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नई दिल्ली: कोरोना महामारी की दूसरी लहर का सामने कर रहे देश में ऑक्सीजन की किल्लत और उससे हुई मौतों की कई खबरें सामने आई चुकी हैं. हालांकि, संक्रमण के मामलों में थोड़ी कमी देखने को मिली है, लेकिन खतरा अभी भी बरकरार है. सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र और राज्य सरकारों से ऑक्सीजन की कमी को जल्द से जल्द दूर करने को कहा है. लोग अपने स्तर पर भी ऑक्सीजन का इंतजाम करने में लगे हैं. ऐसे में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर (Oxygen Concentrator) की डिमांड एकदम से बढ़ गई है.
हमारी सहयोगी वेबसाइट ‘इंडिया डॉटकॉम’ में छपी खबर के अनुसार, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर छोटी डिवाइस होती हैं, जो ऑक्सीजन थेरेपी की आवश्यकता वाले लोगों को सप्लीमेंट्री ऑक्सजीन प्रदान करती हैं. आमतौर पर फेफड़ों और अन्य श्वसन रोगों से पीड़ित मरीजों के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता है. नई दिल्ली स्थित बीपीएल मेडिकल टेक्नोलॉजी के एमडी और सीईओ सुनील खुराना ने न्यूज एजेंसी IANS को बताया कि जब COVID-19 के रोगियों का ऑक्सीजन सैचुरेशन 94 से नीचे चला जाता है, तो उन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है. ऐसे समय ऑक्सीजन कंसंट्रेटर बहुत उपयोगी हो जाता है.
फरीदाबाद स्थित फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल के वरिष्ठ पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ रवि शेखर झा के मुताबिक, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर एयर कंडीशनिंग मशीन की तरह काम करता है. यह हवा से ऑक्सीजन लेता है, इसे संशोधित करता है और इसे एक अलग रूप में जारी करता है. जब किसी मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है, तो उसे कंसंट्रेटर की मदद से ऑक्सीजन पहुंचाई जाती है. मेडिकल फील्ड में बड़े पैमाने पर इनका इस्तेमाल किया जाता है.
ऑक्सीजन कंसंट्रेटर इस्तेमाल में बेहद आसान होते हैं और ऑक्सीजन सिलेंडर की तुलना में इन्हें बेहतर माना जाता है. क्योंकि सिलेंडर के लीक होने का खतरा बना रहता है. कीमत की बात करें तो ये सिलेंडर के मुकाबले अपेक्षाकृत महंगे होते हैं. कंसंट्रेटर 40,000 से 90,000 रुपए की प्राइस रेंज में आते हैं. जबकि सिलेंडर की कीमत 8,000-20,000 रुपये तक होती है. हालांकि, इन्हें ज्यादा मेंटेनेंस की जरूरत नहीं होती.
कंसंट्रेटर का इस्तेमाल मरीजों की सुविधा के हिसाब से डॉक्टरों या स्वास्थ्य पेशेवरों की देखरेख में किया जा सकता है. लेकिन स्टैंड-अलोन सिलेंडर के इस्तेमाल में बेहद सावधान रहना होता है. क्योंकि इनके लीक होने, आग लगने की आशंका बनी रहती है. सिलेंडर के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इन्हें बार-बार रिफिल करना होता है, जबकि ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के साथ ऐसा नहीं है. यह हवा से ही ऑक्सीजन लेता है, जो बिजली उपलब्ध होने तक ऑक्सीजन की असीमित आपूर्ति करता है.
डॉक्टर सुनील खुराना ने बताया कि ऑक्सीजन कंसंट्रेटर 95 प्रतिशत शुद्ध ऑक्सीजन प्रोड्यूस करते हैं. इसमें इन-बिल्ट ऑक्सीजन सेंसर भी होते हैं, जो शुद्धता का स्तर कम होने पर सूचित करते हैं. जानकारों के मुताबिक, भारत में बड़े पैमाने पर कंसंट्रेटर तैयार नहीं होते हैं, ऐसे में मांग में एकदम आई तेजी से इसकी क्वालिटी प्रभावित हो सकती है. इस बारे में डॉक्टर खुराना ने कहा, ‘ज्यादातर डिवाइस चीन निर्मित होती हैं और उनमें इस्तेमाल होने वाला कुछ कच्चा माल अमेरिका में बनाया जाता है. भारतीय बाजार ने कभी भी इतनी डिमांड के लिए खुद को तैयार नहीं किया था.
आपको पता होना चाहिए कि बाजार में दो प्रकार के ऑक्सीजन कंसंट्रेटर मौजूद हैं, कंटीन्यूअस फ्लो और पल्स डोज. कंटीन्यूअस फ्लो प्रति मिनट लगातार तब तक एक ही फ्लो पर ऑक्सीजन प्रदान करता रहता है, जब तक उसे बंद नहीं किया जाता. जबकि पल्स डोज मरीज के ब्रीथिंग पैटर्न को डिटेक्ट करता है और उसी के अनुसार ऑक्सीजन रिलीज करता है. इसलिए यह जरूरी है कि ऑक्सीजन कंसंट्रेटर खरीदने से पहले आप इस बारे में अपने डॉक्टर से बात कर लें.
ऑक्सजीन कंसंट्रेटर आसपास की हवा से ऑक्सीजन में घुली अन्य गैसों को बाहर निकालकर शुद्ध ऑक्सीजन प्रदान करता है. पर्यावरण की हवा में 78 फीसदी नाइट्रोजन और 21 फीसदी ऑक्सीजन गैस होती है. दूसरी गैस बाकी 1 फीसदी हैं. ऑक्सीजन कंसंट्रेटर इस हवा को अंदर लेता है, उसे फिल्टर करता है, नाइट्रोजन को वापस हवा में छोड़ देता है और बाकी बची ऑक्सीजन मरीजों को उपलब्ध कराता है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बताया गया है कि यदि मरीज को 1 लीटर ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के माध्यम से प्रदान की जाती है, तो उसके फेफड़ों में ऑक्सीजन 24 प्रतिशत तक बढ़ हाती है. इसी तरह, 2 लीटर पर 28% और 10 लीटर में 60 प्रतिशत तक ऑक्सीजन बढ़ जाती है.