Zee News Time Machine: टाइम मशीन में आज आपको 1980 की 10 अनसुनी और अनकही कहानियों के बारे में बताएंगे कि आखिर क्यों इंदिरा गांधी ने जेएनयू में 46 दिनों के लिए ताला लगा दिया था और क्यों भारत सरकार ने सूर्यग्रहण से लोगों को बचाने के लिए टीवी पर फिल्म दिखाई थी.
Trending Photos
Time Machine on Zee News: टाइम मशीन में आज बात होगी 33 साल के हो चुके आजाद भारत की. आपको बताएंगे कि कैसे, इंदिरा गांधी ने अपने पिता पंडित जवाहर लाल नेहरू के सपनों की यूनिवर्सिटी, JNU पर लगवा दिया था 46 दिनों के लिए ताला. साथ ही आपको ये भी बताएंगे कि कैसे विमान हादसे में हुई थी संजय गांधी की मौत. ये भी जानेंगे कि कैसे हुआ था भारतीय जनता पार्टी यानि BJP का उदय? आपको दिखाएंगे कि कैसे दीपिका पादुकोण के पिता प्रकाश पादुकोण ने मचाया था इग्लैंड में तहलका. हिमालय की कार रैली के बारे में भी करेंगे बात और बताएंगे कि आखिर सूर्यग्रहण के दौरान लोगों को घरों के अंदर बनाए रखने के लिए सरकार ने कौन सी फिल्म घर-घर दिखाने की योजना बनाई थी? तो आइए टाइम मशीन में शुरू करते हैं आज का सफर और बताते हैं आपको 1980 की 10 अनसुनी और अनकही कहानियां.
इंदिरा ने पहनी प्याज की माला
प्याज एक ऐसी चीज है जिसने ना सिर्फ किचन में, बल्कि राजनीति की दुनिया में भी कई लोगों को रूलाया है. प्याज की वजह से कई बार सरकार बनी और गिरी हैं. साल 1980 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था. 1977 से 1980 में जनता पार्टी की सरकार में प्याज की कीमतें काफी बढ़ गई थीं. ऐसे में इंदिरा गांधी ने प्याज के बढ़ते दामों को 1980 के आम चुनावों का मुख्य मुद्दा बनाया और नारा दिया कि जिस सरकार का कीमत पर जोर नहीं, उसे देश चलाने का अधिकार नहीं. प्याज की बढ़ती कीमतों को महंगाई से जोड़ते हुए इंदिरा गांधी ने फूलों की जगह प्याज की माला पहनकर उस वक्त रैली करना शुरू किया. कांग्रेस के प्रचार अभियानों में प्याज की कीमतों का मुद्दा इतना हावी रहा कि अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने चुनाव के बाद लिखा कि भारत में कोई भी चीज बिना प्याज के नहीं पक सकती. इसी मुद्दे की बदौलत कांग्रेस ने सत्ता में वापसी भी की.
सूर्यग्रहण पर सरकार का 'फिल्मी प्लान'!
साल 1980 में देश में ऐसा सूर्यग्रहण पड़ा, जिसके लिए सरकार को एक बड़ा प्लान तैयार करना पड़ा. 16 फरवरी, 1980 को सूर्य ग्रहण था. सूर्यग्रहण को देखने के लिए एक तरफ जहां देशवासी उत्साहित थे तो वहीं सरकार नहीं चाहती थी कि जनता बिना किसी सुरक्षा उपाय के सूर्य ग्रहण को देखे. इससे उनकी आंखों को नुकसान पहुंचने की आशंका थी. ऐसे में सरकार ने जनता को घर में ही रोके रखने का उपाय किया. सरकार ने एक प्लान तैयार किया. भारत सरकार ने दूरदर्शन पर एक सुपरहिट फिल्म दिखाने का फैसला किया ताकि फिल्म देखने के लिए लोग घरों के अंदर ही रहें. सूर्यग्रहण के दिन अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र की बेस्ट कॉमेडी फिल्म ‘चुपके-चुपके’ को पूरे दिन दूरदर्शन पर दिखाया गया. उस दौर में दूरदर्शन पर फिल्में सिर्फ रविवार को दिखाई जाती थीं, लेकिन सूर्यग्रहण शनिवार को था. इसके बावजूद फिल्म दूरदर्शन पर दिखाई गई और लोग सूर्यग्रहण भूलकर फिल्म देखने के लिए टेलिविजन के सामने डटे रहे.
46 दिनों तक बंद रहा JNU
दिल्ली का जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय यानि JNU देश के सबसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में से एक है. पंडित जवाहर लाल नेहरू के सपनों की यूनिवर्सिटी यानि जेएनयू की स्थापना 1969 में की गई थी. जेएनयू की स्थापना होने के बाद से इसका कैंपस धीरे-धीरे वामपंथी विचारों का केंद्र बनता चला गया. ये बात इंदिरा गांधी को खटकती जा रही थी. बात 1980 की है. एक दिन तत्कालीन छात्रसंघ के अध्यक्ष राजन जी. जेम्स को कार्यकारी कुलपति केजे महाले को अपशब्द कहने पर निलंबित कर दिया गया, जिसके बाद JNU कैंपस में पहले प्रदर्शन हुआ. कुलपति के कमरे में जेम्स और उनके छात्र मित्रों ने तोड़ फोड़ की, जिसके बाद हिंसा भड़क गई. उस वक्त हालात इतने बिगड़ गए कि इंदिरा गांधी सरकार को 16 नंवबर 1980 से 3 जनवरी,1981 के बीच JNU को 46 दिनों तक लगातार बंद करना पड़ा और तो और छात्रसंघ के अध्यक्ष राजन जी. जेम्स सहित अन्य निष्कासित और निलंबित छात्रों को हॉस्टल से बाहर निकालने के लिए पुलिसबल की मदद तक लेना पड़ी थी.
भारतीय जनता पार्टी का उदय
भारतीय जनता पार्टी, मतलब देश की वो राजनैतिक पार्टी जिसका दमखम पूरी दुनिया देख चुकी है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर बीजेपी की शुरूआत कैसे हुई थी. 6 अप्रैल 1980 ये वो तारीख थी, जब जनता पार्टी छोड़कर अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विजयाराजे सिधिंया, सिकंदर बख्त जैसे बड़े नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी बनाई थी. 1980 से 1986 यानि 6 साल अटल बिहारी वाजपेयी ने भाजपा के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी संभाली थी. इसके बाद 1986 से 1990 यानि अगले चार साल लाल कृष्ण आडवाणी पार्टी के मुखिया बने, फिर मुरली मनोहर जोशी के साथ अलग-अलग बड़े नेता बीजेपी की बागडोर संभालते हुए आगे बढ़े. पार्टी के गठन के बाद इसका पहला अधिवेशन दिसंबर 1980 को में मुंबई में हुआ था.
संजय गांधी का शौक बना हादसा!
संजय गांधी एक ऐसे नेता थे, जिन्हें सियासत की तरह फ्लाइंग में भी खतरनाक हद तक जोखिम लेने का शौक था. कई बार तो संजय गांधी जूतों की जगह चप्पल में ही प्लेन उड़ाने के लिए निकल जाते थे और हवा में कलाबाजियां दिखाते थे, लेकिन एक दिन यही कलाबाजी उनके लिए काल बन गई. 1980 में भरी एक उड़ान उनकी आखिरी उड़ान बन गई. 23 जून 1980 इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने सफदरजंग एयरपोर्ट के रनवे से संजय गांधी ने ठीक 7:58 पर उड़ान भरी. संजय गांधी आसमान में सुबह की सैर करना चाहते थे. कैप्टन सक्सेना पिट्स के अगले हिस्से में बैठे और संजय ने पिछले हिस्से में बैठकर कंट्रोल संभाला. संजय ने सुरक्षा नियमों को दरकिनार करते हुए रिहायशी इलाके के ऊपर ही तीन चक्कर लगाए, जिसके चंट मिनटों बाद उनका नियंत्रण पिट्स पर से खत्म हो गया और फिर उनका विमान जमीन की तरफ आया और क्रैश हो गया. जिसके कुछ देर बाद खबर आई कि विमान में सवार संजय गांधी और कैप्टन सक्सेना दोनों की मौत हो चुकी है.
दीपिका के पापा का दबदबा!
दीपिका पादुकोण आज देश की सबसे बड़ी एक्ट्रेसेस की लिस्ट में शुमार हैं. या य़ूं कहें कि दीपिका आज बॉलीवुड की नंबर वन स्टार हैं, लेकिन दीपिका से पहले उनके पापा प्रकाश पादुकोण ने देश का सीना गर्व से चौड़ा किया है. दीपिका के पापा प्रकाश पादुकोण एक मशहूर बैडमिंटन प्लेयर रहे हैं. वो साल था 1980 का. जब एक भारतीय प्लेयर ने इंग्लैंड में तहलका मचा दिया था. साल 1980 में 24 साल के प्रकाश पादुकोण मेंस सिंगल्स फाइनल में इंडोनेशिया के लियेम स्वी किंग को 15-3, 15-10 से करारी शिकस्त देकर जीत हासिल की थी. मजे की बात ये है कि उन्होंने दूसरी सीड इंडोनेशियाई बैडमिंटन स्टार का लगातार तीसरी बार टूर्नामेंट जीतकर हैट्रिक बनाने का सपना तोड़ा था. बता दें कि, प्रकाश पादुकोण विश्व के सबसे पुराने बैडमिंटन टूर्नामेंट का खिताब जीतने वाले पहले भारतीय बने, जिनकी वजह से ही भारत में बैडमिंटन को और ज्यादा पहचान मिली.
वर्ल्ड जीनियस बनीं शकुंतला देवी
मस्तिष्क यानि दिमाग, जिसके बलबूते पर इंसान क्या से क्या नहीं कर सकता है. साल 1978 में शकुंतला देवी ने कुछ ऐसा ही किया कि पूरी दुनिया में उनके नाम का डंका बजा. ह्यूमन कंप्यूटर और मेथमैटिक्स की क्वीन कही जाने वाली शकुंतला देवी ने 18 जून, 1980 को इंपीरियल कॉलेज लंदन में दो 13-डिजिट की रेंडम संख्याओं को सफलतापूर्वक गुणा करके इसका जवाब दिया. खास बात ये है कि जिस रेंडम संख्या से शकुंतला देवी ने मल्टीप्लाई यानि गुणा किया वो संख्या इंपीरियल कॉलेज की कंप्यूटर डिपार्टमेंट ने ऐसे ही चुनी थी. शकुंतला देवी की ये उपल्बधि गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल हुई थी.
हिमालय से निकली कार रैली
साल 1980 में जब देश तकनीकी की राह पर निकलकर नए आयाम छू रहा था, तभी उसी बीच देश में एक कार रैली निकाली गई और ये कार रैली हिमालय के उन पहाड़ों में निकाली गई, जहां कभी भी कुछ भी हो सकता है. एक तो ऊबड़ खाबड़ रास्ता और ऊपर से उन रास्तों पर कार की रैली. पड़ गए ना सोच में, लेकिन ये सच है. साल 1980 में पहली हिमालय कार रैली को बंबई (मुंबई) के ब्रेबोर्न स्टेडियम से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया था. इस कार रैली में कई विंटेज कारों ने भी हिस्सा लिया था. इस रैली को कैन्या के शेखर मेहता ने जीता था.
शान की सवारी मारुति
भारत में 70 और 80 के दशक में एंबेसडर कारों का ही क्रेज था, लेकिन इसी बीच देश में सफेद रंग की एक ऐसी कार आई जिसने काफी कुछ बदल दिया और हर किसी की पहली पसंद बन गई. या यूं कहे कि आम जनता की पसंद बनी. 1980 में पहली बार जनता की कार कही जाने वाली मारुति 800 देश की सड़कों पर दौड़ने आई. दरअसल 1980 में संजय गांधी ने भारत के आम लोगों के लिए एक कार बनाने का सपना देखा, लेकिन प्लेन क्रैश में संजय गांधी की मौत हो गई, फिर सस्ती कार लाने के लिए भारत सरकार की मारुति कंपनी ने जापान की सुजुकी मोटर कंपनी के साथ एक ज्वाइंट वेंचर शुरू किया और फिर दोनों कंपनियों ने मिलकर मारुति सुजुकी को भारत में लॉन्च किया. इसके बाद 1983 में मारुति सुजुकी की भारत में बुकिंग शुरू हो गई. महज 2 महीने के भीरत ही करीब 1.35 लाख कारों की बुकिंग हुई. लॉन्चिंग के वक्त मारुति सुजुकी की कीमत 52,500 रुपये थी. ये देश की पहली ऑटोमैटिक गेयर वाली कार थी. 14 दिसंबर 1983 यानि संजय गांधी के जन्मदिन के मौके पर इस कार की डिलीवरी शुरू हुई. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खुद अपने हाथों से उन पहले 10 लोगों को कार की चाबी सौंपी, जिन्होंने इसकी बुकिंग कराई थी. इंडियन एयरलाइंस के कर्मचारी हरपाल सिंह मारुति 800 के पहले मालिक थे.
डाक टिकट पर दुल्हन
आजादी मिलने के साल यानी 1947 में ही भारत का पहला डाक टिकट भी जारी किया गया. उसके बाद से हर साल खास तरीके के डाक टिकट जारी किए जाते रहे, लेकिन साल 1980 में ऐसे डाक टिकट जारी किए गए, जिसने ना सिर्फ महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया, बल्कि महिलाओ की भागीदारी, उनकी योग्यता और भारतीय संस्कृति को भी बढ़ाया. 1980 में भारत सरकार ने अलग-अलग राज्यों की दुल्हनों के डाक टिकट जारी किए. पारंपरिक भारतीय पोशाक में राजस्थान, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और जम्मू-कश्मीर से ताल्लुक रखने वाली दुल्हनों की तस्वीरें डाक टिकट पर नजर आईं.
ये खबर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर
WATCH VIDEO