एक फंडरेजिंग करने वाली वेबसाइट (https://www.patreon.com/pieterfriedrich) में पीटर फ्रेडरिक (Pieter Friedrich) 'भारत और विदेश में आरएसएस की गतिविधियों के बारे में जागरूकता' के लिए चंदा मांग रहा है.
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नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस (Delhi Police) की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद पीटर फ्रेडरिक (Pieter Friedrich) घबरा गया है. अब वह अपने बचावे के लिए अनाप शानप तर्क दे रहा है. पीटर ने आरोप लगाया है कि उसे निशाना बनाए जाने के पीछे मुख्य कारण उसका आरएसएस-विरोधी रुख है. 16 फरवरी को किए एक ट्वीट में उसने कहा – 'मुझे निशाना बनाया गया है क्योंकि मैं मोदी शासन के बढ़ते फासीवाद और विशेष रूप से आरएसएस (RSS) के खिलाफ उत्तरी अमेरिका की सबसे प्रबल आवाजों में से एक के रूप में उभरा हूं.'
हकीकत क्या है?
यह तथ्य ध्यान दिए जाने योग्य है कि आरएसएस (RSS) और हिंदुत्व के विषय पीटर फ्रेडरिक (Pieter Friedrich) के लिए काफी नए हैं और इस ‘विशेषज्ञ’ ने इन पर हाल-फिलहाल में ही काम करना शुरू किया है क्योंकि 2007 से ही उसके अभियानों का मुख्य लक्ष्य महात्मा गांधी थे. गांधीजी की मूर्तियों को तोड़ना, उनके लिए अपशब्द कहना, और सार्वजनिक रूप से उन्हें गाली देना ही उसकी कार्य प्रणाली के प्रमुख पहलू थे. यहां तक कि पीटर-भिंडर की जोड़ी कई बार राष्ट्रपिता को ‘नस्लवादी’, ‘पीडोफाइल’ और ‘बाल बलात्कारी’ तक बोल गई.
खालिस्तान, कश्मीर, और गांधी
आरएसएस/बीजेपी का ‘मसाला’ हाल ही में पीटर द्वारा निर्मित दुष्प्रचार सामग्री में जोड़ा गया है. इससे पहले उसके लेखों और गतिविधियों में भारत में हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों का शायद ही कोई जिक्र हुआ होगा. पड़ताल करने पर सामने आया कि 2007-2014 के बीच उसके द्वारा लिखे गए लेखों और निर्मित कार्यक्रमों को तीन व्यापक श्रेणियों में बांटा जा सकता है: खालिस्तान, कश्मीर, और गांधी.
सरकार नहीं भारत पर हमला
पीटर द्वारा लिखी गई पुस्तकों के विषय और उनके प्रकाशन का समय इस तथ्य को दोहराते हैं. पीटर फ्रेडरिक द्वारा लिखित और प्रकाशित पुस्तकों/ पुस्तिकाओं की सूची इस प्रकार है: (i) द फेसेज ऑफ टेरर इन इंडिया (2011); (ii) डेमन्स विदिन: द सिस्टेमेटिक प्रैक्टिस ऑफ टॉर्चर बाई इंडियन पुलिस (2011); (iii) गांधी: रेसिस्ट ऑर रेवोलुशनरी? (2017); (iv) कैप्टिवेटिंग द सिंपल-हर्टेड: ए स्ट्रगल फॉर ह्यूमन डिग्निटी इन द इंडियन सबकॉन्टिनेंट (2017); (v) भारत बंद एंड दलित स्ट्रगल अगेंस्ट डीह्यूमनाइजेशन (2018); (vi) काइट फाइट्स: द प्रॉक्सी वॉर्स बिहाइंड द काबुल गुरुद्वारा मैजेकर (2020); (vii) सैफरन फासिस्टस: इंडियाज हिन्दू नेशनलिस्ट रुलर्स (2020). इन विषयों पर नजर दौड़ाने और प्रकाशन का समय देखने से पता चलता है कि वह भारत की सत्ता और शासन पर नहीं, बल्कि सीधे भारत पर ही लगातार हमला कर रहा था और सुविधानुसार अचानक हिंदुत्व और आरएसएस पर हमला करने लगा.
बदलता रहता है ‘विशेषज्ञता’ का क्षेत्र
साथ ही, यह भी ध्यान देने योग्य है कि जिस प्रकार सुविधानुसार पीटर समय-समय पर अपनी ‘विशेषज्ञता’ का क्षेत्र बदलता रहा, ठीक उसी प्रकार वह पहचान बदलने और छद्म पहचानों को अपनाने में माहिर खिलाड़ी रहा है. वह लगातार खुद को चालाक और एक कुशल ठग साबित करता रहा है. द डिसइनफो लैब की रिपोर्ट से पता चला है कि उसने पीटर सिंह, पैट्रिक नेवर्स, पीटर फ्लैनिगन, पीटर फ्रेडरिक, और कई नाम रखे और पहचान अपनाई. उसने निश्चित रूप से हर नए अभियान के लिए एक नई पहचान अपनाने की कोशिश की है. उसने पीटर फ्लेनिगन के नाम से महात्मा गांधी को अपशब्द कहे और पीटर सिंह के रूप में खालिस्तानी झंडा बुलंद किया. इसी तरह, उसने पैट्रिक जे नेवर्स के रूप में पुस्तक लिखकर भारत विरोधी दुष्प्रचार जोर-शोर से किया.
किताबों के जरिए जहर
भिंडर के साथ अपने संबंधों पर एक मीडिया आउटलेट से बात करते हुए पीटर ने कहा कि 'भजन सिंह के साथ मैं दो पुस्तकों का सह-लेखक रहा हूं, जिनमें एक इस मुद्दे पर भी आधारित है कि सिख धर्म की उत्पत्ति जाति-विरोधी संघर्ष के साथ कैसे जुड़ी हुई है.' जांच में पता चला है कि उसने दरअसल भिंडर के साथ चार किताबें लिखी हैं - सभी भारत और उसकी छवि पर हमला करते हैं और उनमें से कोई भी भारत में जाति के मुद्दे पर आधारित नहीं है.
पाकिस्तान पाल रहा?
द डिसइनफो लैब की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पुलवामा के तुरंत बाद ही पीटर पाकिस्तान को बचाने के लिए कूद पड़ा और यह दावा करने लगा कि षड्यंत्र के लिए जिम्मेदार भारत सरकार थी. हालांकि उसका ये दावा उल्टा पड़ गया क्योंकि पाकिस्तान में बैठे हमले के मास्टरमाइंड ने पुलवामा हमले की जिम्मेदारी ले ली. इसी तरह, बाद में काबुल गुरुद्वारा हमले में पाकिस्तान को बचाने के लिए भिंडर-पीटर गठजोड़ तेजी से सामने आया और 32 पन्ने की एक बुकलेट छापी जिसमें यह साबित करने की कोशिश की गई थी कि हमले में पाकिस्तान का कोई हाथ नहीं था.
जब सामने आया झूठ
पीटर ने Organization for Indian Minorities (OFMI) में अपनी वास्तविक भूमिका कभी साफ नहीं की और इस संगठन में अपनी भूमिका के बारे में भ्रम फैलाते हुए उसने ट्वीट किया – “मेरी जोरदार सिफारिश है कि आप @OFMIorg को फॉलो करें, यह एक शानदार मानवाधिकार समूह है जिसके साथ मैं कभी सलाहकार निदेशक के रूप में जुड़ा हुआ था.” पड़ताल करने पर पता चला है कि यह दावा एक सफेद झूठ था और वह कभी भी उस संगठन का सलाहकार निदेशक रहा ही नहीं है, बल्कि यह संगठन 2007 में उसके नाम पर ही पंजीकृत किया गया था, और बाद में 2013 में भिंडर ने मिलकियत अपने हाथ में ले ली थी. पीटर का साला स्टीवन मैकियास, जो पहले एक ईसाई मिशनरी था, अब ओएफएमआई का सीएफओ है.
खालिस्तानी संबंधों को छिपाने की कोशिश
एक मीडिया आउटलेट से बात करते हुए और अपने खालिस्तानी संबंधों को छुपाते हुए उसने तर्क दिया, 'यदि मुझे कभी भी ऐसा लगता कि भजन भी खालिस्तान का समर्थक रहा है, तो मैं उससे दूरी ही बनाकर रखता.' पाकिस्तानी दूतावास के कर्मचारियों के साथ मेलजोल, खालिस्तानी कार्यक्रमों में उसके द्वारा दिए गए भाषण और कई खालिस्तानी चरमपंथियों के साथ व्यापारिक और पेशेवर रिश्ते रखने से स्पष्ट रूप से साबित होता है कि वह हमेशा अच्छी तरह से जानता था कि वह क्या कर रहा था और किन लोगों के साथ काम कर रहा था. साथ ही, वह एक अन्य खालिस्तानी संगठन सिख इंफॉर्मेशन सेंटर से भी जुड़ा था और उसने पीटर सिंह के रूप में फर्जी पहचान अपनाया. इसके अलावा, उसने भिंडर के साथ कई कंपनियों को साथ मिलकर चलाया, यह जानते हुए कि वह भारत के खिलाफ आतंकवादी साजिश रचने वाला एक वांछित खालिस्तानी आतंकवादी था.
भिंडर के काले कारनामे
सुरक्षा अधिकारियों से मिली जानकारी के मुताबिक भिंडर लंबे समय तक अमेरिकी ड्रग एन्फोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन के लिए ‘पर्सन ऑफ इंटरेस्ट’ (POI) था और भारतीय शहरों पर हमला करने के लिए हथियार और गोला-बारूद का सौदा करने और उन्हें भारत तक पहुंचाने के लिए भी जिम्मेदार था. यह मानना मुश्किल है कि दक्षिण एशियाई मामलों का एक बड़ा ‘विशेषज्ञ’ इस तथ्य को देख पाने में विफल रहा, वह भी तब जब वह भिंडर के साथ करीबी रूप से जुड़ा हुआ था और एक साझेदार के रूप में काम कर रहा था.
RSS विरोध के नाम पर चंदा
एक फंडरेजिंग करने वाली वेबसाइट (https://www.patreon.com/pieterfriedrich) में पीटर 'भारत और विदेश में आरएसएस की गतिविधियों के बारे में जागरूकता' के लिए चंदा मांग रहा है और विवरण के अंतर्गत लिखा है – 'मैं दक्षिण एशिया मामलों के विश्लेषण में विशेषज्ञता रखने वाला एक स्वतंत्र पत्रकार हूं और मेरे कार्य का केंद्र आरएसएस और उसका हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडा है. इस क्षेत्र को केंद्र बना कर मैं पुस्तकों, लेखों, वीडियो साक्षात्कारों, और व्याख्यानों के माध्यम से मानवाधिकारों और स्वतंत्रता पर कार्य कर रहा हूँ.'
भारत विरोधी भावनाओं का साइड बिजनेस
ट्रांसपेरेंसी पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि बहुत सारे लोग भावनात्मकता और तर्कहीनता की वजह से आसानी से ऐसे फर्जी एक्टिविस्टों की गिरफ्त में आ जाते हैं और अपनी गाढ़ी कमाई दान कर बैठते हैं जिनका इस्तेमाल उन एक्टिविस्टों द्वारा निजी खर्चों के लिए किया जाता है. उन्होंने यह भी कहा कि इस धन उगाही अभियान से पता चलता है कि पीटर ने भारत विरोधी भावनाओं का फायदा उठाकर पैसा बनाने के लिए एक साइड बिजनेस शुरू कर दिया है.
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अचानक बदला चोला
दुनिया के सामने अभी-अभी पीटर का एक नया अवतार सामने आया है और अब वह अचानक खुद को एक पत्रकार के रूप में प्रोजेक्ट करने लगा है. पीटर ने ट्विटर पर अपने नए बायो में लिखा है – 'एक्सपर्ट फर सुदासियन-एंजेलजेनहाइटन (दक्षिण एशिया मामलों का विशेषज्ञ). मैं बोल्ड, तथ्यात्मक, आक्रामक और प्रतिकूल पत्रकारिता में विश्वास करता हूं.' इसी तरह, उसकी वेबसाइट के अनुसार, 'पीटर दक्षिण एशिया में ऐतिहासिक और वर्तमान मामलों के विश्लेषण में माहिर हैं. वह मानवाधिकारों, वर्चस्ववादी राजनीतिक विचारधाराओं, नैतिकतावाद, धर्म के राजनीतिकरण, सत्तावादी सरकारी संरचनाओं और नीतियों, राज्य प्रायोजित अत्याचारों और स्वतंत्रता के सिद्धांतों के बारे में एकजुट होने की आवश्यकता जैसे मुद्दों पर काम करते रहे हैं.'
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पड़ताल में सामने आया सफेद झूठ
बहरहाल, अपनी खोजबीन के दौरान इन क्षेत्रों से संबंधित पीटर द्वारा किया गया एक भी तार्कित शोध कार्य हम ढूंढ पाने में असमर्थ रहे. हमने पाया कि समग्र रूप से पीटर कोई भी ठोस काम नहीं कर पाया है और उसका काम केवल भारत के खिलाफ अस्पष्ट और बेबुनियाद आरोप लगाकर अमेरिका में जगह-जगह खालिस्तानियों का प्रतिनिधित्व करना ही रहा है. हमने ओएफएमआई द्वारा आयोजित कार्यक्रमों के दौरान दिए गए उसके भाषणों का भी विश्लेषण किया और यह पाया कि हालांकि उसने भारत सरकार पर कई आरोप लगाए, लेकिन एक भी बार वह कोई भी ठोस आंकड़े या तर्क नहीं दे पाया. लेकिन निश्चित रूप से वह भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा के लिए अधिक हानिकारक जरूर साबित हुआ क्योंकि उसके भाषणों/ लेखों के अंश कई आईएसआई प्रायोजित स्तंभकारों और मीडिया संस्थानों द्वारा पीटर का हवाला देकर इस्तेमाल किए गए.
कोरे भाषण, जानकारी नहीं
पीटर के उस दावे पर भी कुछ विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं जिसमें उसने एक वेबसाइट पर लिखा है कि, 'पीटर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय, यूसी बर्कले, यूसी लॉस एंजिल्स, कार्लटन विश्वविद्यालय और सेंट स्टीफेंस कॉलेज में व्याख्यान दिए हैं. वे धार्मिक स्वतंत्रता और अंतर-सहयोग के एक मजबूत पैरोकार रहे हैं और उन्होंने मस्जिदों, गुरुद्वारों, चर्चों और विहारों में व्याख्यान दिए हैं. उन्होंने यूरोप और एशिया की यात्रा की है और वहां रहे हैं.' जानकारों के मुताबिक पीटर ने अपनी वेबसाइट पर जिन नामी गिरामी विश्वविद्यालयों का नाम लिया है उसमें उसने व्याख्यान दिये हैं और अध्ययन नहीं किया है. उसकी वेबसाइट पर आने वाला कोई भी आम भारतीय इन प्रमुख संस्थानों का नाम देख कर और बारीक अंतर समझे बिना ही उससे प्रभावित हो सकता है और इन संस्थानों के साथ पीटर से जुड़े होने के विचार मात्र से वह उसकी बातों से आश्वस्त हो सकता है.
हिंदू धर्म के बारे में नहीं ज्ञान
पीटर, पूर्व पादरी होने की वजह से शायद ही चर्च के अलावा किसी धार्मिक स्थल पर गया हो और बहुत बाद में गुरद्वारों में खालिस्तान प्रायोजित विशेषज्ञ के रूप में जाने लगा. हालांकि, आईएसआई के प्रभाव और हिंदू-विरोधी पूर्वाग्रह को देखते हुए, यह समझ आता है कि क्यों उसे कभी भी किसी हिंदू मंदिर में नहीं देखा गया. एक अनुभवी सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि वेबसाइट पर इस्तेमाल किए गए शब्द उसकी भारत-विरोधी गतिविधियों को वैधता प्रदान करने के प्रयास में समझदारी से तैयार किए गए हैं, क्योंकि हर कोई एक 'विशेषज्ञ' के शब्दों को तरजीह देता ही है.
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