इसी वर्ष फरवरी महीने में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में कई जगहों पर दंगे हुए. 22 फरवरी को जब हिंसा भड़कने की शुरुआत हुई तो लगा कि प्रदर्शनकारियों का गुस्सा सिस्टम के खिलाफ है. लेकिन 4 दिन तक चले इन दंगों की आग भड़कती गई.
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नई दिल्ली: आपको याद होगा कि इसी वर्ष फरवरी महीने में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में कई जगहों पर दंगे हुए. 22 फरवरी को जब हिंसा भड़कने की शुरुआत हुई तो लगा कि प्रदर्शनकारियों का गुस्सा सिस्टम के खिलाफ है. लेकिन 4 दिन तक चले इन दंगों की आग भड़कती गई. 53 लोग मारे गए, और करीब 600 लोग घायल हो गए. कई शव नाले से मिले. कई लोगों की हत्या के बाद उनके शवों को इतना क्षत-विक्षत कर दिया गया कि उनकी पहचान भी नहीं हो पाई.
22 फरवरी से 25 फरवरी के दौरान जिस समय ये दंगे फैल रहे थे, उस वक्त ही ज़ी न्यूज़ ने अपनी रिपोर्टिंग से आपको ये बताया था कि ये सब कुछ पूरी तरह से सुनियोजित है. ज़ी न्यूज़ की टीम ने लगातार 4 दिन और उसके बाद भी इस आकस्मिक हिंसा की सुनियोजित पटकथा से पर्दा उठाया.
चार्जशीट में दंगों की पूरी साजिश का मकसद दर्ज
ये सब देश की चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने की साजिश के तहत किया जा रहा था. भारत के दंगा शास्त्र की रचना कर रहे इस गैंग की कोशिश ये थी कि किसी तरह अपने ही देश की किरकिरी अंतरराष्ट्रीय मंच पर करवा दी जाए. आपको याद होगा कि उसी दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत की यात्रा पर थे यानी टाइमिंग भी पहले से ही तय की गई थी. मोबाइल के वाट्सऐप ग्रुप से लेकर सड़क पर जमा की गई भीड़ तक सब कुछ प्लान किया गया था.
दिल्ली में हुए इन दंगों की पटकथा को ज़ी न्यूज़ ने सबूतों के साथ आपको बताया. इस बारे में दिल्ली पुलिस ने जो चार्जशीट तैयार की है वो भी इसी साजिश का खुलासा कर रही है. चार्जशीट में दंगों की पूरी साजिश का मकसद दर्ज है.
अस्थिर माहौल बनाने की योजना
इस चार्जशीट में बताया गया है कि वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद से ही सरकार के खिलाफ हिंसक प्रदर्शनों की और अस्थिर माहौल बनाने की योजना शुरू हो गई थी.
इस चार्जशीट में दिल्ली पुलिस लिखती है- दंगों के साजिशकर्ताओं का एकमात्र उद्देश्य भारत सरकार को उखाड़ फेंकना था. दंगों के साजिशकर्ताओं ने अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति की यात्रा का समय चुना, ताकि एक तीर से दो शिकार किए जा सकें. 25 फरवरी को दिल्ली में डोनाल्ड ट्रंप की प्रेस कांफ्रेंस के दौरान दिल्ली दंगों पर सवाल भी पूछा गया यानी मीडिया का एक हिस्सा भी भारत में ही भारत को बदनाम करने का काम कर रहा था.
साजिश करने वालों का प्लान था कि अगर वो ऐसा करने में कामयाब हो गए तो पूरी दुनिया में भारत को बदनाम करने का मकसद भी पूरा हो जाएगा. साथ ही ये संदेश भी जाएगा कि अमेरिका के राष्ट्रपति भारत के दौरे पर थे, तब देश की राजधानी दिल्ली में ऐसा हुआ.
पहले सोशल मीडिया दंगे
इस चार्जशीट में कुछ ऐसी वाट्सऐप चैट को भी शामिल किया गया है जिससे ये पता चलता है कि फरवरी 2020 की हिंसा की पटकथा दिसंबर 2019 में भी लिखी जा रही थी. आपको याद होगा कि जिस समय दिल्ली के शाहीन बाग में प्रदर्शन चल रहे थे. उस समय एक वाट्सऐप ग्रुप बनाया गया जिसका नाम वॉरियर्स था. इस ग्रुप में 29 दिसंबर का एक मैसेज है जिसमें लिखा गया है कि मुस्लिम महिलाएं सड़क पर उतर चुकी हैं. ये बड़ी कामयाबी है. 5 जनवरी 2020 को इस ग्रुप में एक तस्वीर पोस्ट की गई है, जिसमें ये लिखा है कि CAA, NPR और NRC के खिलाफ औरतों का इंकलाब. फोटो में समय दिन और जगह का भी जिक्र है.
इसी दौरान DPSG नाम का एक और वॉट्सऐप ग्रुप बनाया गया. 17 फरवरी 2020 को इस ग्रुप में एक व्यक्ति ने लिखा कि हमारा प्रदर्शन अहिंसक यानी Non Violent रहेगा. हमें आग से नहीं खेलना चाहिए. उसके बावजूद 22 फरवरी को दिल्ली में हिंसा भड़की. इससे ये साबित होता है कि 17 फरवरी को ही हिंसा भड़काने की बातें चल रही थी.
दिल्ली दंगों को आप पहले सोशल मीडिया दंगे कह सकते हैं. इस षड़यंत्र को अंजाम देने के लिए सोशल मीडिया को हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया. वाट्सएप ग्रुप, फेसबुक पोस्ट, ट्विटर पर मैसेज, इन तरीकों का इस्तेमाल लगातार जारी रहा.
जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी, वॉरियर (Warrior), खिदमत (Khidmat), औरतों का इंकलाब, DPSG, Save Constitution, ऐसे कई ग्रुप थे जिनके जरिए दिल्ली में दंगों की प्लानिंग चल रही थी.
अब वाट्सऐप ग्रुप Warriors में हुई चैट्स के बारे में आपको बताते हैं-
इस ग्रुप को दिल्ली दंगों की आरोपी गुलफिशां ने 27 दिसंबर 2019 को बनाया था. ग्रुप बनाने के बाद गुल हसन ने लिखा-
मैंने एक ग्रुप बनाया है. इस ग्रुप से आपको योजना की जानकारी दी जाएगी.
29 दिसंबर को गुल हसन, ग्रुप में लिखती हैं- कल प्लीज थोड़ा जल्दी आने की कोशिश करें. 10 बजे सुबह आ जाएं. ताकि कैंपेन हो सके.
17 जनवरी 2020 का एक और मैसेज है- जल्द से जल्द सभी औरतें प्रोटेस्ट की जगह पर पहुंचें, फोर्स बढ़ती जा रही है. औरतों की संख्या बहुत कम है.
23 फरवरी 2020 को सुबह 7 बजकर 35 मिनट का एक और मैसेज है.
हौजरानी में महिलाएं सो रही थीं, लेकिन सब सीलमपुर में चक्का जाम सुनकर पूरी ताकत से उठ गई हैं और समर्थन में नारे लगा रही हैं.
23 फरवरी को एक और मैसेज फॉरवर्ड होता है- ऐतिहासिक भारत बंद की शुरुआत जाफराबाद सीलमपुर दिल्ली से कर दी गई है. दिल्ली के साथ जाफराबाद पहुंचे. आज संवैधानिक दायरे में रहते हुए पूरा भारत बंद किया जाएगा. भाजपा सरकार को बहुजनों की ताकत का एहसास करवाया जाएगा.
गाड़ियों का भी धर्म ढूंढ निकाला
दिल्ली दंगों की जांच में सबसे चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है वो ये कि दंगाइयों ने चुन-चुन कर उन्हीं गाड़ियों में आग लगाई, जिनके मालिक एक खास धर्म के थे. देश में जितने भी धार्मिक दंगे हुए हैं, उनमें लोगों पर हमले का कारण उनका धर्म होता है, लेकिन दिल्ली दंगों में आरोपियों ने गाड़ियों का भी धर्म ढूंढ निकाला. दंगाइयों ने गाड़ियों का धर्म भी पहले चेक किया. उसके बाद ये तय किया कि किस गाड़ी में आग लगानी है और किस गाड़ी को नुकसान नहीं पहुंचाना है. दंगाइयों ने पार्किंग में खड़ी गाड़ियों में आग लगाने से पहले ई-वाहन ऐप का इस्तेमाल किया था. जिससे गाड़ी किसकी है, उसका नाम जान सकें.
E-Vahan ट्रांसपोर्ट मंत्रालय की एक सर्विस है जिसके जरिए आप इंटरनेट या एसएमएस से ये पता कर सकते हैं कि गाड़ी किसके नाम पर रजिस्टर्ड है. ये सर्विस उसके पते की जानकारी भी देती है.
एक धर्म विशेष की गाड़ियों को जला दिया
दंगाईयों ने पहले E-Vahan सर्विस के इस्तेमाल से गाड़ियों के नंबर से रजिस्ट्रेशन की जानकारी जुटाई. फिर धर्म के आधार पर गाड़ी को चुना गया और एक धर्म विशेष की गाड़ियों को जला दिया. लेकिन अगर किसी गाड़ी के मालिक का नाम उनके समुदाय से आता तो दंगाई उन गाड़ियों को छोड़ देते थे.
दिल्ली में भड़की हिंसा के लिए कुछ लोग प्रत्यक्ष रुप से जिम्मेदार थे तो कुछ ने अप्रत्यक्ष भूमिका भी निभाई. डिजाइनर पत्रकार, टुकड़े टुकड़े गैंग और विपक्षी पार्टियों ने इस काम में मददगार की भूमिका निभाई.
सोशल मीडिया एक वैचारिक नशा
अभी हमने आपको बताया कि किस तरह सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके दंगे फैलाए गए थे. लेकिन सवाल सिर्फ दंगों का नहीं है, बल्कि सोशल मीडिया पर फैल रहे समाज, संबंध और मर्यादाओं को तोड़ने वाली सोच का है. अब दुनिया के लिए ये समझ पाना मुश्किल हो रहा है कि सोशल मीडिया से समाज की नेटवर्किंग हो रही है या फिर समाज और समुदाय टूट रहे हैं.
आज पूरे विश्व में इस बात पर बहस छिड़ी हुई है कि सोशल मीडिया मानवता के लिए वरदान है या फिर अभिशाप? आज सोशल मीडिया एक वैचारिक नशा बनता जा रहा है जो किसी भी अफीम, चरस और गांजे के नशे से ज्यादा खतरनाक है.
इस डिजिटल दुनिया को लेकर सबसे बड़ी दुविधा ये है कि सोशल मीडिया को हम नियंत्रित कर रहे है या फिर सोशल मीडिया ही हम सभी को कंट्रोल कर रहा है?
सोशल मीडिया को लेकर ये दुविधा हमारे वर्तमान और भविष्य को बर्बाद कर रही है. क्या सोशल मीडिया के वैचारिक प्रदूषण को देखते हुए अब इसके लिए गाइडलाइंस बनाने का समय आ गया है?
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