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नई दिल्ली: भारत के टनल वाले प्लान ने पाकिस्तान और चीन की चिंता बढ़ा दी है. केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर और लद्दाख में भारत सरकार कुल 31 टनल पर काम कर रही है. ये संख्या कितनी ज्यादा है, इसका अन्दाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि पाकिस्तान पिछले दो दशकों में भी इतनी टनल अपने देश में नहीं बना पाया है. जम्मू कश्मीर और लद्दाख की सीमा चीन और पाकिस्तान से लगती है और इस लिहाज से ये टनल और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं.
कश्मीर और लद्दाख की सीमा पर जोजिला दर्रे पर जो टनल बन रही है वो भारतीय सेना के काफी काम आने वाली है. लगभग साढ़े 14 किलोमीटर लम्बी इस टनल के बन जाने से भारतीय सेना साल के 365 दिन सड़क के रास्ते श्रीनगर से लद्दाख पहुंच सकेगी. यानी मुश्किल घड़ी में हथियार भेजने हों या फिर सैनिकों को वहां पहुंचाना हो, ये टनल एक सेतु का काम करेगी. इसके अलावा ये टनल कश्मीर और लद्दाख के बीच कारोबार और पर्यटन की गाड़ी को भी नहीं रुकने देगी. हालांकि ये अकेली टनल नहीं है, जिस पर जम्मू कश्मीर और लद्दाख में काम चल रहा है, इस समय इन दोनों केन्द्र शासित प्रदेशों में कुल मिला कर 31 टनल प्रस्तावित हैं. जिनमें से 32 किलोमीटर लम्बी 20 टनल जम्मू कश्मीर में बनाई जा रही हैं और 20 किलोमीटर लम्बी 11 टमल लद्दाख में बनाई जा रही हैं. अगर खर्च की बात करें तो इन सभी पर 1 लाख 40 हजार करोड़ रुपये खर्च होने वाले हैं.
चीन और पाकिस्तान की टेंशन बढ़ाने वाली ये टनल यह बताने के लिए भी काफी हैं कि 2014 के बाद जम्मू कश्मीर और लद्दाख में क्या बदला है और कितनी तेजी से विकास हो रहा है. वर्ष 1997 में पहली बार भारतीय सेना ने जोजिला दर्रे पर टनल बनाने के लिए सर्वे किया था, जो श्रीनगर और लेह को जोड़ता है. इसके दो साल बाद जब वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध हुआ, तब इस टनल का महत्व और बढ़ गया. उसी समय श्रीनगर और लेह के बीच 12 महीने कनेक्टिविटी के लिए कई प्रोजेक्ट प्रस्ताव के तौर पर सामने आए. इन्हीं में से एक प्रोजेक्ट साढ़े 14 किलोमीटर लम्बी जोजिला टनल के निर्माण का था. लेकिन इसकी नींव रखने में दो दशक लग गए. मई 2018 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस टनल की आधारशिला रखी और अब इस टनल पर फुल स्पीड से काम हो रहा है. इस टनल को बनाने की समय सीमा वर्ष 2026 की है, लेकिन सरकार को भरोसा है कि ये काम वर्ष 2024 तक पूरा हो जाएगा.
जोजिला दर्रा कश्मीर और लद्दाख की सीमा पर स्थित है, जिसे पार करने के लिए श्रीनगर लेह हाइवे का इस्तेमाल करना होता है यानी ये हाइवे श्रीनगर और लेह के बीच सबसे बड़ी लाइफलाइन है लेकिन ये All Weather Connectivity का विकल्प नहीं देता. सरल शब्दों में कहें तो बर्फबारी के मौसम में ये रूट ठप हो जाता है और श्रीनगर से लेह का सम्पर्क भी टूट जाता है लेकिन जोजिला टनल शुरू होने के बाद ऐसा नहीं होगा. ये टनल श्रीनगर लेह हाइवे से 400 मीटर नीचे बनाई जा रही है. यानी हाइवे और टनल के बीच पांच कुतुब मीनार की लम्बाई जितना अंतर होगा. सबसे अहम साढ़े 11 हजार फीट की ऊंचाई पर बन रही ये एशिया की सबसे लम्बी Bi-Direction टनल होगी, मतलब ये कि इसमें आने और जाने दोनों का रास्ता होगा. इस टनल के बन जाने से अभी जोजिला दर्रे को पार करने में जो साढ़े तीन घंटे का समय लगता है, वो समय घटकर 15 मिनट रह जाएगा.
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इस टनल के दो फायदे होंगे. पहला- इससे सामरिक रक्षा में मदद मिलेगी. सेना के लिए श्रीनगर से लद्दाख की पहुंच आसान हो जाएगी और ये पहुंच साल के सभी 365 दिन बनी रहेगी. ये इसलिए भी महत्वपूर्ण होगा क्योंकि ये दोनों केन्द्र शासित प्रदेश पाकिस्तान और चीन की सीमा से लगते हैं. दूसरा- 12 महीने कनेक्टिविटी से दोनों प्रदेशों के बीच कारोबार भी नहीं रुकेगा और पर्यटन को भी नई रफ्तार मिलेगी. श्रीनगर लेह हाइवे के ही रूट पर एक और टनल का काम चल रहा है, जिसे जेड मोड़ टनल नाम दिया गया है. ये टनल साढ़े 6 किलोमीटर लम्बी होगी, जो साल के 365 दिन श्रीनगर से सोनमर्ग को जोड़ने का काम करेगी. जेड मोड़ टनल का काम जल्द ही अंतिम चरण में पहुंच जाएगा. इसके साथ जो रेस्क्यू टनल बनाई गई है, वो भी जल्द तैयार हो जाएगी. जोजिला टनल का अनुमानित खर्च 4 हजार 600 करोड़ रुपये है. जबकि जेड मोड़ टनल का अनुमानित खर्च 2 हजार 300 करोड़ रुपये है.
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