UP Nagar Nikay Chunav: 2024 से पहले यूपी के निकाय चुनाव पर टिकीं सबकी निगाहें, अहम है वजह
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UP Nagar Nikay Chunav: 2024 से पहले यूपी के निकाय चुनाव पर टिकीं सबकी निगाहें, अहम है वजह

UP municipal elections 2023: अगर इस चुनाव में विपक्ष जनता तक अपनी बात पहुंचाने और उन्हें अपने पाले में करने में कामयाब होता है तो उसके लिए भी 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक मंच तैयार हो जाएगा. साथ ही विपक्ष के लिए वो रास्ते साफ हो जाएंगे, जिस पर चलकर वो 2024 में विजय प्राप्त कर सकती है.

UP Nagar Nikay Chunav: 2024 से पहले यूपी के निकाय चुनाव पर टिकीं सबकी निगाहें, अहम है वजह

'दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है...' भारत की राजनीति में इस कहावत को काफी अहम माना जाता है क्योंकि इस राज्य से सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटें आती हैं. यही कारण है कि मई के महीने में यूपी में होने वाले निकाय चुनाव (UP Nagar Nikay Chunav 2023) को 2024 से पहले का सेमीफाइनल माना जा रहा है. 13 मई को आने वाले नतीजों का यूपी की जनता और राजनीतिक पार्टियों, दोनों को बेसब्री से इंतजार है.

इस निकाय चुनाव को लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माने जाने के कई कारण हैं. विपक्ष को भी इस चुनाव से काफी उम्मीदें हैं. माफिया अतीक अहमद की हत्या, उसके बेटे असद का एनकाउंटर, रामचरित मानस विवाद, विपक्षी दलों के नेताओं पर ईडी और सीबीआई समेत सरकारी एजेंसियों की कार्रवाई जैसे मु्द्दों के बीच ये चुनाव मुद्दों से भरा हुआ है. यही कारण है कि यूपी के निकाय चुनाव को लेकर विपक्ष भी उत्साहित है.

ये चुनाव अहम इसलिए भी होने वाला है क्योंकि इसमें 4 करोड़ से ज्यादा मतदाता वोट डालने वाले हैं. वो वोट करेंगे तो उनके मन में वर्तमान में चल रहे तमाम मुद्दे होंगे. ऐसे में अगर वो योगी आदित्यनाथ की सरकार को स्वीकार करते हैं और निकाय चुनाव में वर्तमान सरकार की जीत होती है तो ये तय हो जाएगा कि यूपी में जनता को योगी आदित्यनाथ सरकार का काम पसंद है और वो वर्तमान सरकार के साथ है. साथ ही 2024 से ठीक पहले आने वाले ऐसे नतीजे बीजेपी के लिए भी राहत भरे होंगे.

वहीं, अगर इस चुनाव में विपक्ष जनता तक अपनी बात पहुंचाने और उन्हें अपने पाले में करने में कामयाब होता है तो उसके लिए भी 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक मंच तैयार हो जाएगा. साथ ही विपक्ष के लिए वो रास्ते साफ हो जाएंगे, जिस पर चलकर वो 2024 में विजय प्राप्त कर सकती है.

कितना बड़ा है ये यूपी का निकाय चुनाव?
उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में 17 नगर निगम, 198 नगर पालिका और 493 नगर पंचायत में होंगे. ऐसे में बड़ी संख्या में लोग इस चुनाव में हिस्सा लेंगे और इससे जनता के मूड को भी जाना जा सकेगा. इस चुनाव में 4 करोड़ से ज्यादा वोटर वोट डालेंगे. ऐसे में जातिगत गोलबंदी भी शुरू हो गई है. समाजवादी पार्टी ने बीजेपी को ओबीसी विरोधी करार दिया है. रामचरित मानस विवाद हो या फिर अतीक अहमद की हत्या और उसके बेटे का एनकाउंटर, विपक्ष ने बीजेपी की सरकार को असंवैधानिक तरीके से चलने वाली सवर्ण समर्थक सरकार बताया है.

बीजेपी के लिए रास्ता आसान क्यों?
17 नगर निगम में होने वाले इन चुनावों में जितने भी शहरी क्षेत्र हैं वहां सवर्ण वोटर्स की संख्या ज्यादा है. 17 नगर निगम में से 10 ऐसे क्षेत्र वाले इलाके हैं जहां सवर्ण वोटर्स की संख्या 50 फीसदी से ज्यादा है. इस बात की जानकारी हाल ही में सरकार द्वारा जारी आरक्षण लिस्ट में दी गई है. ऐसे में बीजेपी के लिए यहां वोट पाना विपक्ष के मुकाबले ज्यादा आसान लग रहा है.

अखिलेश का क्या है प्लान?
अखिलेश यादव ने भी अपना रास्ता साफ कर लिया है. उनका फोकस गैर सवर्ण वोटर्स पर है. यही कारण है कि उन्होंने इस चुनाव में जयंत चौधरी के साथ गठबंधन में चुनाव में उतरने का मन बनाया है. यहां तक कि उन्होंने समाजवादी पार्टी के गठबंधन में जो बदलाव किए उसमें भी गैर सवर्ण लोगों को ही तरजीह दी है. नए बदलाव में एक भी सवर्ण चेहरे को उन्होंने संगठन में जगह नहीं दी. ऐसे में ये समझा जा रहा है कि वो ये मान चुके हैं कि सवर्ण तो बीजेपी के साथ ही जाएगा और उन्हें गैर सवर्ण वोटर्स पर फोकस करना होगा. 

अखिलेश को पता है कि यूपी में अगर गैर सवर्ण वोटर्स का साथ उन्हें मिल जाता है तो उन्हें किसी भी चुनाव में जीत हासिल करने से कोई भी नहीं रोक पाएगा. वो जाट वोटर्स को साधने के लिए जयंत चौधरी से हाथ मिला चुके हैं. इसीलिए माना ये भी जा रहा है कि वो चंद्रशेखर आजाद को भी अपने गठबंधन का साथी बनाएंगे और इस तरह वो दलित वोटर्स को अपने पक्ष में करने की कोशिश करेंगे. 
 
योगी ब्रांड का बोलबाला!
भारतीय जनता पार्टी यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक ब्रांड के रूप में देख रही है. लगातार मिल रहे जनसमर्थन की वजह से पार्टी को आदित्यनाथ पर काफी भरोसा है. ये भरोसा सिर्फ बीजेपी को ही नहीं है बल्कि विपक्ष के नेताओं को भी हो चला है. हाल ही में ओवैसी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि बीजेपी योगी आदित्यनाथ को नरेंद्र मोदी की गैर मौजूदगी में प्रधानमंत्री बनाने की तैयारी में है और इसीलिए वो इन्हें प्रमोट कर रही है. 

यानी विपक्षी नेता भी ये मानते हैं कि बीजेपी में योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता पीएम मोदी के बाद सबसे ज्यादा है. यूपी में योगी की लोकप्रियता इसलिए भी बढ़ी है क्योंकि वो जनता में ये मैसेज पहुंचाने में कामयाब रहे हैं कि वर्तमान सरकार अपराधियों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर कायम है. 

पहले विकास दुबे की गाड़ी पलटने से मौत और फिर अतीक अहमद पर कार्रवाई और उसके बेटे का एनकाउंटर... ऐसे घटनाक्रम से सरकार लोगों तक ये संदेश पहुंचाने में कामयाब रही है कि प्रदेश में क्राइम के मामले में कोई रियायत नहीं बरती जाएगी फिर चाहे अपराधी किसी भी जाति धर्म का क्यों न हो. 2017 और 2022 के बाद अगर निकाय चुनाव में भी बीजेपी को जीत मिलती है तो योगी ब्रांड पर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा और बढ़ जाएगा.

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