंपनियां इतनी बड़ी आर्थिक शक्ति कैसे बनीं. आपके डेटा का विश्लेषण करके ये कंपनियां एक तरह से आपके मस्तिष्क को भी स्कैन कर लेती हैं. इस डेटा का इस्तेमाल डिजिटल विज्ञापन दिखाकर आपके विचारों और फैसलों को बदलने के लिए किया जाता है.
- विज्ञापनों को देखकर ही आप हर 10 में से 9 मौकों पर किसी वस्तु को खरीदने का अंतिम फैसला करते हैं.
- टीवी के विज्ञापनों को देखकर हर 10 में से 6 लोग किसी चीज को खरीदने का फैसला करते हैं. इस समय ऑनलाइन विज्ञापन देखकर ऐसा करने वाले हर 10 में से सिर्फ 4 लोग हैं. लेकिन इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है.
इसका मतलब है कि टेक कंपनियों ने अपने यूजर्स को भी एक प्रोडक्ट बना दिया है और मुनाफा कमाने के लिए उनकी प्राइवेसी तक की नीलामी कर दी है. ये काम पिछले कई वर्षों से किया जा रहा है. अब इसका स्तर और भी व्यापक हो गया है.
- वर्ष 2018 में संयुक्त राष्ट्र ने फेसबुक पर आरोप लगाया कि उसका इस्तेमाल रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने और सामूहिक नरसंहार के लिए किया गया. तब फेसबुक ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली.
-फेसबुक ने ही कैम्ब्रिज एनालीटिका को 5 करोड़ यूजर्स का डेटा (Data) दिया था. जिसका इस्तेमाल चुनाव के दौरान वोटरों को प्रभावित करने के लिए किया गया.
- वर्ष 2018 में फेसबुक पर अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में दखल देने का आरोप लगा.
- ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से अलग होने के लिए हुए जनमत संग्रह को प्रभावित करने के आरोप भी फेसबुक पर लगे.
- और भारत के विधानसभा चुनावों में भी दखल देने के आरोप भी फेसबुक पर लग चुके हैं.
भारत में डिजिटल उपनिवेशवाद को रोकने के तीन मॉडल हो सकते हैं. ये तीनों मॉडल एक दूसरे से बहुत अलग हैं, लेकिन इनका मकसद एक है, वो है लोगों की प्राइवेसी की सुरक्षा. इसका पहला और प्रभावशाली तरीका है यूरोपियन यूनियन जैसे कड़े कानूनों का निर्माण.
- अगर कोई कंपनी यूरोप के लोगों का डेटा कलेक्ट करती है तो उसे वहां के सख्त नियमों का पालन करना पड़ता है.
- इन नियमों का उल्लंघन करने वाली कंपनियों पर उनकी आमदनी के 4 प्रतिशत तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.
-यूरोपियन यूनियन ने वर्ष 2017 से अबतक गूगल पर लगभग 70 हजार करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है.
- फेसबुक पर भी 890 करोड़ रुपए की पेनाल्टी लगाई गई और इस जुर्माने से ही इन कंपनियों को डर लगता है.
- यूरोप में यूजर्स जब चाहें अपने पर्सनल डेटा को नष्ट करने की डिमांड कर सकते हैं. अगर वहां कोई डेटा लीक होता है तो उससे प्रभावित लोगों और अधिकारियों को भी इसकी जानकारी देना जरूरी है.
भारत में भी डेटा सुरक्षा कानून कम से कम यूरोपियन यूनियन जैसे या इससे भी ज्यादा कड़े होने चाहिए. टेक कंपनियों की दादागिरी रोकने का दूसरा मॉडल है चीन का.
- चीन ने विदेशी कंपनियों को अपनी टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री में दाखिल होने की अनुमति नहीं दी है. उनके कानून के मुताबिक चीन के लोगों का डेटा विदेशों में स्टोर नहीं किया जा सकता है. इसी नियम के तहत फेसबुक, गूगल और ट्विटर जैसी कंपनियों को चीन में ब्लॉक कर दिया गया.
- इसका फायदा वहां की स्थानीय कंपनियों को मिला. ये कंपनियां चीन की सभ्यता और संस्कृति को अच्छी तरह से समझती हैं. अब वो ग्लोबल लेवल पर पहुंच गई हैं और वहां के कानूनों की वजह से ही चीन के नागरिकों का Data उनके देश में ही सुरक्षित है.
डिजिटल उपनिवेशवाद से बचने का तीसरा मॉडल अमेरिका ने लागू करने की कोशिश की.
-ट्रंप ने टिकटॉक पर दबाव बनाया, ताकि वो अपनी कंपनी को अमेरिका की ही किसी बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनी को बेच दे.
-ऐसा इसलिए किया गया ताकि टिकटॉक के पास मौजूद अमेरिका के लोगों का डेटा सुरक्षित रहे और चीन उस डेटा का इस्तेमाल अपने लिए न कर पाए.
अगर भारत ने इन तरीकों में से किसी एक को नहीं अपनाया तो हमारे करोड़ों लोगों के डेटा उन टेक कंपनियों के पास चले जाएंगे, जिनका एकमात्र लक्ष्य डेटा बेचकर पैसे कमाना है. इन टेक कंपनियों को भारत में पेमेंट सर्विस शुरू करने की अनुमति देना भी एक बड़ी गलती है. इससे इन कंपनियों को भारतीय अर्थव्यवस्था में मोनोपोली स्थापित करने का मौका मिल गया और सोशल मीडिया से लेकर वो हमारी अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन गई.
आप ऐसी कंपनियों की तुलना ईस्ट इंडिया कंपनी से कर सकते हैं. ये कंपनी समंदर के रास्ते भारत आई और फिर व्यापार के बहाने इसने पूरे देश पर कब्ज़ा कर लिया. ईस्ट इंडिया कंपनी से मिले सबक को भारत से बेहतर कोई और समझ नहीं सकता है. आधुनिक युग की टेक कंपनियां भी इंटरनेट के माध्यम से दुनिया के सभी देशों तक अपना डिजिटल उपनिवेशवाद पहुंचा रही है और धीरे-धीरे आपके मोबाइल फोन से होते हुए आपके विचारों पर कब्जा कर रही है. अब ये कंपनियां अमीर हो रही हैं, जबकि हम अपनी पहचान खो रहे हैं.
भविष्य में ऐसा भी हो सकता है कि फेसबुक और ट्विटर जैसी कोई टेक कंपनी किसी कानून का विरोध शुरू कर दे और भारत सरकार को या फिर प्रधानमंत्री को भी अपने प्लेटफॉर्म पर ब्लॉक कर दें. लेकिन हमें ऐसे हालात का इंतजार नहीं करना चाहिए और जल्द से जल्द सख्त कानून बनाना चाहिए.
आज के युग में सोशल मीडिया ही जनता के विचारों का आईना है, वाट्सऐप की नई पॉलिसी का विरोध करने के लिए भी लोगों ने सोशल मीडिया पर Creative Memes का इस्तेमाल किया है और ये मीम सोशल मीडिया पर ट्रेंड भी हो रहे हैं.